रसानुभूति , संगीतात्मकता, आध्यात्मिकता, दार्शनिकता से ओतप्रोत हैं ललित मोहन भारद्वाज की रचनाएं

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मुरादाबाद : प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष ललित मोहन भारद्वाज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि ललित मोहन भारद्वाज की रचनाएं रसानुभूति तथा संगीतात्मकता से परिपूर्ण हैं। उनकी रचनाओं में आस्तिकता, आध्यात्मिकता, दार्शनिकता तथा जीवन-निष्ठा के तत्त्व विद्यमान हैं।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद में 8 अगस्त 1936 ई को
जन्में ललित मोहन भारद्वाज को साहित्यिक और कलात्मक संस्कार विरासत में प्राप्त हुए। वह आकाशवाणी के पूना, लखनऊ और कोहिमा केंद्रों में कार्यक्रम निष्पादक पद पर रहे। उन्होंने मुरादाबाद से साहित्यिक पत्रिका ‘प्रभायन’ का भी सम्पादन-प्रकाशन किया। उनका एक मुक्तक संग्रह ‘प्रतिबिम्ब’ का प्रकाशन वर्ष 1977 में हुआ । वह मुरादाबाद के अम्बिका प्रसाद इंटर कॉलेज के प्रबंधक भी रहे। उनका निधन 12 मार्च 2009 को आगरा में हुआ ।


कार्यक्रम में वाणी भारद्वाज(आगरा), चारु मोहन (मुंबई) और पूनम चोपड़ा ने ललित मोहन के गीत एवं मुक्तक प्रस्तुत कर समां बांध दिया । इरा कौशिक, हिमानी भारद्वाज, नमिता , राघव दत्त, उदित, वत्सला कौशिक, सुरम्या कौशिक, नरेंद्र शर्मा, डॉ अमित कौशिक, विनीत कौशिक ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।

दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ स्वीटी तालवाड़ ने कहा ललित जी नाम से ही ललित नहीं थे, वे वास्तव में ललित कलाओं के पुंज थे। एक मुक्तककार के रूप में उनकी रचनाधर्मिता की जितनी सराहना की जाय, कम होगी। चार पंक्तियों में किसी भी भाव, विचार, विषय को उन्होंने बेजोड़ सम्पूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है। उनके मुक्तकों में श्रृंगार, अध्यात्म, आस्तिकता, समाजिकता, चिंतन, सौंदर्यबोध, पद लालित्य, भाव प्रवणता, सर्वजन कल्याण की समग्र अभिव्यक्ति हुई है।


वयोवृद्ध साहित्यकार सुरेश दत्त शर्मा पथिक, फ़िल्म निर्देशक
एटी ज़ाकिर (आगरा), प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), अश्विनी कुमार(मुम्बई) ने उनके संस्मरण प्रस्तुत किये। वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि ललित मोहन भारद्वाज जी अच्छे गीतकार भी थे। मुझे मुक्तक रचना में ललित मोहन भारद्वाज जी का महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कीर्तिशेष ललित मोहन भारद्वाज की रचनाओं में उनके आध्यात्मिक चिंतन, तथा जीवन दर्शन का सहज परिचय मिलता है । इसके साथ ही श्रंगार रस का भी उनके गीतों में समावेश हैI ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व व उनके कृतित्व के विषय में जानकारी पाकर ह्रदय में गौरवानुभूति हो रही है और उनके प्रति मन श्रद्धा से नत हो जाता हैI
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय जी ने कहा कीर्तिशेष ललित मोहन भारद्वाज जी का जितना सुंदर अंतर्मन था उतना ही शुचितापूर्ण बाह्य व्यक्तित्व था । यथा नाम तथा गुण की सूक्ति पूर्ण रूप से उनपर व्याख्यातित होती थी । उन्होंने संस्कृति और साहित्य को जीवन में उतारा था।


रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा अच्छे मुक्तक सचमुच मोती की तरह होते हैं और उनका मूल्य आँका नहीं जा सकता । बात कहने की जो कला मुक्तक के माध्यम से सामने आती है, वह काव्य की अन्य विधाओं में देखने में नहीं आती । चौथी पंक्ति में मुक्तक का प्राण निहित होता है । इस दृष्टि से श्री ललित मोहन भारद्वाज का मुक्तक सराहनीय हैं।
अफजलगढ़ ( बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कहा कि उनके चिंतन तथा अनुभूति परक मुक्तकों में लालित्यमयी अभिव्यंजनावाद के दर्शन होते हैं। आध्यात्मिकता, सामाजिकता, आस्तिकता तथा अनुभूतियों के जो भाव उन्होंने अपने मुक्तकों में पिरोये थे वे आज भी प्रासंगिक प्रतीत होते हैं
उनके मुक्तकों में साधना का समावेश मिलता है तो सिद्धि, साधक और साध्य की भावलहरी भी लहराती प्रतीत होती है।
अपनी रचनाओं में वे सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार भी करते हैं।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि उनके मुक्तकों की सबसे बड़ी विशेषता मुझे यह लगी कि श्रृंगार से ओतप्रोत होकर भी कहीं न कहीं, ये आध्यात्मिकता को भी समेटे हुए हैं। यही कारण है कि इस सऺग्रह का अवलोकन करते हुए पाठक जहाॅ॑ एक और श्रृंगारिकता का स्वयं में अनुभव कर पाता है वहीं अध्यात्म की अनुभूति भी उसे आह्लादित कर जाती है।‌ साथ ही विभिन्न सामाजिक मूल्य भी अपनी उपस्थिति उसके समक्ष दर्ज करा देते हैं।


अखिलेश वर्मा ने कहा उनके मुक्तक उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और यथार्थ पर पकड़ को दर्शाते हैं ।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि वह एक ऐसे यशस्वी रचनाकार थे जो साधक,साध्य, साधना एवं सिद्धी की अनूभूति स्वयं में ही अनुभव करते हैं । वह कवि ,लेखक साहित्यकार, दार्शनिक, होने के साथ-साथ आराधक भी थे तो आराध्य की अनूभूति से परिपूर्ण भी।
हेमा तिवारी भट्ट ने स्वरचित मुक्तक प्रस्तुत कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। निश्छल होना बल है कितना, हमने जाना तुमसे/ मानव मन निर्मल है कितना, हमने जाना तुमसे/मृदुल भाव मुस्कान मनोहर, मन,आनन का गहना/ शान्त जलधि पर जल है कितना, हमने जाना तुमसे।
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि उनके मुक्तक सच में सराहनीय और ह्रदय स्पर्शी हैं ।अधिक प्रसन्नता की बात यह है कि उनका कला अनुराग और साहित्यिक मर्मज्ञता को  उनका परिवार समझ रहा है और उनकी विरासत को आगे भी ले जा रहा है। सभी बड़े काव्यानुरागी और विद्वतजन हैं । मधुर कंठ से गाये गए उनके काव्यपाठ दिल को छूते हैं ।सभी मुक्तकों में संगीतात्मकता का विशेष गुण है।
गजरौला की कवयित्री रेखा रानी ने कहा तीन दिवसीय महायज्ञ में उनके परिजनों द्वारा जो श्रद्धांजली अर्पित की गई वह स्वयं में अद्वितीय है और बिना देखे बिना मिले ऐसा लगा जैसे हम सब एक दूसरे से चिर परिचित हों। सचमुच मन भाव विभोर हो गया।
डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि उनकी रचनाओं में कहीं श्रृंगार रस का आनंद है तो कहीं विरह की व्याकुलता , कहीं देश प्रेम का ओजस्वी रूप है ,तो कहीं भक्ति रस की मधुरता । वह साहित्य जगत के एक ऐसे स्तंभ हैं ,जिन्होंने अपनी प्रतिभा ,कला कौशल व ज्ञान से न केवल साहित्य जगत को दिशा दी बल्कि अनेक प्रतिभाओं को निखरने के लिए प्रोत्साहित किया ।उनकी रचनायें पाठकों के मन पर अपनी अमिट छाप छोड़तीं हैं ।
दुष्यन्त बाबा ने कहा कि अभिव्यंजना और उच्चारण की शुद्धता के प्रति गम्भीर ललित मोहन भारद्वाज प्रकृति चित्रण और मानव मूल्यों पर लिखने वाले दार्शनिक कवि थे। शब्दों में बलाघात और विराम चिन्हों का प्रयोग कर हिंदी की वैज्ञानिकता और चमत्कारिता से लोगों को मुग्ध कर देते थे।


बिलारी के साहित्यकार विवेक आहूजा ने कहा श्री भारद्वाज जी ने अपना सर्वस्व “माँ दुर्गा” को समर्पित करते हुए कहा है कि मेरी सांसो में, प्राणो में, तन मन में तुम ही तुम हो , माँ तुम ही शक्ति प्रदान करने वाली हो , मेरा सब कुछ तुम्हारा है और मैं आपको सब कुछ अर्पित करता हूं और आपको नमन करता हूँ । एक लाइन अंत में उन्होंने ऐसी कहीं जो उस पूरी रचना का सार है और वह यह है कि “जैसे भी हैंँ माँ अर्पित है” अर्थ यह है की मेरी जो भी हैसियत है या मैं जैसा भी हूँ ,अच्छा हूं ,बुरा हूं मैं अपने आपको समर्पित करता हूं और आपको नमन करता हूँ ।
इस अवसर पर डॉ आरती श्रीवास्तव(लखनऊ), डॉ इंदिरा रानी(दिल्ली), शीतल भारद्वाज (मुम्बई), अतुल कुमार शर्मा, आदर्श भटनागर, डॉ अनिल शर्मा अनिल (धामपुर), सिद्धात्मन ने विचार व्यक्त किये। आभार ललित मोहन जी की पत्नी निर्मला भारद्वाज ने व्यक्त किया।
उल्लेखनीय है कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से प्रत्येक माह “मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ” का आयोजन किया जाता है। इससे पूर्व अब तक मुरादाबाद मंडल के दिवंगत साहित्यकारों स्मृतिशेष दुर्गादत्त त्रिपाठी, कैलाश चंद्र अग्रवाल, पंडित मदन मोहन व्यास, बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी, दयानन्द गुप्त, डॉ भूपति शर्मा जोशी, ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश, वीरेन्द्र कुमार मिश्र, राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग, शंकर दत्त पांडे, प्रो. महेन्द्र प्रताप, सुरेन्द्र मोहन मिश्र और बृज भूषण सिंह गौतम अनुराग के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजन किया जा चुका है ।

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