ऑस्टोपीनिया में बढ़ जाता है हड्डियों के टूटने का खतरा, जानिये इसके लक्षण और बचाव…

खाना-खजाना

डॉ अमरजीत सिंह जस्सी, आयुर्वेद और योगा आचार्य। गलत खानपान और अनियमित जीवनशैली के कारण हमारे शरीर के अंगों के साथ-साथ हमारी हड्डियां भी प्रभावित हो रही हैं। हड्डियों के कमजोर होने से लोगों को कई तरह के रोग घेर रहे हैं। ऐसी ही हड्डी से जुड़ी एक बीमारी है ऑस्टियोपीनिया। ऑस्टोपीनिया हड्डियों की उस स्थिति को कहते हैं जब हड्डियों का घनत्व बहुत कम हो जाता है और इसी वजह से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। कई बार हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि हल्की सी चोट से भी हड्डियों के टूटने का खतरा रहता है। आइये आपको बताते हैं ऑस्टियोपीनिया और इससे बचाव के बारे में।

ऑस्टियोपीनिया और ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपीनिया और ऑस्टियोपोरोसिस लगभग एक सी बीमारियां हैं। दोनों में बस इतना अंतर है कि ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियों का क्षरण शुरू हो जाता है जबकि ऑस्टियोपीनिया में इसके शुरू होने की संभावना होती है। यानि एक तरह से ऑस्टियोपीनिया अलार्म है कि आपको ऑस्टियोपोरोसिस होने वाला है। इस अलार्म के संकेतों को समझकर अगर आप समय रहते सही इलाज और आहार अपनाते हैं, तो ये खतरा टाला जा सकता है।

क्या हैं इस रोग के कारण
ऑस्टियोपीनिया कई कारणों से हो सकता है। इसका सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को होता है जिनके परिवार में पहले से हड्डियों की बीमारी जैसे ऑस्टियोपीनिया, ऑस्टियोपोरोसिस आदि के रोगी रहे हों। कई बार अन्य अनुवांशिक रोग भी इसका कारण बनते हैं। कई बार हार्मोन्स के ठीक से न बनने के कारण भी ये बीमारी होती है। आमतौर पर महिलाओं में इस्ट्रोजन और टेस्टॉस्टेरॉन हार्मोन्स के कम स्राव के कारण मेनोपॉज के बाद इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा इस बीमारी के बड़े कारणों में धूम्रपान और एल्कोहलिक पदार्थों का ज्यादा सेवन भी शामिल हैं। कुछ बीमारियां भी आपकी हड्डियों को कमजोर कर सकती हैं और इस बीमारी के खतरे को बढ़ा देती हैं। रूमेटॉइड आर्थराइटिस के कारण भी हड्डियों की कमजोरी और इस तरह के रोगों की संभावना बढ़ जाती है। जो लोग ज्यादा चलते-फिरते नहीं हैं और जिन्हें सोने या बैठने की आदत बहुत ज्यादा होती है, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा होता है।

ऑस्टियोपीनिया रोग के लक्षण
ऑस्टियोपीनिया की खास बात ये हैं कि इसमें तब तक दर्द नहीं होता है जब तक कि कोई हड्डी न टूट जाए। कई बार तो हड्डी टूटने पर भी दर्द नहीं होता है। ऐसे में इसके लक्षणों को कई बार आप समझ भी नहीं पाते हैं और अंदर-अंदर आपको ये बीमारी कमजोर करती रहती है। कई बार हड्डियां टूटने के बाद भी आपको पता नहीं चलता है और ये रोग बरसों तक इलाज के अभाव में बढ़ते रहते हैं। कई बार रीढ़, कमर या पीठ में थोड़ा-बहुत दर्द होता है, जिसे आप नजरअंदाज करते रहते हैं या पेन किलर खाकर राहत पा लेते हैं।

क्यों जरूरी है इलाज
चूंकि ऑस्टियोपीनिया होने पर ज्यादातर लोगों को दर्द नहीं होता या थोड़ा-बहुत होता है इसलिए कई बार लोग इसे नजरअंदाज करते हैं और इलाज करवाने की जरूरत नहीं समझते हैं। लेकिन आपको बता दें कि ऑस्टियोपीनिया होने पर हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि इलाज के अभाव में कई अंदरूनी अंगों जैसे स्पाइल हड्डियां आदि धीरे-धीरे टूटती रहती हैं और आपको पता भी नहीं चलता है। ऐसे में बाद में आपकी गंभीर समस्या या ऑपरेशन का सामना करना पड़ सकता है। कई बार हिप्स यानि कूल्हे की हड्डी टूट जाने पर असहनीय दर्द होता है और मरीज को बरसों तक इलाज की जरूरत पड़ सकती है।

कैसे संभव है बचाव
ऑस्टियोपीनिया से बचाव के लिए आपको कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। विटामिन सी के सेवन से भी हड्डियां मजबूत होती हैं। इसके अलावा कैल्शियम के शरीर में ठीक से अवशोषित होने के लिए विटामिन डी भी बहुत जरूरी है। अपने आहार में दूध, दही, हरी सब्जियां, ताजे फल और ड्राई फ्रूट्स को शामिल करें।

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