इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए..

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लव इंडिया, मुरादाबाद। शुक्रवार को साहित्यिक संस्था- अक्षरा के तत्वावधान में विख्यात ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की जयंती पर कंपनी बाग मुरादाबाद स्थित प्रदर्शनी भवन में स्मरण संध्या का आयोजन किया गया जिसमें दुष्यंत कुमार की रचनाधर्मिता के विविध पक्षों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. माहेश्वर तिवारी ने कहा कि साहित्यिक इतिहास के पृष्ठों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को उसके परंपरागत स्वर “महबूब से बात” और “इश्क-मोहब्बत” की चाहरदीवारी से बाहर निकाल कर आम आदमी की पीड़ा से ही नहीं जोड़ा बल्कि आम आदमी के व्यवस्था-विरोध का मुख्य स्वर बनाया। मुख्य अतिथि मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि दुष्यंत कुमार हिंदुस्तानी ज़ुबान के शायर होने के साथ ही जनकवि भी थे। उनकी शायरी आम जनता की तकलीफों का तर्जुमा ही है।

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि दुष्यंत कुमार बिजनौर में जन्मे और मुरादाबाद में अपने अध्ययन प्रवास के दौरान चौमुखा पुल स्थित रिश्तेदार के भवन में अक्सर ठहरा करते थे। इस भवन के पीछे का वह आँगन, आँगन में खड़ा विशाल पीपल का पेड़ और छोटा-सा मन्दिर अब भी उसी स्थिति में है जैसा दुष्यंत कुमार के समय था।

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने इस अवसर पर दुष्यंत कुमार पर केंद्रित नवगीत पढ़ा- बीत गया है अरसा, आते/अब दुष्यन्त नहीं/पीर वही है पर्वत जैसी/पिघली अभी नहीं/और हिमालय से गंगा भी/निकली अभी नहीं/भांग घुली वादों-नारों की/जिसका अंत नहीं।
।शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दुष्यंत जी का पूरा लेखन दूषित राजनीति, कुव्यवस्थाओं और भृष्टाचार की परिणीति का परिणाम स्वरूप उपजी आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करता है। शायर डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा कि दुष्यंत ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने ग़ज़ल की परिभाषा को बदल दिया। सिर्फ़ 52 ग़ज़लों के इस शायर के शेर आज सबसे ज्यादा कोट किए जाते हैं।
शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि दुष्यंत हाथों में अंगारे लिए हुए हिन्दुस्तानी ज़बान और ज़मीन का शायर है। दुष्यंत ने साझा दुख बयान किया। ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने कहा कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल की परंपरागत भाषा, कहन, शैली से इतर अलग तरह की कहन और तेवर को ग़ज़ल के शिल्प में पूरी ग़ज़लियत के साथ प्रस्तुत करते हुए ग़ज़ल की नई परिभाषा, नया मुहावरा गढ़ा।
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि दुष्यंत कुमार एक ऐसे रचनाकार थे जिनका मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं था, वह पर्वत सी हो गई पीर को पिघलाना चाहते थे, हिमालय से गंगा निकालना चाहते थे। वे चाहते थे बुनियाद हिले और यह सूरत बदले। शायर मनोज मनु ने अपने भाव व्यक्त किए- ये सरकारें दबाकर हक़ अमन आवाद रक्खेंगी/मगर जब जुल्म की मजबूरियां फरियाद रक्खेंगी/जमाने को दिया जो ढंग अपनी बात रखने का/तुम्हें उसके लिए दुष्यंत, सदियां याद रक्खेंगी। शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि दुष्यंत कुमार किसी एक ख़ास मंच के शायर नहीं हैं। अगर ग़ौर किया तो गली-मुहल्ले, सड़क-चौराहे यानी जहाँ-जहाँ आम आदमी है, दुष्यंत खड़े मिलेंगे। सिर्फ़ एक ही मंच है जहाँ दुष्यंत खड़े नहीं मिलते, वो है सत्ता पक्ष का मंच।
कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध साहित्यकार सर्वश्री ओमकार सिंह ओंकार, राजीव प्रखर, नज़र बिजनौरी, अनुराग मेहता सुरूर आदि ने दुष्यंत कुमार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। आभार अभिव्यक्ति ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की।

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