अपने को अभी भी 76 वर्ष का युवा मानते हैं रणधीर गौड़

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निर्भय सक्सेना, बरेली। नौकरी रेलवे के यांत्रिक विभाग की खटपट वाली, रेलवे में ही क्रिकेट टीम की वर्षो कप्तानी, शौक कविता लेखन। इन अलग अलग विधा में अपने को पूर्ण पारंगत किया है। रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ जी ने। जो अब 75 वसंत पर कर 76 वर्ष में प्रवेश करने के बाद भी अपने को युवा ही कहते हैं। क्रिकेट से कविता के लंबे सफर में उन्होंने कई शीर्षस्थ स्थान भी प्राप्त किए। रेलवे एवम जिला प्रशासन के अधिकारियों से मेडल एवम प्रशस्ति पत्र भी मिले। रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ से मेरा परिचय अपने छात्र जीवन में हो गया था। मेरे एक मित्र, कृष्ण कुमार टंडन जो एक क्रिकेट के खिलाड़ी हैं, के साथ गुलाब राय स्कूल में में भी क्रिकेट की प्रैक्टिस को जाता था। वहीं मेरा परिचय क्रिकेट के बरेली में पितामह रहे दद्दा ने रणधीर प्रसाद से कराया था।

रणधीर प्रसाद जी के साथ बाद में में भी यूनियन क्रिकेट क्लब, साहूकारा से जुड़ गया। क्लब की और से उनके साथ बरेली ही नही पलिया में भी टीम का हिस्सा बनकर मैच खेले भी और जीते भी। यूनियन क्लब का सदस्य रहने पर उसके यूनियन नाम का एक बार मुझे अमर उजाला में स्वर्गीय मुरारी लाल जी से वार्ता में अपने बचाव का भी मौका मिला था जब उनका सीधा सवाल था की आप भी यूनियन में हैं, मेने भी तुरंत जवाब दिया की हां में भी यूनियन क्लब से ही क्रिकेट खेलता हूं जबकि उनका प्रश्न किसी और गंभीर विषय पर था। यह बात प्रसंगवश थी।

बात हो रही थी रणधीर प्रसाद जी की । मेरे बरेली से बाहर जाने पर भी उनसे कभी भी किसी मैच या ख्याल वाले कार्यक्रम में दूरी होने के बाद भी अक्सर भेंट होती ही रहती थी। बाद में बरेली में मेरे वापस आने पर रणधीर प्रसाद जी से साहित्य पर भी चर्चा स्वर्गीय दिनेश पवन के साथ होती रहती । वह दिनेश पवन के पास आकर कवि गोष्ठी के आमंत्रण देकर मुझे भी आमंत्रण देते । दैनिक जागरण में रहते समय की कमी के बाद भी उनके कुछ ही कार्यक्रम में शामिल ही हो पाता था और नहीं आने पर उनसे क्षमा भी मांग लेता था। बाद में रणधीर प्रसाद गौड़ जी से मानव सेवा क्लब एवम शब्दांगन के कार्यक्रम में भी निरंतर भेंट होती रही। रणधीर प्रसाद जी ने मेरे निवास पर आकर अपनी एवम अपने पिता श्री स्वर्गीय देवी प्रसाद गौड़ मस्त की भी कई पुस्तकें मुझे दीं।

रणधीर प्रसाद जी एक कवि के साथ अच्छे काव्य मंच संचालक भी हैं। रणधीर प्रसाद गौड़ जी की तीन कृतियां कल्याण काव्य कौमुदी (हिंदी गजल), बज्में इश्क ( उर्दू गजल) और अनुभूति से अभिव्यक्ति (गीत) प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी रचनायें देश की अनेक पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी बरेली, रामपुर और दूरदर्शन बरेली से समय-समय पर होता रहा है। यही नहीं क्रिकेट में कालेज स्तर से पूर्वोत्तर रेलवे की जोनल टीम तक प्रतिनिधित्व भी किया। बरेली में इज्जतनगर रेलवे वर्कशाप मंडल के 20 वर्षों तक कप्तान रहे।

श्री रणधीर प्रसाद गौड़ जी का जन्म 12 अगस्त 1947 को बरेली के सभ्रांत ब्राह्मण परिवार में श्री देवी प्रसाद गौड़ ‘मस्त’ एवं श्रीमती रामदुलारी देवी के यहाँ साहूकारा में हुआ। रणधीर प्रसाद गौड़ जी ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1963 में तिलक इंटर कालेज से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात अगस्त 1963 से जनवरी 1965 तक आई. टी. आई. बरेली में यांत्रिक प्रशिक्षण का कोर्स किया। आई टी आई से ट्रेनिंग के बाद जुलाई 1965 में ही रणधीर जी की नियुक्ति इन्टरमीडियेट अप्रेेंटिस के रूप में पूर्वोत्तर रेलवे यंत्रालय इज्जतनगर बरेली में हो गई।

इसके बाद 1976 में रेलवे की विभागीय परीक्षा के आधार पर उनका नाम का चयन रेलवे के सिस्टम टेक्निकल स्कूल गोरखपुर में इन्टर मीडियेट अप्रेंटिस मैकेनिक में हो गया। दो वर्ष का यह मैकनिकल इंजीनियरिंग का कोर्स पूर्ण करने के पश्चात रणधीर प्रसाद को पदोन्नत कर चार्जमैन ‘बी’ के पद पर गोरखपुर में सेवा करने का मोका मिला। अपनी रेलवे वाली नौकरी सफलतापूर्वक करते हुए वर्ष 2007 में सीनियर सेक्शन इंजीनियर के पद से सेवा निवृत हो गये।

रणधीर प्रसाद गौड़ का विवाह 14 जुलाई 1970 को मिथलेश गौड़ जी से हुआ। आपकी जीवन यात्रा में पत्नी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। उनके तीन पुत्र विवेक गौड़ (क्षेत्रीय प्रबंधक), विनय गौड़ ( जूनियर इंजीनियर), तथा विशाल गौड़ (साफ्टवेयर इंजीनियर.) के पद पर सर्विस में हैं। रणधीर प्रसाद जी कालेज समय से ही संगीत, खेल, एन.सी.सी में सक्रिय भूमिका में रहे। क्रिकेट में कालेज स्तर से पूर्वोत्तर रेलवे की जोनल टीम तक प्रतिनिधित्व भी किया। बरेली में इज्जतनगर रेलवे वर्कशाप मंडल के 20 वर्षों तक कप्तान रहे। वर्ष 1990 से बढ़ती आयु को देखआउटडोर गेम्स से किनारा कर लिया।

रेलवे ने 1991 से आपको क्रिकेट सचिव एवं 1997 से स्पोर्टस सचिव मनोनीत किया। अपने कार्यकाल में श्री गौड़ जी ने रेलवे में खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया और प्रतिवर्ष क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैटमिन्टन, शतरंज और एथलेटिक प्रतियोगिताओं का आयोजन भी कराया। बरेली की साहित्यिक, सामाजिक एवं क्रीड़ा विकास संस्था के द्वारा साहित्यिक, सामाजिक एवं क्रीड़ा प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों का आयोजन कराते रहे और समाज सेवा में भी सक्रिय भागीदारी करते रहे।

शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु आपने यूनियन क्लब की शाखा प्रवीन पुस्तक कोष के माध्यम से निर्धन विद्यार्थियों को किताबें, कापी और अन्य सामग्री निशुल्क उपलब्ध कराई। विद्यार्थियों को पढ़ने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए आपने भूतपूर्व मंत्री स्व. धर्मदत्त वैद्य जी के संरक्षण में मेधावी छात्रों के अभिनन्दन का कार्यक्रम 1974 से शुरू किया। आप 1965 से नागरिक सुरक्षा विभाग में सेक्टर वार्डेन लगभग 10 वर्ष रहे। अपनी सेवाओं के परिणाम स्वरूप बरेली के तत्कालीन जिला अधिकारी से कई प्रशस्ति पत्र भी प्राप्त किये।रेलवे विभाग द्वारा उन्हें श्रमिक शिक्षक की ट्रेनिंग हेतु 1972 में सहारनपुर भेजा गया था। जहां आपने प्रथम स्थान प्राप्त किया।

निदेशक श्रमिक शिक्षा केन्द्र सहारनपुर के निर्देशानुसार आपने लगभग 4 वर्षों तक श्रमिक शिक्षा की कक्षा भी चलाई और श्रमिकों को अपने कर्त्तव्यों और अधिकारों तथा श्रमिक अधिनियमों के विषय में शिक्षित किया। ट्रेड यूनियन में सक्रिय रहे और आल इंडिया टेक्निकल सुपरवाईजर्स एसोसियेशन के इज्जतनगर मंडल के मंत्री तथा राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त मंत्री रहे। 1997 में संस्था के अध्यक्ष भी चुने गये और सेवानिवृति के समय तक इस पद पर आसीन भी रहे।

2004 में आप पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ इज्जतनगर के मंडलीय सचिव चुने गये और अंतिम कार्य दिवस तक पदासीन रहे।आपने 1965 से ही साहित्य और संगीत के कार्यक्रमों में रूचि लेना शुरू किया।उनके ताऊ जी स्वर्गीय बाबू राम, स्वर्गीय ज्वाला प्रसाद ‘नाशाद’, पिता देवी प्रसाद गौड़ ‘मस्त’, बड़े भाई रघुवीर प्रसाद शर्मा ‘नश्तर’ तथा बलवीर प्रसाद शर्मा ‘पागल’ भी साहित्य जगत एवम शेर-ओ-शायरी के चर्चित नाम थे। घर में साहित्यिक वातावरण के कारण 1965 से ही शायरी की शुरूआत की। उस समय ख्याल गोई (लावनी) का प्रचलन था।

भारतवर्ष के बड़े-बड़े ख्यालगो और शायरों का घर में आना जाना था जिसका प्रभाव इन पर भी पर पड़ा। और वह भी इस दिशा में चल पड़े।उस समय संगीत की महफिलें भी बहुत होती थीं। उन्हें भी सुनने का अवसर मिलता रहा अतः आप चंग, ढोलक, तबला आदि वाद्य यंत्रों से संगत देते रहे। गीत, गजल, दोहा, घनाक्षरी, ख्याल, खमसा आदि अनेक विधाओं में रचनायें लिखीं। आपने अनेकों पुस्तकों की समीक्षायें भी लिखीं।

आपने मासिक काव्य गोष्ठियों से लेकर अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों एवं गंगा-जमुनी कार्यक्रमों का संचालन किया है और पांच सौ से अधिक कार्यक्रमों का संचालन किया है। 1985 से रेलवे में हिंदी अनुभाग की स्थापना इज्जतनगर यंत्रालय में हुई और हिंदी के कवि सम्मेलन एवं स्मारिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जिसके आयोजन में आपकी सक्रिय भूमिका रहती थी 1996 से 2007 तक प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाली स्मारिकाओं का संपादन आपने किया इसके अतिरिक्त दर्द के आंसू (गजल) आकांक्षा (गीत) नजरानये अकीदत (नाते पाक) वसीलये निजात (नाते पाक) का भी संपादन किया।

लगभग 10 संकलनों और 5 पत्रिकाओं में सहयोगी संपादक की भूमिका का निर्वहन किया। अपनी इस काव्य यात्रा के दौरान आपको अनेकों पुरस्कार एवं सम्मान मिले। आपकी तीन कृतियां कल्याण काव्य कौमुदी (हिंदी गजल), बज्में इश्क ( उर्दू गजल) और अनुभूति से अभिव्यक्ति (गीत) प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी रचनायें देश की अनेक पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी बरेली, रामपुर और दूरदर्शन बरेली से समय-समय पर होता रहा है। आपने स्थानीय एवं बाहरी अनेकों मंचों से काव्य पाठ किया है। वर्तमान में आप साहित्यिक संस्था भारती संगम के सचिव, कवि गोष्ठी आयोजन समिति के सचिव, यूनियन क्लब बरेली के सचिव तथा साहित्य सुरभि के महामंत्री हैं।

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