लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार नहीं मुस्लिमों को: इलाहाबाद हाइकोर्ट

India Uttar Pradesh अपराध-अपराधी टेक-नेट तेरी-मेरी कहानी नारी सशक्तिकरण युवा-राजनीति लाइफस्टाइल


अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का मिला संवैधानिक अधिकार तब लागू नहीं होता, जब रीति-रिवाज और प्रथाएं दो व्यक्तियों के बीच ऐसे संबंधों को प्रतिबंधित करती हैं।  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक अहम फैसले में कहा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाला कोई भी शख्स लिवइन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकता है। खासकर तब, जब पहले से उसकी कोई जीवित जीवनसंगिनी हो।

कोर्ट ने कहा कि मुसलमान जिस रीति-रिवाज को मानते हैं, वह उन्हें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार नहीं देता है। जस्टिस अताउर्रहमान मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव की बेंच ने कहा कि जब किसी नागरिक के वैवाहिक स्थिति की व्याख्या पर्सनल लॉ और संवैधानिक अधिकारों यानी दोनों कानूनों के तहत की जाती है, तब धार्मिक रीति-रिवाजों को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने आगे कहा कि सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज एवं प्रथाएं और संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त कानून जिन्हें सक्षम विधानमंडल द्वारा बनाया गया है, दोनों के स्रोत समान रहे हैं। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, “एक बार जब हमारे संविधान के ढांचे के भीतर रीति-रिवाजों और प्रथाओं को वैध कानून के रूप में मान्यता मिल जाती है, तब ऐसे कानून भी उचित मामले में लागू होते हैं।”

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का मिला संवैधानिक अधिकार तब लागू नहीं होता, जब रीति-रिवाज और प्रथाएं दो व्यक्तियों के बीच ऐसे संबंधों को प्रतिबंधित करती हैं। हाई कोर्ट ने कहा, “इस्लाम में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकार का दावा नहीं कर सकता, खासकर तब जब उसका कोई जीवनसाथी जीवित हो।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *