कुलाधिपति सुरेश जैन ने परम पूज्य श्रुतभास्कर जी का जिनालय में किया पाद प्रक्षालन, गाजे-बाजे के संग पहुंचे संत भवन

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आचार्यश्री सूरीश्वर जी का ससंघ टीएमयू में मंगल प्रवेश। आचार्यश्री बोले, दिगंबर परम्परा की मानिंद श्वेताम्बर में भी शांतिधारा मान्य। टीएमयू कैंपस की भव्यता को देखकर सरस्वती उपासक बोले, अद्वितीय। धर्मधुरंधर सूरीश्वर जी महाराज करेंगे मुरादाबाद की धरा पर मंगल चातुर्मास। कुलाधिपति का अनुरोध स्वीकारा, दसलक्षण महापर्व में भी बरसेगा वात्सल्य।

लव इंडिया मुरादाबाद । परम पूज्य श्रुतभास्कर, सरस्वती उपासक, श्रुतज्ञान-मंदिर संरक्षक, वर्तमान गच्छाधिपति, आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय धर्मधुरंधर सूरीश्वर जी महाराज का ससंघ तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में सोमवार की सुबह मंगल प्रवेश हुआ।

जैसे ही सुबह करीब पौने आठ बजे वह यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के संग-संग जिनालय परिवार ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। परम पूज्य श्रुतभास्कर का ससंघ टीएमयू में पहली बार मंगल आगमन हुआ है। गाजे-बाजे और जयकारों के बीच आचार्यश्री ससंघ जिनालय पहुंचे, जहां कुलाधिपति ने विधि-विधान से आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन किया। इसके बाद जिनालय में शांतिधारा की गई।

पूजा-अर्चना और आचार्यश्री के आशीर्वचन के बाद वह ससंघ संत भवन की ओर कूच कर गए।जिनालय में स्वर्ण कलश से भगवान शांतिनाथ की शांतिधारा का सौभाग्य कुलाधिपति के संग-संग श्रावकों को भी मिला। कुलाधिपति का यह भी परम सौभाग्य रहा, आचार्यश्री ने स्वंय शांतिधारा कराई और शांति स्त्रोत पढ़ा। आचार्यश्री बोले, दिगंबर परम्परा की मानिंद श्वेताम्बर परम्परा में भी शांतिधारा मान्य है। उन्होंने एक छोटी-सी कहानी के जरिए शांतिधारा के महत्व को बताया।

उल्लेखनीय है, आचार्यश्री का इस साल चातुर्मास मुरादाबाद के श्री सुमतिनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर में होगा। कुलाधिपति ने आचार्यश्री से विनम्र अनुरोध किया, दस लक्षण महापर्व के दौरान वह अपना वात्सल्य टीएमयू परिवार पर न्यौछावर करें, आचार्यश्री ने जयघोष के बीच अपनी सहमति प्रदान की।

आचार्यश्री और उनके संघ के मंगल आगमन पर निदेशक पीएंडडी श्री विपिन जैन के अलावा मुरादाबाद जैन समाज की ओर से श्री विनय जैन, श्री अभिनंदन जैन, श्री प्रतीक जैन की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही। इन महानुभावों के अलावा डॉ. विनीता जैन, श्रीमती विनीता जैन, श्री संजय जैन, श्री वैभव जैन आदि ने भी पुण्य कमाया।

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