पारिवारिक मर्यादाओं के लिए वाल्मीकि रामायण से बढ़कर कोई श्रेष्ठ ग्रंथ नहीं पृथ्वी पर
महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे।एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे, वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के एक जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि के मुख से खुद हीमां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।
नामक श्लोक फूट पड़ा और यही महाकाव्य रामायण का आधार बना।यह श्लोक महर्षि के मन मस्तिष्क में सदैव गुंजायमान रहा क्योंकि उन्होंने आज से पूर्व उन्होंने इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं किया था। जब प्रत्येक शब्द का गणना किया गया तो 8-8 अक्षरों से यह छंद बंद हो गया। जिसे लय दिया जाना सुलभ हो गया। इसको गाया जा सकता था और उच्च स्वर में वाचन भी किया जा सकता था।
महर्षि को यह ज्ञात था कि उन्हें राम के जीवन पर महाकाव्य की रचना करनी है। उन्हें रचना करने की विधि ज्ञात नहीं थी, इस छंद के माध्यम से उन्होंने पूरे महाकाव्य की रचना ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन से की। तपस्वी वाल्मीकि ने तप और स्वाध्याय में लगे रहने वाले वक्ताओं में श्रेष्ठ मुनिवर नारद जी से पूछामुने इस समय संसार में गुणवान् धर्मज्ञ सत्यवक्ता दृढ़प्रतिज्ञ समस्त प्राणियों का हितसाधक विद्वान् मन पर अधिकार रखने वाला एकमात्र प्रियदर्शन पुरुष कौन है महर्षे मैं यह सुनना चाहता हूँ।
आप ऐसे पुरुष को जानने में समर्थ हैं। यह सुनकर नारद जी अच्छा सुनिये कहकर बोले मुने आपने जिन बहुत से दुर्लभ गुणों का वर्णन किया है उनसे युक्त इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न एक ऐसे पुरुष हैं जो राम नाम से विख्यात हैं। वे ही मन को वश में रखने वाले महाबलवान् कान्तिमान धैर्यवान् और जितेन्द्रिय हैं।
धर्म के ज्ञाता सत्यप्रतिज्ञ तथा प्रजा के हितसाधन में लगे रहने वाले हैं। वे आर्य एवं सब में समान भाव रखने वाले हैं उनका दर्शन सदा ही प्रिय लगता है। अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है।
इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोलविद्या के भी प्रकाण्ड पण्डित थे।उनका आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर था। वाल्मीकि-रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं जिसके एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री मंत्र के एक अक्षर का ‘सम्पुट’ लगा हुआ है, इसके सात कांड, सौ उपख्यान, पांच सौ सर्ग हैं जो ‘अनुष्टुप छंद’ में हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में हमें रामायण के भिन्न-भिन्न पात्रों के चरित्रों द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है।
रामायण के नायक श्रीराम चंद्र जी हैं जिनके माध्यम से उन्होंने गृहस्थ धर्म, राज धर्म तथा प्रजाधर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है। पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ पृथ्वी पर कोई नहीं है। उन्होंने सारे संसार के लिए युगों-युगों तक की मानव संस्कृति की स्थापना की है।