अखण्ड भारत का सपना था सरदार वल्लभ भाई पटेल का

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लव इंडिया। 31 अक्टूबर को लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय एकता दिवस को पहली बार 2014 में नई दिल्ली में भारत की केंद्र सरकार द्वारा निश्चित किया गया था ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था । लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया ।स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में था । यह आंदोलन अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट के लिए किसानों द्वारा किया गया था, जिसकी अस्वीकृति पर सरदार पटेल, गांधी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्त्व किया । अंततः सरकार झुकी और उस वर्ष करो में राहत दी गई। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। इन्होंने 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्त्व भी किया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुए एक प्रमुख किसान आंदोलन का नेतृत्त्व सरदार पटेल ने किया । उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी । पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। इस आन्दोलन की सफलता के बाद वहाँ की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। सरदार पटेल को गांधी जी की अहिंसा नीति ने प्रभावित किया । इसलिये गांधी जी द्वारा किये गए सभी स्वतंत्रता आंदोलन जैसे- असहयोग आंदोलन, स्वराज आंदोलन, दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे सभी आंदोलनों में सरदार पटेल की भूमिका महत्वपूर्ण थी ।1946 में जैसे-जैसे भारत को स्वाधीनता मिलने की उम्मीदें बढ़ रहीं थी वैसे-वैसे कांग्रेस के द्वारा सरकार के गठन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी थी। सभी की निगाहें कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर टिकी हुई थीं क्योंकि ये लगभग निश्चित हो चुका था कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा वही भारत के प्रधानमंत्री के पद के लिए भी चुना जाएगा। भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनने के कारण कांग्रेस के अधिकतर नेता जेल में थे। छह साल से अध्यक्ष पद का चुनाव ना हो पाने के कारण मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली हुई थी।

1946 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे, मौलाना आज़ाद भी इस चुनाव नें भाग लेना चाहते थे और साथ ही प्रधानमंत्री भी बनने के इच्छुक थे। लेकिन महात्मा गांधी के साफ मना कर देने के बाद उन्हें यह विचार छोड़ना पड़ा। मौलाना आजाद को मना करने के साथ-साथ गांधी ने ये स्पष्ट कर दिया था कि उनका समर्थन नेहरू के साथ है।

29 अप्रैल 1946 अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने की आखिरी तिथि थी। इस नामांकन में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि नेहरू को गांधी के समर्थन के बाद भी राज्य की कांग्रेस समिति द्वारा समर्थन नहीं मिला। इतना ही नहीं, 15 राज्यों में से 12 राज्यों ने सरदार पटेल को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावित किया और बाकी 3 राज्यों ने किसी का भी समर्थन नहीं किया। 12 राज्यों द्बारा मिला समर्थन सरदार पटेल को अध्यक्ष बनाने के लिए बहुत था।

गांधी चाहते थे कि नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद को संभाले इसलिए उन्होंने जे बी कृपलानी पर दबाव डाला कि वे कांग्रेस कार्य समिति के कुछ सदस्यों को नेहरू को समर्थन देने के लिए मनाए। गांधी के दबाव में कृपलानी जी ने कुछ सदस्यों को इस बात के लिए मना भी लिया। नेहरू को समर्थन दिलवाने के लिए जो भी गांधी कर रहे थे वो कांग्रेस के संविधान के विरुद्ध था। मात्र इतना ही नहीं, इसके बाद गांधी ने सरदार पटेल से भेंट कर कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार की दौड़ से हट जाने का निवेदन किया। सरदार पटेल सारी कूटनीति को समझते हुए भी कांग्रेस की एकता बनाए रखने के लिए गांधी का ये निवेदन स्वीकार कर लिया जिसके कारण नेहरू प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार बन गए।

नेहरू और पटेल के प्रति गांधी के रूख पर हुए अध्ययन के अनुसार गांधी को मॉडर्न विचार पसंद थे जिसकी झलक उन्हें विदेश में पढ़े नेहरू में दिखती थी। उन्हें लगता था कि नेहरू की नरम नीति देश के लिए सफल साबित होगी। दूसरी वजह यह थी कि नेहरू ने ये स्पष्ट कर दिया था कि वह किसी व्यक्ति के अधीन कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे। नेहरू से पक्षपाती स्नेह के कारण गांधी नेहरू की हार को अपनी हार के रूप में देख रहे थे।

कुछ सूत्रों का कहना है कि नेहरू ने तो गांधी को अध्यक्ष नहीं बनाए जाने पर अलग पार्टी बनाने तक की धमकी दे दी थी जिससे अंग्रेज़ों को भारत की स्वतन्त्रता टालने का मौका मिल जाता और साथ ही वह पूरे देश के सामने नेहरू द्वारा लज्जित हो जाते, इसी के चलते गांधी ने अपनी वीटो पावर का इस्तमाल नेहरू के पक्ष में किया। संभवतः यही कारण है कि गांधी ने ये कहा भी था कि पद और सत्ता की लालसा में नेहरू अंधे हो गए हैं।

राजेंद्र प्रसाद ने इस पर अत्यन्त दुःख जताते हुए कहा कि गाँधीजी ‘‘ने एक बार फिर ‘चमकदमक वाले नेहरू’ की लिए अपने भरोसेमंद सिपाही को त्याग दिया है’’. राजेंद्र बाबू ने यह आशंका भी व्यक्त की है कि ‘‘नेहरू अंग्रेजों के तौरतरीकों पर चलेंगे।’’ राजेंद्र बाबू जब ‘‘एक बार फिर’’ वाक्य का प्रयोग कर रहे थे तब वास्तव में उनका संकेत इस तथ्य की ओर था कि 1929, 1937, 1946 में भी नेहरू के लिए पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष पद से वंचित किया गया था, वह भी सदैव अंतिम समय पर पटेल ने दूसरे नंबर पर रहना दो कारणों से स्वीकार कर लिया। पहला तो यह कि उनके लिए पद कोई महत्व नहीं रखता था; दूसरा यह कि नेहरू इस बात पर अड़े हुए थे कि ‘‘या तो वे सरकार में नंबर वन रहेंगेे या अलग हट जाएंगे। वल्लभभाई ने विचार किया कि गद्दी मिली तो नेहरू संतुलित हो जाएंगे वरना वे विपक्ष में चले जा सकते हैं। पटेल ने इस स्थिति को टालने का फैसला किया, जिससे देश में कड़वाहट भरा विभाजन न हो।’’

देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने। 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण किया। उड़ीसा से 23, नागपुर से 38, काठियावाड़ से 250 तथा मुंबई, पंजाब जैसे 562 रियासतों को भारत में मिलाया । जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद राज्य को छोड़कर सरदार पटेल ने सभी रियासतों को भारत में मिला लिया था। इन तीनों रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवंबर 1947 को भारतीय संघ में मिला लिया गया और जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया ।हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी । वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा । हैदराबाद में काफी मात्रा में हथियारों के आयात से सरदार पटेल चिंतित हो गए । अतः 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई । तीन दिन बाद निजाम ने आत्म समर्पण कर भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।

सन 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से गुजरात में एकता की मूर्ति (स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी) स्मारक बनाया गया।562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना सरदार की महानतम देन थी। किसी भी देश का आधार उसकी एकता और अखंडता में निहित होता है और सरदार पटेल देश की एकता के सूत्रधार थे । राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को सदैव स्मरण किया जायेगा।

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