litterateur : अज्ञात साहित्यकारों की कृतियां खोजकर उजागर किया पुरातत्ववेत्ता मिश्र ने

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मुरादाबाद : प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता एवं साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की ओर से तीन दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि मिश्र ने रुहेलखंड क्षेत्र के इतिहास को उजागर करने के साथ ही अनेक ऐसे अज्ञात साहित्यकारों की कृतियां खोजीं जो अतीत में दबी हुई थीं।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा चंदौसी के लब्ध प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में 22 मई 1932 को जन्मे सुरेन्द्र मोहन मिश्र का प्रथम काव्य संग्रह मधुगान वर्ष 1951 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1955 में उनके प्रकाशित दूसरे संग्रह ‘कल्पना कामिनी’ में श्रृंगार रस से भीगी रचनायें थीं। वर्ष 1982 में आपकी हास्य कविताओं का एक संग्रह कविता नियोजन’ प्रकाश में आया । इसके अतिरिक्त वर्ष 1993 में बदायूं के रणबांकुरे राजपूत(इतिहास) ,वर्ष 1999 में हास्य व्यंग्य काव्य संग्रह कवयित्री सम्मेलन, वर्ष 1997 में इतिहास के झरोखों से सम्भल (इतिहास) ,2001 में ऐतिहासिक उपन्यास शहीद मोती सिंह, वर्ष 2003 में मुरादाबाद जनपद के स्वतंत्रता संग्राम (काव्य), मुरादाबाद व अमरोहा के स्वतंत्रता सेनानी(काव्य), पवित्र पंवासा (ऐतिहासिक खण्ड काव्य), मीरपुर के नवोपलब्ध कवि (शोध) तथा वर्ष 2008 में आजादी से पहले की दुर्लभ हास्य कविताएं (शोध) प्रकाशित हुईं । उनका निधन 22 मार्च 2008 को मुरादाबाद में हुआ।
उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने बताया कि शाहजहांपुर के स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय में स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के नाम से संग्रहालय स्थापित है । इसके अतिरिक्त बरेली में पांचाल संग्रहालय और रामपुर रजा लाइब्रेरी में श्री मिश्र की पुरातात्विक धरोहर सुरक्षित है । उन्होंने मिश्र जी के अनेक प्रकाशित आलेख भी प्रस्तुत किये।
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कीर्तिशेष पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने एक गीतकार से अलग एक विशुद्ध हास्य कवि के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। एक पुरातत्वविद के रूप में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। प्रख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मिश्र जी की मिसाल एक समंदर से दी जा सकती है जिसकी गहराई में बहुत कुछ छुपा हुआ है मगर वो खामोश है।


केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि सुरेन्द्र मोहन मिश्र जीवन की कटुताओं के बीच कवि हृदय को जीवित रखने में सफल हुए हैं वे इतिहासकार हैं तो पुरातत्ववेत्ता भी ,उपन्यासकार हैं तो कविता की मधुरता से ओतप्रोत भी । उनके गीतों में प्रकृति इठलाती है, नर्तन करती है, हृदय में माधुर्य भी घोलती है।
डॉ अजय अनुपम, अशोक विश्नोई, डॉ कृष्ण कुमार नाज, लव कुमार प्रणय (चन्दौसी), डॉ मक्खन मुरादाबादी, राजीव प्रखर,श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने संस्मरण प्रस्तुत कर स्मृतिशेष मिश्र के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
कनाडा निवासी उनकी सुपुत्री प्रतिमा शर्मा ने कहा कि अपने ध्येय और जूनून के लिए अपनी आरामदायक जीवन को परित्याग करने वाले, 18 साल की उम्र में अपना पहला काव्य ग्रन्थ लिखने वाले, 23 साल की उम्र में दुर्लभ पुरातत्त्व की वस्तुुओं का संग्रह और निजी पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना करने वाले मस्त, मलंग, पुरातत्ववेत्ता, कवि, लेखक और साहित्यकार थे।
मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) राजीव सक्सेना ने कहा स्मृतिशेष मिश्र उन विरले हिन्दी साहित्यकारों में से है जिन्होंने स्थानीय इतिहास, विशेषकर जनपदीय इतिहास में काफी रुचि ली है। रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि सुरेंद्र मोहन मिश्र धुन के पक्के थे । कई -कई दिन तक पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं को खोजने में खपा देते थे और फिर उपेक्षित मिट्टी के टीलों, नदियों आदि से एक प्रकार से कहें तो अनमोल मोती ढूँढ कर लाते थे। दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकारआमोद कुमार ने कहा कि स्मृति शेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र मूल रूप से रागात्मक मधुरिम गीतों के गीतकार थे।
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने उनके बंद खिड़की और खामोशी एकांकी की चर्चा करते हुए कहा इसमें प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से एक नि:संतान दम्पत्ति के मनोभावों का सटीक प्रस्तुतिकरण बड़े ही कलात्मक ढंग से किया गया है।
डॉ प्रीति हुंकार ने कहा कि उनकी रचनाओं में राष्ट्र की वन्दना ,प्रेम की पीड़ा ,संवेदना ,जीवन के विविध रूपों, ग्रामीण परिवेश प्रकृति का अद्भुत वर्णन के दर्शन होते हैं । डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि स्मृतिशेष श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र साहित्य जगत के ध्रुव तारे के समान थे ,जिनका प्रकाश युगों -युगों तक आने वाली साहित्यिक पीढ़ी का मिलता रहेगा। फरहत अली खान ने कहा उन्होंने अज्ञात साहित्यकारों की कृतियां खोजीं और उन्हें एक ख़ास रचनाकार के तौर पर सँवारा । इंसानी तहज़ीब से मुहब्बत और उसे जानने-खोजने की चाहत ही ने उन्हें एक महान पुरातत्ववेत्ता बनाया।
विप्र वत्स शर्मा, डॉ इंदिरा रानी, दुष्यंत बाबा, अमितोष शर्मा ( दिल्ली), रंजना हरित (बिजनौर), वीरेंद्र सिंह बृजवासी, विवेक आहूजा, अशोक विद्रोही, आदर्श भटनागर, रेखा रानी (गजरौला), रमेश अधीर, मनोरमा शर्मा, तिलक राज आहूजा, डॉ प्रदीप शर्मा, त्यागी अशोक कृष्णम आदि ने विचार व्यक्त किये। आभार उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने व्यक्त किया ।

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