पीड़ा के अमर गायक थे रामावतार त्यागी

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डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद । प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर  ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की ओर से तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि रामावतार त्यागी पीड़ा के अमर गायक थे । उनके गीत ‘मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित’ तथा ‘ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है’ पूरे देश में लोकप्रिय हैं। यही नहीं उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी व संजय गांधी की हिन्दी स्पीकिंग क्लास के लिए निजी शिक्षक भी नियुक्त किया था ।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ  की पन्द्रहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी के शुरुआती जीवन, उनके जीवन संघर्षों और साहित्यिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया और उनकी प्रतिनिधि रचनाएं पटल पर रखीं। बताया कि 8 जुलाई 1925 को जनपद सम्भल के कुरकावली नामक ग्राम के त्यागी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पहला काव्य संग्रह वर्ष 1953 में ‘नया खून’ नाम से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात ‘आठवां स्वर’ , ‘मैं दिल्ली हूं’, ‘सपने महक उठे’, ‘गुलाब और बबूल’, ‘ गाता हुआ दर्द’, ‘ लहू के चंद कतरे’, ‘गीत बोलते हैं’ काव्य संग्रह और उपन्यास ‘समाधान’ प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में  उनकी कृति ‘चरित्रहीन के पत्र’  पाठकों के समक्ष आई । उनका निधन 12 अप्रैल 1985 को हुआ। स्मृतिशेष त्यागी जी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने उनके दुर्लभ चित्र प्रस्तुत किए।


प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से उन्होंने दो-दो हाथ भी किये हैं। उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलधार बरसात से कमाई गई खेती है।
सम्भल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार ‘मानवता का संसार’ भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा -उनकी रचनाओं को पढ़कर आभास हो जाता है कि वह सामाजिक परिदृश्य, जिंदगी की विषमताओं, व्यवस्था की विसंगतियों, सामाजिक ताने बाने और मानवीय स्वभाव पर बड़ी पैनी नजर रखते थे, और अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से इन्हें उजागर करते थे I उनकी रचनाओं में उनकी खुद्दारी और स्वाभिमान की स्पष्ट झलक मिलती है, स्वाभिमान के आगे व्यवस्था से समझौता करना उन्का स्वभाव नहीं है, और उनके स्वभाव की यही विशेषता उनकी रचनाधर्मिता में मिलती है I साथ ही एक खुद्दार आदमी की अहमियत जताते हुए वह व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। उनकी रचनाओं में विरोध के साथ साथ दर्द और पीड़ा को भी बड़ी सहजता से व्यक्त किया गया है:
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा जो स्वयं गीत बन गए ,निर्झर की भांति अनवरत बहते रहे , साहित्यिक परम्परा में आज भी अपनी उपस्थित का भान करा रहे स्मृति शेष रामावतार त्यागी वास्तव में एक अवतार थे , राम की तरह कंटकों में असहज जीवन को सहज जिया और हमें दे गए अमूल्य निधि अपने गीतो की एक बृहत, बोध ,समर्पण भरी जीवन को जीने की विधा। उनके गीत वेदनाग्रस्त ह्र्दय को साहस से लबालब करने की सामर्थ्य प्रदान करते है ।


रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि रामावतार त्यागी ने जो गीत लिखे ,वह उनकी जुझारू फौलादी मानसिकता को प्रकट करने वाले हैं। प्रत्येक गीत में विपरीत परिस्थितियों से जूझने का आवाहन है और टूटते रहने के बाद भी न टूटने का संकल्प है । आत्मबल से भरपूर तथा अकेलेपन के बाद भी संसार को परिवर्तित कर सकने की दृढ़ इच्छाशक्ति उनकी रचनाओं में मुखरित हुई है ।
मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा- आज मेरी जो कुछ लिखने पढ़ने में रुचि है उसका बड़ा कारण रामावतार त्यागी के लिखे शब्दों का तिलिस्म था । एक बार उन्हें संभवतः 1976 में एक कवि सम्मेलन में सुनने का अवसर मिला . उन्होंने जैसे ही कोई कविता पढ़नी शुरू की श्रोताओं की ओर से ज़बरदस्त शोर हुआ “एक हसरत थी “। यह वो गाना था जो उन्होंने फ़िल्म ज़िंदगी और तूफ़ान के लिए लिखा था और उन दिनों रेडियो पर काफ़ी बज रहा था । उन्होंने गाना फ़िल्मी तरीक़े नहीं अपने अन्दाज़ में पढ़ा।


अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा – “मनुष्य से मनुष्यत्व तक की यात्रा के यायाव थे श्री रामावतार त्यागी जी कवि का जिद्दी और बेबाक  मन , रूढ़िवादिता को तोड़ देने का विद्रोह, मनमाना स्वभाव उनकी रचनाओं के विभिन्न परिवेश ही हैं ।विविध आयामों में विचरण करती उनकी कविताएँ  कभी अपने अस्तित्व के झंडे गाड़ती हैं तो कभी सामाजिक सरोकारों में झूलती नज़र आती है। उनके तेवर दुष्यंत कुमार और श्री सहादत हसन मंटो के तेवर लगते हैं और अपने समय के सर्वाधिक मुखर ,बीमार,जीर्णशीर्ण  रूढ़िगत परम्पराओं का विरोध करते हुए एक नयी पंक्ति खींच कर अपने आप को नई उर्जा से सींचते हुए ,नई ठसक के साथ अपने आप को सिद्ध करते  हुए दृष्टिगोचर होतें हैं।
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा – श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते हैं,पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं।क्योंकि जो व्यक्ति अपनी ‘तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना’ करे,वह साधारण हो भी नहीं सकता।
उनका अंतर ज्योतिमान था,इसीलिए बाहर का घना तम भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।उनकी जवाबदेही स्वयं के प्रति रही,उनकी लड़ाई स्वयं से रही।इसी कारण बाहर का लोभ, दुःख,भय और रुकावटें उनका मार्ग अवरुद्ध ही नहीं कर पाये और स्वयं से उन्होंने हर समर सावधानी पूर्वक लड़ा,क्योंकि वह जानते थे स्वयं से हारे हुए को ईश्वर भी संबल नहीं दे सकता।
वह आत्मजयी थे, अतः वह हर नकारात्मकता में भी सकारात्मकता खोजने में सफल होते और इस सकारात्मकता को कमजोर,संकटग्रस्त और दु:खी मानव समाज को अपने गीतों के माध्यम से अग्रसारित करते। उन्होंने स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी को अर्पित करते हुए कहा —
पंक्ति पंक्ति चरितार्थ हुई सी, शब्द शब्द में कौशल बोले।
अर्थ निहित ज्यों अक्षर अक्षर,उच्च भाव हृदय के खोले।
घटना घटना पैनी दृष्टि,रखकर कलम चलाने वाले,
अभिनंदन है कठिन आपका,हमने सारे शब्द टटोले।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी का महान रचनाकर्म आपाधापी से भरे इस युग में भी मनुष्य को निरंतर जीवन के सत्य का भान कराता रहता है। चाहे वह समाज में व्याप्त विद्रूपताओं की ओर संकेत करते हुए उनका हल हो अथवा मानवीय संवेदना को झिंझोड़ते हुए उसे उत्कर्ष की ओर ले जाने का अभियान, प्रत्येक स्तर पर उनका रचनाकर्म जहाॅं जीवन के सत्य को ही पाठकों के सम्मुख रखता है यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता के मानकों पर पूर्णतया खरी सिद्ध हुई हैं।


कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा – “ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है”जैसै कालजयी गीत की रचना करने वाले निश्चय ही अपने गीतों के माध्यम से साहस की नयी परिभाषा गढ़कर अमर हो गये..ज़िंदगी से दो टूक प्रश्न पूछकर आगे बढ़ो का सिद्धांत बनाना और नित आगे बढ़ते चले जाना, यह विरले हीx देखने को मिलता है.. जीवन के दार्शनिक रूप को सहज भावों में ढालना कवि की बड़ी चुनौती और उपलब्धि दोनो होती है और कीर्ति शेष रामावतार त्यागी जी ने इस तथ्य को बड़ी ही कुशलता से अपने गीत ग़ज़लों में ढाला है.. व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न और जवाब दोनो उनके गीतों में मिलते हैं.. और पाठकों को लाजवाब कर देते हैं। उनकी रचनाओं में विद्रोही तेवर,राष्ट्रवाद की भावना,जनजागरण,दार्शनिकता व कहीं कहीं कल्पनाओं का समावेश भी मिलता है।वह पूर्वाग्रहों की बेड़ियों को भी तोड़ते नज़र आते हैं।दर्द से रिश्ता निभाती उनकी रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी हैं।
सम्भल के साहित्यकार राजीव कुमार भृगु ने कहा -उनकी रचनाएं आज भी लोगों के मन पर उतना ही प्रभाव छोड़ती है जितना उनके समय में छोड़ती थी। उन्हें पीड़ा का गायक माना जाता है लेकिन देशभक्ति की भावना उनके मन में हमेशा रही। उनके कुछ गीत मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। उन्होंने गजलें और गद्य लेखन भी किया लेकिन उनका मनपसंद लेखन केवल गीत ही रहा ।
रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि
उनके गीतों में शिल्प और भाव की जो श्रेष्ठता विद्यमान है वैसा ही मेयार बह्र ,तग़ज़्ज़ुल् और कहन के स्तर पर मुझे उनकी ग़ज़लों में भी दिखाई दिया।उनकी एक ग़ज़ल, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया, के कुछ अशआर का ख़ास तौर से उल्लेख करना चाहूँगा–
आँखों का काम कान से लेने लगे हैं लोग,
फिर पूरे इत्मिनान से लेने लगे हैं लोग।
रामपुर के साहित्यकार शिव कुमार चंदन ने कहा – जीवन के अनेक संघर्षों को सहते हुए श्री त्यागी जी ने अपनी रचनाओं में प्रकृति चित्रण ,मानवीय सम्वेदनाएँ ,जन सरोकारों एवं राष्ट्र भक्ति के भाव पिरोए हैं । अनेक काव्य मंचों ,अनेक कवि सम्मेलनों पर मनोहारी काव्य पाठ की प्रस्तुति के प्रभाव से काव्य साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हो कर साहित्य जगत में अविस्मरणीय हो गये ।


गजरौला की कवयित्री रेखा रानी ने कहा – रामावतार त्यागी गीत की दुनिया का चमकते हुए सितारे थे। एक एक कर क्रमशः इतने विरले व्यक्तित्व की गूढ़ रहस्य जानकारियां इस महान पटल से प्राप्त होती हैं इसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूं आदरणीय डॉ मनोज कुमार रस्तोगी जी का। उनकी यह पंक्तियां बार बार गुनगुनाने का दिल चाहता है –
मुझको भी प्यार मिला दो दिन
कोमल भुज हार मिला दो दिन
उन आंखों में रहने का भी
मुझको अधिकार मिला दो दिन।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा– त्यागी जी का हिंदी साहित्य जगत युगों – युगों तक ऋणी रहेगा ।उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा देश के गांवों से लेकर महानगरों तक का सजीव चित्रण इस प्रकार चित्रित किया है ,कि उसको पढ़ते हुए मन अनायास ही यथार्थ के धरातल पर उतर जाता है ।उनके गीत और कविताएं मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती हैं । उनका व्यक्तित्व एक खुली किताब की तरह था ,जो सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर था ,जो उनके चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता थी ।


सम्भल के युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा – उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कई प्रकार के रंग-रूपों से साहित्य का श्रंगार किया है। उनकी एक-एक पंक्ति के गंभीर अर्थ को समझने हेतु,मनन-चिन्तन करने की आवश्यकता होती है। त्यागी जी के संपूर्ण जीवन में, सुख से कम और परेशानियों से ज्यादा नाता रहा है, उनका यह दर्द उनकी रचनाओं में उभरता भी है ।
साहित्यकार नकुल त्यागी ने कहा –देश के महान गीतकार स्मृति शेष श्री रामावतार त्यागी मुख्य रूप से पीड़ा और देश प्रेम की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। वे मंच पर कवि सम्मेलनों में बहुत बड़े-बड़े कवि श्री धर्मवीर भारती, श्री शेरजंग गर्ग, डॉ हरिवंश राय बच्चन, श्री श्याम नारायण पांडे, श्री कमलेश्वर आदि के समकालीन हैं। उन्होंने उनसे भेंट का संस्मरण भी प्रस्तुत किया।
जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि त्यागी जी के गीत पूरे भारत में ही नहीं,विश्व भर में भारतीयों द्वारा गुनगुनाएं जातें है। उनके गीत की ये दो पंक्तियां ही बहुत कुछ कह जाती हैं—-
 ” एक घटना से नही बनती कहानी
    हर कहानी में कई इतिहास होते हैं”
कार्यक्रम में स्मृतिशेष त्यागी के अनुज रामनिवास त्यागी के सुपुत्र राहुल त्यागी, शोधादर्श पत्रिका के सम्पादक अमन कुमार त्यागी, शशि त्यागी ने भी हिस्सा लिया । आभार सन्देश पवन त्यागी एवं त्यागी अशोका कृष्णम ने व्यक्त किया ।

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