आदिपुरुष में क्रिएटिविटी के नाम पर नंगई का नेताओं को भी विरोध करना चाहिए

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आपने यदि रामायण पढ़ी/देखी होगी तो पता ही होगा कि रावण टोले में कुछेक लोग भेष बदलने में माहिर थे। जैसे स्वर्ण मृग बनने वाला मारीच। संजीवनी बूटी लाने जा रहे हनुमान का रास्ता रोकने के लिए साधु बना कालनेमि। रावण के कहने पर वानर बन राम की सेना में घुसपैठ करने वाले सुक और सारण। राजनीति में भी ऐसे चरित्र भरे पड़े हैं जो रावण टोले के इन बहुरूपियों जैसे ही हैं।

आदिपुरुष (Adipurush) की थू-थू होते देख राजनीति के इन बहुरूपियों ने रामभक्त का भेष ओढ़ लिया है। राम के अस्तित्व को नकारने वाली पार्टी का मुख्यमंत्री हो या फिर रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को बदनाम करने और राम मंदिर निर्माण में अड़ंगा डालने के लिए ‘जमीन घोटाले’ की कहानी गढ़ने वाली पार्टी के सांसद, सब इस समय रामभक्त हुए जा रहे हैं। आदिपुरुष के स्तरहीन संवादों के लिए भी बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उससे जवाब चाहते हैं।

अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ही देखिए। उन्होंने ‘आदिपुरुष’ में किरदारों के चित्रण और डायलॉग को आपत्तिजनक बताया है। कहा है कि जनता ने माँग की तो राज्य में ‘आदिपुरुष’ को प्रतिबंधित भी कर सकते हैं। ट्वीट कर पूछा है कि ऐसी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास कैसे किया। केंद्र सरकार को इसका जवाब देना होगा।

इसके अलावा पत्रकारों से बातचीत में यह भी पूछ लिया कि ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ का समर्थन करने वाले नेता इस फिल्म पर चुप क्यों हैं।**बघेल उस कॉन्ग्रेस के नेता हैं जो ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की राजनीति की पुरोधा है। जिसके ‘आदिपुरुष’ पंडित जवाहर लाल नेहरू अयोध्या में रामलला की मूर्ति नहीं देखना चाहते थे। इसी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट में राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था। ये वह पार्टी है जिसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पच नहीं रहा। इसी पार्टी के नेताओं ने राम मंदिर निर्माण के धन संग्रह के अभियान पर लांछन लगाए थे।

जाहिर है कि आदिपुरुष पर बघेल का रोना उनकी राजनीति का हिस्सा है। एक तो उनके राज्य में इसी साल चुनाव होने हैं। उनकी पार्टी भले कर्नाटक की सत्ता में आने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेंडे को लागू करने में लगी हो, लेकिन मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक चुनावी प्रदेशों में सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि जिस फिल्म को ओम राउत ने निर्देशित किया है, जिसके संवाद मनोज मुंतशिर ने लिखे हैं, उसके लिए भी वे बीजेपी से जवाब माँग रहे हैं, जैसे बीजेपी की फिल्म प्रोडक्शन की ईकाई भी हो।

वे यह बताना चाहते हैं कि सेंसर बोर्ड पर बीजेपी का कब्जा है। फिर तो उन तमाम बॉलीवुड फिल्मों के लिए कॉन्ग्रेस को जवाब देना चाहिए जो उसके सत्ता में रहते हुए सेंसर बोर्ड से पास हुए और जिनमें क्रिएटिविटी के नाम पर हिंदुओं को बदनाम करने और उनके अराध्यों का मजाक उड़ाने तक के धतकर्म किए गए हैं। आदिपुरुष की आलोचना के बहाने बघेल ने कश्मीर फाइल्स और केरल स्टोरी का जिक्र कर अपनी पार्टी के उस लाइन को भी आगे बढ़ाने का काम किया है, जिसमें हिंदुओं की पीड़ा दिखाना सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना माना जाता है।

आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी ‘आदिपुरुष’ के बहाने बीजेपी को घेरने की कोशिश की है। कहा ​है कि BJP का ना हिन्दू धर्म में यकीन है। ना वे भगवान राम को मानते हैं। ना उनका रामायण और रामचरितमानस से कोई लेना-देना है। ये वही संजय सिंह हैं जो कभी ‘हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ कहा करते थे। ये वही संजय सिंह हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले अयोध्या में ‘जमीन घोटाले’ की कहानी गढ़ी थी।

इन्हीं संजय सिंह की पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने एक रैली में कहा था, “जब बाबरी मंदिर का ध्वंस हुआ तब मैंने अपनी नानी से पूछा कि नानी आप तो अब बहुत खुश होंगी? अब तो आपके भगवान राम का मंदिर बनेगा। नानी ने जवाब दिया- ना बेटा, मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़ कर ऐसे मंदिर में नहीं बस सकता।” आप वही पार्टी है जिसके नेता कभी ‘मंदिर वहीं बनाएँगे, पर तारीख़ नहीं बताएँगे’ वाले नैरेटिव को आगे बढ़ाते थे। इसी पार्टी के मनीष सिसोदिया हैं जिनका कभी कहना था कि अयोध्या में राम मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी बननी चाहिए।

आदिपुरुष में क्रिएटिविटी के नाम पर जो नंगई की गई है, उसका विरोध हो रहा है। नेताओं के लिए भी यह अपच है तो उन्हें भी विरोध करना चाहिए। लेकिन इसमें राजनीतिक एजेंडा घुसेड़ने से पहले उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि जनता केवल रामायण के रावण टोले से ही परिचित नहीं है, वह राजनीति के रावण टोले को भी बखूबी पहचानती है। वो झट से राम की सेना में सुक और सारण के घुसपैठ को भी पकड़ लेती है।

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