धोखाधड़ी, सेवाओं में कमी, दोषयुक्त माल… जैसे मामलों में वृद्धि, उपभोक्ता शोषण का प्रतीक
लव इंडिया, मुरादाबाद। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रभाव मे आने के उपरान्त माल व सेवाओं के लिये उपभोक्ता बाज़ारों मे भारी परिवर्तन आया है। आधुनिक बाज़ारों मे माल व सेवाओं का अम्बार लग गया है।
जिला उपभोक्ता आयोगों को 50 लाख तक के मामले सुनने का अधिकार
उपभोक्ताओं के हितों के बेहतर संरक्षण के लिए और उस प्रयोजन के लिए उपभोक्ता विवादों के समाधान के लिए उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना के उद्देश्य से ही उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम वर्ष 1986 मे अधिनियमित किया गया जिसके अंतर्गत उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों का गठन हुआ जो कि काफ़ी हद तक उपभोक्ता विवादों के निराकरण मे उपयोगी साबित हुआ लेकिन भ्रामक विज्ञापन, टेलीमार्केटिंग, बहुस्तरीय विपरण, सीधे विक्रय और इ-वाणिज्य ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए नई चुनौतियाँ उत्पन्न की उपभोक्ताओं को क्षति से बचाने हेतु समुचित और शीघ्र कार्यपालक हस्तक्षेप की आवश्यकता को देखते हुए ही वर्ष 2019 मे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लाया गया, जोकि 20 जुलाई,2020 से लागू हुआ। वर्तमान मे जिला उपभोक्ता आयोगों को 50 लाख तक के मामले तथा 50 लाख से ऊपर के मामले राज्य आयोग को सुनने का अधिकार है।
अमेरिका में सबसे पहले लागू हुए उपभोक्ता अधिकार
प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को उपभोक्ताओं के अधिकारों और उनकी आवश्यकताओं के बारे मे जागरूकता फैलाने के लिए विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है। 15 मार्च को राष्ट्रपति जॉन कनेडी द्वारा अमेरिकी कांग्रेस को विशेष सन्देश भेजना गया था। सन्देश मे उन्होंने उपभोक्ता अधिकारों के मुद्दों को औपचारिक रूप से सम्बोधित किया।
3 साल तक की सजा और एक लाख तक का जुर्माना भी
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों के आदेश की अवहेलना पर अधिकतम 3 वर्ष की सजा व एक लाख जुर्माने से दण्डित करने के प्रावधानों ने भी उपभोक्ताओं के मनोबल को बढ़ाया है।
वास्तविक न्याय नहीं मिल पर रहा
ऑनलाइन शॉपिंग ने उपभोक्ता बाजार को विस्तार दिया है, जहाँ एक ओर इसका लाभ उपभोक्ताओं के मिला है। वहीं धोखाधड़ी, सेवाओं मे कमी, दोषयुक्त माल की प्राप्ति जैसे मामलों ने उपभोक्ता सम्बन्धी शिकायतों मे काफ़ी बृद्धि हुई है, लेकिन सरकारी अव्यवस्थाओं के कारण उपभोक्ताओं को वास्तविक न्याय नहीं मिल पर रहा है। मण्डल स्तर पर सर्किट बेंच बने तब ही कुछ लाभ मिल सकता है।
–देवेंद्र वार्ष्णेय, उपभोक्ता मामलों के वरिष्ठ अधिवक्ता
उपभोक्ता न्यायालय का कार्य भी दीवानी न्यायालय जैसा हो चला
माननीय उच्चतम न्यायालय, राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा दिए गए विधिक सिद्धांतो के कारण उपभोक्ता न्यायलायों मे किसी व्यक्ति के लिए स्वंयम वाद योजित करना चुनौती बन गया है। अधिवक्ताओं की सेवाएं लेना मजबूरी बन गयी है। उपभोक्ता न्यायालय का कार्य भी दीवानी न्यायालय जैसा हो चला है ओर यहीं कारण है कि मुक़दमों के निस्तारण मे देरी हो रही है।
पारस वार्ष्णेय, विधि छात्र, सरायतरीन