जिसे पेरियार व शिवदयाल चौरसिया से परहेज,वह क्या बहुजन व समाजवाद की राजनीति करेगा

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लव इंडिया, लखनऊ। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को संविधान, मण्डल, कर्पूरी, चौरसिया, शाहूजी, ज्योतिबा, पेरियार आदि से महत्वपूर्ण परशुराम व उनका फरसा है।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि जो आंतरिक मन से संविधान, सामाजिक न्याय व मण्डल-पेरियार-ज्योतिबा-शाहू जी के विरोधी हैं,वहीं सपा सुप्रीमो के मुख्य सलाहकार हैं।

उन्होंने कहा है कि मण्डल विरोधी इनके सलाहकार सत्ता व हवाई वोटबैंक की मृगमरीचिका दिखाकर समाजवाद व समाजवादी विचारधारा से भटकाकर भाजपा को मजबूत किये।सपा सुप्रीमो विदेश से जरूर पढ़ें हैं,लेकिन इन्हें ज़मीनी हक़ीक़त की जानकारी नहीं,इन्होंने छत्रपति शाहूजी महाराज,क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फूले, राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले, डॉ. फातिमा शेख,पेरियार ईवी रामास्वामी नायकर,डॉ.अम्बेडकर,बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा,चौ.महाराज सिंह भारतीय,बाबू रामचरनलाल निषाद, शिवदयाल चौरसिया, रामलखन चन्दापुरी, स्वामी ब्रह्मानंद लोधी,ललई सिंह यादव,रामस्वरूप वर्मा,जननायक कर्पूरी ठाकुर को नहीं पढ़े।अगर ये पिछड़े,दलित,वंचित वर्ग के मुक्तिदाताओं को थोड़ा थोड़ा पढ़ लिए होते तो आज सपा की सरकार होती और भाजपा सत्ता से कोसों दूर होती।अखिलेश यादव की ढुलमुल नीति के कारण भाजपा को खुली पिच पर बैटिंग का खुला मैदान मिल गया। 86 में 56 यादव एसडीएम के झूठे प्रचार का समयानुकूल जवाब न देने से अतिपिछड़े,दलित सपा से दूर तो हो ही गए,यादव समाज औरों की नज़र में खलनायक बन गया।अखिलेश यादव जी का मुख्य सलाहकार अभी भी महीने में भाजपा नेताओं के साथ 2-4 मीटिंग करता है।भाजपा अपनी विचारधारा को लेकर खुली बैटिंग कर रही है,पर सपा प्रमुख अभी भी “गइयो हाँ, भइसियो हाँ” की ही राजनीति में मस्त हैं।

निषाद ने कहा कि वास्तविक चरित्र चिन्तन में न मेरी आस्था राम में है और न किसी देवी-देवता में। हमने 18 अगस्त,2020 को अयोध्या में अपनी निजी राय रखते हुए कहा था कि मेरी राम में आस्था नहीं,मेरी आस्था संविधान में है,ज्योतिबा फूले,शाहू जी,पेरियार,बीपी मण्डल,कर्पूरी ठाकुर,जगदेव प्रसाद कुशवाहा,रामचरनलाल निषाद, रामप्रसाद अहीर आदि में हैं,जिनके माध्यम से हम पिछड़ों, दलितों,वंचितों को लिखने-पढ़ने,सम्मान से जीने,कुर्सी पर बैठने व नौकरियों में प्रतिनिधित्व पाने का अधिकार मिला है।उन्होंने कहा कि आस्था व धर्म व्यक्ति का निजी मामला है।किसी की किसी में आस्था है,तो किसी की किसी और में।अखिलेश यादव जी की आस्था परशुराम में हो सकती है,पर 99 फीसदी पिछड़ों, दलितों की आस्था परशुराम में नहीं,संविधान, अम्बेडकर,बीपी मण्डल में है।अखिलेश यादव जी धैर्य से मेरे बयान के समर्थकों व विरोधियों की तुलना किये होते तो पद से हटाने का निर्णय नहीं लेते और आज उत्तर प्रदेश में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार होती।

निषाद ने कहा कि अखिलेश यादव जी लौटनराम निषाद को एक अदना अतिपिछड़ा केवट,मल्लाह,कश्यप,बिन्द समझकर हटा दिए,उन्हें मालूम नहीं पड़ा कि लौटनराम की विचारधारा की ही सपा को जरूरत है। निषाद ने कहा कि 17 सितम्बर को सपा कार्यालय में पौराणिक विश्वकर्मा की जयंती मनाई गई,पर पिछड़ों के लिए पहला संविधान संशोधन कराकर 1951 में 15(4) जुड़वाए,उस पेरियार को नजरअंदाज कर दिया गया।18 सितम्बर को पिछड़े वर्ग के महान नेता बाबू शिवदयाल चौरसिया की 27वीं पुण्यतिथि थी,पर सपा नेतृत्व व इनके सलाहकारों को उनकी याद ही नहीं आयी।उन्होंने कहा कि सपा सुप्रीमो की इसी तरह की ढुलमुल नीति रही तो अगली बार मैनपुरी से भी हाथ धोना पड़ेगा।दुर्भाग्य है कि 3 वर्ष पूर्व इनके प्रदेश अध्यक्ष को यह पता नहीं था कि बीपी मण्डल किस जाति के थे।

उन्होंने कहा कि अगर सपा मुखिया बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी से गठबंधन किये होते तो कम से कम 25-30 अधिक मिली होती,क्योंकि इनके पास अधिकांश विधानसभा क्षेत्र में 10,5 हजार कैडर वोटबैंक है।अखिलेश यादव जी में वफादार व दगाबाज में फर्क करना नहीं आता।इनकी पारखी नज़र का दोष है कि इन्होंने परिवारवादी सौदेबाज संजय निषाद व ओमप्रकाश राजभर पर विश्वास कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार लिए।लौटनराम निषाद को पदच्युत कर सपा सुप्रीमो ने संजय निषाद को ज़िन्दा कर दिए,अन्यथा वह गोरखपुर में दफन हो जाता।लगातार 4-4,5-5 चुनाव हारने के बाद भी इन्हें असली विचारधारा की समझ नहीं आ रही है।पिछड़े,दलित,वंचित कैसे जुड़ें,इस पर इनका ध्यान नहीं।सपा की सरकार बने या न बने,इनकी सेहत पर तो कोई असर पड़ने वाला नहीं,नुकसान तो पिकड़ों,वंचितों का हो रहा है।

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