साधना, अध्ययन और आत्मानुशासन का श्रेष्ठ समय- ब्रह्ममुहूर्त

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के भारतीय ज्ञान परम्परा- आईकेएस केंद्र की ओर से फिलॉसफी ऑफ एजुकेशन इन एंसिऐंट इंडिया एंड इट्स रिलेवेंश फ्रॉम गुरूकुल टु ग्लोबल विस्डम पर 10वीं राष्ट्रीय ऑनलाइन कॉन्क्लेव

लव इंडिया, मुरादाबाद। जीएलए यूनिवर्सिटी, मथुरा के प्रो-चांसलर प्रो. डीएस चौहान ने कहा, ब्रह्माण्ड, आत्मा और जीवन के व्यापक आयामों को समझे बिना भारतीय शिक्षा-दर्शन अपूर्ण है। सत्य और धर्म भारतीय विचारधारा के मूल स्तंभ हैं।

पंचमहाभूत- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के संदर्भ में उन्होंने कहा, भारतीय शिक्षा मनुष्य और प्रकृति के गहरे संबंध को रेखांकित करती है। ज्ञान पुस्तक तक सीमित नहीं, बल्कि देखने, समझने, सोचने और सीखने की प्रक्रिया है। वेदों में निहित शांति और ज्ञान का संदेश आज भी समान रूप से प्रासंगिक है। ज्ञान का उद्देश्य आत्म-विकास, समाज-विकास और लोक-कल्याण है, न कि स्वार्थ। प्रो. चौहान ने कर्म और धर्म दोनों के ज्ञान को आवश्यक बताया। उन्होंने ब्रह्ममुहूर्त को आत्म-अनुशासन, अध्ययन और साधना का श्रेष्ठ समय कहा। स्कन्द पुराण का उल्लेख करते हुए उन्होंने गुरु के महत्व पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

ख़ास बातें
सत्य और धर्म भारतीय विचारधारा के मूल स्तंभः प्रो. डीएस चौहान
गुरुकुल परंपरा के सिद्धांत वैश्विक युग में भी प्रासंगिकः प्रो. जैन
कागज़ और लेखन ज्ञान के विकास में मील का पत्थरः प्रो. गौतम
डॉ. प्रेम व्रत बोले, भारतीय मस्तिष्क विश्व में सबसे प्रतिभाशाली
अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमात्र पत्र भी किए गए वितरित

प्रो. चौहान तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा- आईकेएस केंद्र की ओर से फिलॉसफी ऑफ एजुकेशन इन एंसिऐंट इंडिया एंड इट्स रिलेवेंश फ्रॉम गुरूकुल टु ग्लोबल विस्डम पर 10वीं राष्ट्रीय ऑनलाइन कॉन्क्लेव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इससे पूर्व मां सरस्वती की वंदना से कॉन्क्लेव का शंखनाद हुआ। अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमात्र पत्र भी वितरित किए गए।

टीएमयू के कुलपति प्रो. वीके जैन ने ज्ञान, डेटा और सूचना के अंतर पर प्रकाश डालते हुए भारतीय पारंपरिक शिक्षा और आधुनिक-पश्चात्य शिक्षा प्रणालियों की तुलना की। उन्होंने कहा, कि गुरुकुल परंपरा के मूल सिद्धांत- अनुशासन, मूल्य-आधारित शिक्षण, अनुभवजन्य अधिगम और गुरु-शिष्य समर्पण आज के वैश्विक ज्ञान-युग में भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। प्रो. जैन ने प्रौद्योगिकी, रचनात्मकता, नवाचार, आजीवन सीखने, मूल्य-आधारित शिक्षा एवं नैतिक ज्ञान प्रणाली के महत्व पर जोर कहा कि भारतीय मस्तिष्क विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं।

आईएसटीडी के प्रेसिडेंट एमेरिटस एवम् तथा इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ट्रेनिंग एंड डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन्स के सदस्य प्रो. वीएस गौतम ने बताया, आधुनिक तकनीक ने शिक्षा, उद्योग, अभियांत्रिकी और ज्ञान-संरचना की प्रकृति को मूल रूप से बदल दिया है। उन्होंने कागज़ और लेखन की खोज को ज्ञान-विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया।

उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य शिक्षा-प्रणालियों की तुलना करते हुए कहा, दोनों की आधारभूत धारणाओं को समझे बिना तुलना करना उचित नहीं है। भारतीय पद्धति जप, स्मरण, पुनरावृत्ति, उच्चारण और व्यावहारिक कौशलों पर आधारित रही है, जबकि पाश्चात्य प्रणाली रोजगार-केंद्रित ढांचे से संचालित होती है। प्रो. गौतम ने वेदों को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि व्यापक वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टि देने वाले ज्ञान स्रोत बताया।

प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस और द एनसीयू, गुरुग्राम, हरियाणा के प्रो-चांसलर डॉ. प्रेम व्रत ने भारतीय शिक्षा-दर्शन और उसकी वैश्विक प्रासंगिकता पर बोलते हुए कहा, एनईपी- 2020 तथा नई शैक्षिक सिफारिशों का मूल उद्देश्य मानस और मनःस्थिति का रूपांतरण है। डॉ. व्रत बोले, भारतीय मस्तिष्क अत्यंत प्रतिभाशाली है, परंतु श्रेष्ठ मनःस्थिति के बिना प्रतिभा समाज के लिए हानिकारक भी हो सकती है।

उन्होंने कहा, शिक्षा का असली लक्ष्य एक उत्कृष्ट मनुष्य का निर्माण है। मूल्य सिखाए नहीं जाते, बल्कि आत्मसात किए जाते हैं। उन्होंने अत्यधिक भौतिकता के दुष्प्रभावों की चेतावनी देते हुए सुझाव दिया, संपत्ति का उपयोग योगदान के लिए होना चाहिए। संबंध, सकारात्मक दृष्टिकोण, अनुशासन, धैर्य और फोकस दीर्घकालीन सफलता की कुंजी बताए। संचालन टीएमयू आईकेएस सेंटर की समन्वयक डॉ. अलका वर्मा और डॉ. माधव शर्मा ने संयुक्त रूप से किया।

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