कूष्माण्डा माता के शरीर की कांति और ऊर्जा सूर्य के समान

Uttarakhand तीज-त्यौहार

नवरात्री के चौथे दिन की पूजा विधि

माँ दुर्गा के चौथे शक्ति स्वरूप को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा को समर्पित है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन अर्थात 29 सितम्बर, गुरुवार को माँ कूष्माण्डा की साधना की जाएगी।

देवी कूष्माण्डा सिंह पर सवार रहती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं, इसीलिए उन्हें दुर्गा का अष्टभुजा अवतार भी कहा जाता है। माता के शरीर की क्रांति व ऊर्जा सूर्य के समान हैं, क्योंकि केवल माता कूष्माण्डा के पास ही वो शक्ति है, जिससे वे सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।

माँ कूष्माण्डा की पूजा से होने वाले लाभ :
शारदीय नवरात्र के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा करने से साधक के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। कूष्माण्डा माता भक्तों के छोटे-छोटे प्रयासों से भी प्रसन्न हो जाती हैं और उन्हें आयु, यश, बल और आरोग्य का आशीर्वाद देती हैं।

माँ कूष्माण्डा को लाल रंग अतिप्रिय है। और इस बार शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए शुभ रंग पीला है।

शारदीय नवरात्र के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा कैसे करें।

सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
इसके बाद अब ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ कूष्माण्डा का आह्वान करें।

साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र के साथ माँ कूष्माण्डा का ध्यान करें-

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें।
इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ।
आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं।
आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
इसके बाद माँ कूष्माण्डा की आरती गाएं।

कूष्माण्डा देवी की आरती

कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।
तो यह थी चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा की विधि। शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा के साथ ही माता के नौ रूपों को उनके दिन के अनुसार पूजने से माता आपकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। और पूरे वर्ष आपको माँ आदिशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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