आरक्षण का तीन हिस्सों में बंटवारा करेगी भाजपा सरकार…?

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पूर्व पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अनिल राजभर का गाहे-बगाहे बयान आता था कि योगी सरकार जल्द ही 27 फीसदी आरक्षण को पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा तीन भागों में बांटने जा रही है। हालांकि,यूपी में ओबीसी को तीन हिस्सों में बांटने का योगी प्लान बना था।पर योगी सरकार की स्थिति साँप-छछून्दर वाली बन कर रह गयी है।यह सिर्फ चुनाव के समय प्रयोग किया जाने वाला जुमला बन कर रह गया है।

लोकसभा चुनाव-2019 को देखते हुए राजनीतिक लाभ की मंशा से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश पिछड़ावर्ग सामाजिक न्याय समिति-2018 का गठन किया था।जिसने ओबीसी आरक्षण बंटवारे का फार्मूला तैयार कर सरकार को बहुत पहले दे चुकी है।पर,योगी सरकार लागू करने का साहस नहीं जुटा पा रही है।कारण कि न्याय देने से अधिक राजनीतिक नफा नुकसान की चिंता है।वैसे सरकार की रवैया से यहीं लग रहा है कि जस्टिस राघवेंद्र कुमार समिति का हश्र भी हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय समिति-2001 के ही जैसा होता दिख रहा है।

ओबीसी आरक्षण के बंटवारे के खिलाफ सपा और अपना दल बीजेपी के लिए आसान नहीं है। ओबीसी आरक्षण को बांटना योगी सरकार के लिए गले की फांस बन गया है।उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण में बड़ा फेरबदल करने का मन बनाये तो थी,लेकिन उसे डर है कि उसका कोर कुर्मी वोटबैंक उससे दूर चला जायेगा।जस्टिस राघवेंद्र कुमार सामाजिक न्याय समिति 27 फीसदी आरक्षण को पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा तीन भागों में बांटने की सिफारिश किया है।समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पिछली सरकार में पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण में से 67.56 फीसदी का लाभ एक जाति विशेष को मिला,जो सामाजिक न्याय के प्रतिकूल है।

समिति की रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा यूपी में यादव, कुर्मी, कुशवाहा और जाट समुदाय को मिल रहा है।यही वजह है कि ओबीसी की अन्य दूसरी जातियां लंबे समय से ओबीसी आरक्षण में बंटवारे की मांग उठाती रही हैं।बीजेपी ने 2017 के चुनाव में गैर-यादव ओबीसी समुदाय को अपने पाले में लाकर 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया था।

यही वजह रही कि योगी सरकार ने सत्ता में आते ही जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अगुवाई में 4 सदस्यीय उत्तरप्रदेश पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति का गठन कर दिया, जिसकी रिपोर्ट 2019 में ही सरकार को सौंपी जा चुकी है।हालांकि, अभी तक यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है।यह सामाजिक न्याय समिति-2002 की ही तरह आलमारी की दराजों में धूल फाँक रही है।

ओबीसी के आरक्षण में पिछड़ों का हिस्सा बांटने की मांग को लेकर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और योगी सरकार के मंत्रिमंडल से भी इस्तीफा दे दिया था। बीजेपी की एक अन्य सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) आरक्षण में बंटवारे के पक्ष में नहीं है।अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल इसका खुलकर विरोध कर चुकी हैं। सामाजिक न्याय चिन्तक चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि पड़ोसी राज्य बिहार में 1978 से ही कर्पूरी ठाकुर फार्मूला लागू है।आंध्र प्रदेश में ओबीसी को ए,बी,सी, डी व ई में बांटा गया गया है। आरक्षण के समान वितरण के लिए उपवर्ग आवश्यक है।

मण्डल कमीशन के सदस्य एल आर नायक ने भी अपने डिसेंट नोट में आयोग के अध्यक्ष बीपी मण्डल को सुझाव दिया था जिसे बीपी मण्डल ने नकार दिया था,जिससे नस्राज होकर नायक ने इस्तीफा दे दिया था।ओबीसी का बंटवारा वंचित वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक है,पर सही नियत से लागू किया जाय।इसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण यह है कि ओबीसी को एससी, एसटी के जैसे समानुपातिक आरक्षण की व्यवस्था पहले की जाए,ओबीसी की जनसंख्या का जातिगत आँकड़ा इकट्ठा किया जाय।इसके बाद कोटे के समानुपातिक बंटवारा किया जाना न्यायसंगत रहेगा।

यूपी में हैं 79 मूल जातियों सहित 234 पिछड़ी जातियां

उत्तर प्रदेश में ओबीसी के तहत उपजातियों/उपनामों सहित 234 जातियां आती हैं। उत्तरप्रदेश पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को इनके लिए तीन भागों में बांटने की सिफारिश की है-पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा। पिछड़े वर्ग में सबसे कम जातियों को रखने की सिफारिश की गई है, जिसमें यादव,कुर्मी,जाट,सोनार जैसी संपन्न जातियां हैं।अति पिछड़े में वे जातियां हैं जो कृषक या दस्तकार हैं और सर्वाधिक पिछड़े में उन जातियों को रखा गया है, जो पूरी तरह से भूमिहीन, गैरदस्तकार, अकुशल श्रमिक व परम्परागत पुश्तैनी पेशेवर हैं।

इस प्रकार की गई है जातियों व आरक्षण कोटा के बंटवारे की सिफारिश

ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में संपन्न पिछड़ी जातियों में यादव,ग्वाल,अहीर, जाट, कुर्मी,सोनार और चौरसिया सरीखी जातियों को पिछड़ी जाति में शामिल कर इन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश राघवेंद्र कुमार समिति द्वारा की गई है। अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गुर्जर, गोसाईं, लोध, कुशवाहा, कुम्हार,माली,लोहार,गड़ेरिया,कोयरी,काछी,शाक्य,बढ़ई समेत 65 जातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राईन/मंसूरी, गद्दी, घोसी,बंजारा, मोमिन अंसार,नोनिया,किसान, फ़क़ीर,मिरशिकार,बियार,बिन्द, कहार, धीवर, नाई,हलखोर, हज्जाम,धोबी,दर्जी,मोची, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है।

उत्तर प्रदेश की सियासत जाति के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है।यादव समुदाय जहां सपा का मजबूत वोटबैंक माना जाता है तो कुर्मी,लोधी,जाट और कुशवाहा समुदाय फिलहाल बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है। बीजेपी की यूपी में सहयोगी अपना दल (एस) का आधार भी कुर्मी समुदाय है, जिसके चलते वो जातिगत जनगणना के आधार पर जिसकी जितनी हिस्सेदारी हो उसी अनुपात में आरक्षण की भागीदारी होनी चाहिए की बात करती रही है। यही बात समाजवादी पार्टी भी सूबे में करती रही है।सूबे के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए योगी सरकार भी दो सालों से इसे ठंडे बस्ते में डाले हुए है।

सामाजिक न्याय समिति-2001 का पेंच फँस गया था कोर्ट में

2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने हुकुम सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय समिति का गठन किये थे।इसने उत्तर प्रदेश की 79 पिछड़ी जातियों को 3 श्रेणियों-पिछड़ी जाति, अतिपिछड़ी जाति व अत्यंत पिछड़ी जाति में विभाजित कर क्रमशः 5,8 व 14 प्रतिशत कोटा देने का सुझाव दिया था।सरकार ने अधिसूचना भी जारी कर दिया था।जिसको खुद राजनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री अशोक यादव ने न्यायालय में चुनौती दिया, जिससे आरक्षण का पेंच न्यायालय में फँस गया।न्यायालय में फँसने का कारण पिछड़ी जाति में सिर्फ यादव को रखना था।किसी एक जाति को अलग से कोटा नहीं दिया जा सकता।

केन्द्र सरकार भी ओबीसी उपवर्गीकरण आयोग का किया है गठन

केन्द्र सरकार ने भी अक्टूबर,2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जी.रोहिणी(यादव) की अध्यक्षता में राष्ट्रीय ओबीसी उपवर्गीकरण जाँच आयोग का गठन किया।जिसका विगत 6 जुलाई,2022 को 13वां विस्तार देते हुए 31 जनवरी,2023 तक रिपोर्ट देने की अपेक्षा की गई है।इसने भी ओबीसी का 4 उपश्रेणियों में विभाजन का संकेत दिया है।

ओबीसी का उपवर्गीकरण कोई नया नहीं,कई राज्यों में है पहले से वर्गीकरण

भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि ओबीसी जातियों के उपवर्गीकरण का निर्णय कोई नया काम नहीं है।पिछड़ी जातियों को आंध्र प्रदेश,कर्नाटक,केरल,तमिलनाडु, तेलंगाना,महाराष्ट्र,पुड्डुचेरी, बिहार,झारखण्ड,हरियाणा, जम्मू कश्मीर,पश्चिम बंगाल में 2 से 5 उपश्रेणियों में वर्गीय विभाजन पहले से ही है।यूपीए-2 के समय 2013 में भी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वी.ईश्वरैया की अध्यक्षता में गठित आयोग ने भी 2016 में ओबीसी उपवर्गीकरण के सम्बंध में सरकार को अपनी सिफारिश दिया था और ओबीसी के पुष्ट व वैज्ञानिक आँकड़े के लिए जातिगत जनगणना को आवश्यक बताया था।उन्होंने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार की मंशा वंचित पिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय देने की है,तो जाति आधारित जनगणना कराकर समानुपातिक कोटा दिया जाना आवश्यक है।ऐसी ही मंशा संविधान के अनुच्छेद-15(4) व 16(4) की भी है।

कहीं ओबीसी वर्गीकरण का उद्देश्य न्याय की बजाय नफरत पैदा करना तो नहीं

भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. लौटनराम निषाद ने साफतौर पर कहा है कि ओबीसी की जातियों को 3 और 4 उपश्रेणियों में विभाजन का उद्देश्य न्यायिक नहीं राजनीतिक है। ओबीसी की जातियां एक न रह सके या हो सके,सो इनके बीच नफरत की दीवार खड़ी कर दी जाय। उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट 2019 की ही तैयार है। जस्टिस रोहिणी आयोग का कार्यकाल इसी 31 जुलाई को पूरा हो रहा था,जिसे 31 जनवरी,2023 तक 13वा विस्तार दे दिया गया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ओबीसी उपवर्गीकरण का बम फोड़ा जायेगा,ताकि अतिपिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियों को लॉलीपॉप दिखाकर एक बार और राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।सरकारों का असल मकसद वंचित वर्ग को सामाजिक न्याय देना नहीं बल्कि राजनीतिक लाभ उठाना है।सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना अत्यंत महत्वपूर्ण है,पर असली मुद्दे से सरकार कन्नी काट ली है।

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