राजकीय काष्ठ कला केंद्र में मिलती थी काष्ठ फर्नीचर बनाने की मशीनों पर शिक्षा

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निर्भय सक्सेना, बरेली। कभी बरेली के राजकीय काष्ठ कला केंद्र में फर्नीचर बनाने की मशीनों पर शिक्षा दी जाती थी। काष्ठ नगरी के नाम से देश भर में प्रसिद्ध बरेली का लकड़ी का फर्नीचर आज भी बरेली से ही अधिकांश सप्लाई होता है। जानकर यह भी बताते हैं की देश की संसद भवन में भी बरेली के काष्ठ फर्नीचर की ही धमक रही थी। अब समय के साथ ही इस काष्ठ उद्योग में भी प्रतिस्पर्धा के कारण कुछ बदलाव भी हुआ। पहाड़ों के पास होने के कारण बरेली सभी प्रकार की लकड़ी का प्रमुख केंद्र रहा। बरेली के राजकीय काष्ठ कला केंद्र में फर्नीचर बनाने की मशीनों पर ही शिक्षा दी जाती थी। काफी बड़े परिसर में बने इस राजकीय काष्ठ कला केंद्र में बड़े बड़े हाल में हस्त शिल्प की शिक्षा देने के लिए बड़ा स्टाफ भी था। यू पी के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के पिता भी बरेली के इसी काष्ठ कला केंद्र में लिपिक रहे थे। इसी कारण नारायण दत्त तिवारी की शिक्षा भी बरेली के कुंवर दया शंकर इंटर कॉलेज में हुई थी।

उत्तर प्रदेश में बरेली एवम इल्हाबाद में ही काष्ठ कला केंद्र बने थे।

बरेली के इस राजकीय काष्ठ कला केंद्र की स्थापना वर्ष 1911 में होना बताई जाती है जो इलाहाबाद से काफी बड़ा एवम अग्रणी था। बरेली में उस समय यहां काफी छात्र बड़े बड़े हाल में लगी मशीनों पर फर्नीचर बनाने आदि का काम सीखते थे। यहां पर काफी बड़े एरिया में लकड़ी का सीजनिंग प्लांट भी था। वन विभाग की लकड़ी का बड़ा डिपो भी इसी परिसर में हुआ करता था। बरेली के काष्ठ फर्नीचर में लगे कारोबारी यहीं से सीजंनड ही गई लकड़ी को नीलामी में खरीदते थे।

1970 = 1980 के दशक में स्टील पाइप फर्नीचर, बेंत का फर्नीचर की प्रतिस्पर्धा के चलते इस काष्ठकला केंद्र की और छात्र का रुझान कम होना शुरू हुआ था। वर्ष 1971 से 1973 तक एवम 1987 में प्रधानाचार्य रहे राजदेव प्रियदर्शी ने मुझे बताया था की बरेली का काष्ठ फर्नीचर देश की संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, के साथ ही कई विधान सभा भवन तक सप्लाई किया जाता था। बाद में प्रतिस्पर्धा एवम आधुनिक मशीनों के कारण इस राजकीय काष्ठ केंद्र की हालत बिगड़ने लगी। 500 छात्र वाले स्कूल में संख्या निरंतर काम होती गई।

वर्ष 2000 में इस का नाम बदल कर राजकीय काष्ठ कला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान कर दिया गया। जो आई टी आई से संबद्ध हो गया। इसके साथ ही फिटर, इलेक्टिशियन, रेफ्रिजरेशन, डीजल मेकेनिक, कारपेंटर, पेंटर आदि के नए कोर्स भी बढ़ गए। वर्तमान में यहां लगभग 200 छात्र सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक शिक्षा ले रहे हैं। आई टी आई के सी बी गंज वाले परिसर से ही अब राजकीय काष्ठ कला केंद्र को संबद्ध कर दिया गया है। प्रधानाचार्य राजीव कुमार सहित यहां 15 लोगो का स्टाफ भी है। कारपेंट्री का एक साल का जबकि अन्य पाठयक्रम 2वर्ष के है। इस परिसर में बहेड़ी आई टी आई, महिला विश्व बैंक आई टी आई के साथ ही सिविल लाइंस का परिसर भी चल रहा है।

काष्ठ कला केंद्र परिसर में लोकसभा, विधान सभा आदि की वर्षो तक मतगणना होती रही। सारे मतपत्रों के बक्से यहां के ही हाल में कड़े पहरे में रखे जाते थे। चुनाव की मतगणना बाद में ट्रांसपोर्ट नगर में हुई फिर वह परसाखेड़ा में होने लगी। काष्ठ कला परिसर की अनुपयोगी हो चुकी मशीनें कवाड़ में बिक गईं। इसी परिसर की जमीन पर ही बाद में विकास भवन, अवंतीबाई कॉलेज, अरवन हाट, आर टी ओ आदि के भवन बन गए। इससे काष्ठ कला की ऐतिहासिक भवन अब कोने में दुबक कर रह गया। अब हाल यह है की प्रतिस्पर्धा के बाद बरेली में काष्ठ फर्नीचर का कारोबार तो काफी बढ़ा। बरेली में पुराना शहर, सिकलापुर काष्ठ फर्नीचर बिक्री का बड़ा केंद्र बन गया है। बरेली काष्ठ फर्नीचर संगठन के अध्यक्ष विजय गोयल बताते हैं की सरकार से एक जिला एक उत्पाद में काष्ठ फर्नीचर की मांग बरेली से रखी गई थी पर बरेली से बेंत फर्नीचर लिस्ट मेशमिल अधिकारियों ने करा दिया।

बरेली में कभी काष्ठ फर्नीचर उद्योग में थी विजय अग्रवाल की धाक

निर्भय सक्सेना, बरेली। समय था 1960 का दशक जिस समय विजय कुमार अग्रवाल की बरेली के लकड़ी वाले फर्नीचर जगत में गुणवत्ता वाले काष्ठ फर्नीचर उद्योग में अपनी एक अलग पहचान थी। उनके यहां राजनीति से जुड़े, आला अधिकारी, फिल्मी जगत के लोग भी फर्नीचर आदि लेने आते थे। उनका फर्नीचर कई राज्यों के स्कूल कॉलेज में भी सप्लाई होता था। अपने पिता स्वर्गीय रामोतार से विरासत में मिला काष्ठ फर्नीचर उद्योग को पिता के 1962 में हुए निधन के बाद नए रूप में आगे बढ़ाया। के डी ई एम स्कूल के पास उनके भाई की कुमार मोटर्स का शोरूम था। उसी के पीछे उनका काष्ठ फर्नीचर का वर्कशॉप था। सीतापुर हॉस्पिटल के पास उनकी कुमार फर्नीचर के नाम से दुकान थी। जिस पर देश प्रदेश के नामी गिरामी लोग उनसे फर्नीचर लेने आते थे। बरेली में रामोतार जी के घर 7 अप्रैल 1942 को जन्मे विजय अग्रवाल ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद बरेली कॉलेज से स्नातक एवम कानून की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1970 में उनका पीलीभीत की पुष्पा अग्रवाल जी से विवाह हुआ। उनके दो पुत्र एवम एक पुत्री हैं। उनके पुत्र डॉ अजय अग्रवाल क्वींस यूनिवर्सिटी कनाडा में तथा पवन अग्रवाल अमेरिका के सिएटल में सॉफ्टवेयर इंजीनियर तथा पुत्री डॉ पारुल भी कनाडा में ही हैं। विजय अग्रवाल वर्ष 1970 से बरेली में दि हिंदू सोशल सर्विस ट्रस्ट से जुड़ गए और 1990 से सचिव का निरंतर कार्यभार संभाल रहे है। स्मरण रहे हिंदू सोशल ट्रस्ट ने ही सिटी शमशान भूमि का जीर्णोधार करा कर उसे हरा भरा कर उसकी विभत्सा को कम किया था। आज भी यही ट्रस्ट दाह संस्कार के बाद प्रमाणपत्र भी जारी करता है। जिस पर सचिव के पदभार के रूप में विजय अग्रवाल के हस्ताक्षर अंकित होते है। यही ट्रस्ट गुलाब राय स्कूल में होली मिलन समारोह वर्षो से आयोजित कराता आ रहा है। टेनिस के एक अच्छे खिलाड़ी रहे विजय जी ने कई टूर्नामेंट में भी प्रतिभाग कर ट्रॉफी भी जीती। बरेली के एलन यूनियन क्लब में कई बार प्रदेश स्तरीय टेनिस टूर्नामेंट भी कराए। विजय अग्रवाल ने अब अपना काष्ठ फर्नीचर का कार्य लगभग बन ही कर दिया है। और ट्रस्ट के माध्यम से ही समाजसेवा में लगे हुए हैं।

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