नवरात्रि: महाअष्टमी पर इस तरह कीजिए महागौरी की पूजा

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ज्योतिष आचार्य पंडित अखिलेश पांडेय। ज्योतिष विज्ञान नवग्रह अनुसंधान केंद्रनवरात्रि में अष्टमी तिथि को माता महागौरी की उपासना की जाती है. इस दिन बहुत सारे लोग विशेष उपवास भी रखते हैं. इसके अलावा, इस दिन कन्या पूजन का भी विधान है. नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर उपासना से मनचाहे विवाह का वरदान मिलता है.नवरात्रि में अष्टमी तिथि और नवमी तिथि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. अष्टमी तिथि को माता महागौरी की उपासना की जाती है. इस दिन बहुत सारे लोग विशेष उपवास भी रखते हैं. इसके अलावा, इस दिन कन्या पूजन का भी विधान है. नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर उपासना से मनचाहे विवाह का वरदान मिलता है. इस साल शारदीय नवरात्रि का आठवां दिन 03 अक्टूबर को पड़ रहा है.

आइए जानते हैं कि इस दिन मां महागौरी की उपासना कैसे करें

मां महागौरी की पूजन विधि नवरात्रि के आठवें दिन स्नानादि के बाद महागौरी की पूजा करें. इनकी पूजा पीले वस्त्र धारण करके करनी चाहिए. मां के समक्ष दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें. पूजा में देवी को श्वेत या पीले फूल अर्पित करें. इसके बाद इनके चमत्कारी मंत्रों का जाप करें. अगर पूजा मध्य रात्रि मैं की जाय तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे.कन्या पूजन की परंपरा नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है. यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है. इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है. नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि को विशेष रूप से कन्या पूजन किया जाता है. इसमें 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया है. अलग-अलग उम्र की कन्या देवी के अलग-अलग रूप को बताती है.

महागौरी की पूजा से शीघ्र विवाह का वरदान

यह प्रयोग अष्टमी तिथि की रात्रि को करें. पीले वस्त्र धारण करके माता महागौरी की पूजा करें. उन्हें सफेद फूल, सफेद मिठाई और एक चांदी का सिक्का अर्पित करें. इसके बाद माता महागौरी के विशेष मंत्र का तीन या ग्यारह माला जप करें.

मंत्र होगा- “हे गौरीशंकर अर्धांगी, यथा त्वां शंकर प्रिया। तथा माम कुरु कल्याणी , कान्तकांता सुदुर्लभाम।।”

मंत्र जाप के बाद शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें. चांदी के सिक्के को पीले कपड़े में बांधकर अपने पास रख लें।

नवरात्रि की अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी का पूजन किया जाता है. मां दुर्गा का महागौरी स्वरूप भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है. इसलिए, अष्टमी के दिन मां दुर्गा का विशेष पूजन किया जाता है. इस दिन कन्या पूजन करने की भी परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि कन्या पूजन करने से मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. कन्या पूजन में 2 से 11 वर्ष तक की कन्याओं की पूजा करनी चाहिए. कन्या पूजन के लिए कम से कम नौ कन्याएं होनी चाहिए. आप इससे ज्यादा कन्याओं की भी पूजा कर सकते हैं.

कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, महाष्टमी की पूजा 03 ,अक्टूबर सोमवार को की जाएगी. महाष्टमी का अमृत मुहूर्त सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा, सुबह 09 बजकर 12 मिनट से सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक भी कन्या पूजन किया जा सकता है. आप अभिजीत मुहूर्त में भी कन्या पूजन कर सकते हैं, जो सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा.अष्टमी कन्‍या भोज या पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले आमंत्रित किया जाता है. गृह प्रवेश पर कन्याओं का पुष्प वर्षा से स्वागत करें. नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं. इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से धोएं. इसके बाद पैर छूकर आशीष लें. माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. फिर मां भगवती का ध्यान करके देवी रूपी कन्याओं को इच्छानुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें. आप नौ कन्याओं के बीच किसी बालक को कालभैरव के रूप में भी बिठा सकते हैं.

कन्या पूजन के नियम

नवरात्रि में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है. दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है.छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है. इनका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं. दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है.

महागौरी की 3 पौराणिक कथाएं…

नवरात्रि के 8वें दिन मां दुर्गा की 8वीं शक्ति महागौरी का पूजन किया जाता है। मां के महागौरी नाम और स्वरूप को लेकर 3 पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। अवश्य पढ़ें महागौरी की 3 पावन कथाएं…

पहली कथा- देवी पार्वती रूप में महागौरी ने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ द्वारा कहे गए किसी वचन से पार्वतीजी का मन का आहत होता है और पार्वतीजी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वर्षों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आतीं तो पार्वतीजी को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुंचते हैं। वहां पहुंचकर वे पार्वतीजी को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। पार्वतीजी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत और कुंद के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौरवर्ण का वरदान देते हैं और वे ‘महागौरी’ कहलाती हैं।

दूसरी कथा– इस कथा के अनुसार भगवान शिव को पति-रूप में पाने के लिए देवी की कठोर तपस्या के बाद उनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार कर उनके शरीर को गंगा जल से धोते हैं। तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम ‘गौरी’ पड़ा।

तीसरी कथा– महागौरी की एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार जब मां उमा वन में तपस्या कर रही थीं, तभी एक सिंह वन में भूखा विचर रहा था एवं भोजन की तलाश में वहां पहुंचा, जहां देवी उमा तपस्या कर रही थीं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया। देवी जब तप से उठीं तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और मां ने उसे अपनी सवारी बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी इसलिए सिंह देवी गौरी का वाहन है।

मां महागौरी की आरती :

जय महागौरी जगत की माया महागौरी माता की आरती जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया।।हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहां निवासा।। चंद्रकली और ममता अंबे। जय शक्ति जय जय मां जगदंबे।। भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्याता।।हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।। सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।उसी धुएं ने रूप काली बनाया।। बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।।तभी मां ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया।। शनिवार को तेरी पूजा जो करता। मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।। भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।।

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