रूस के राष्ट्रपति Vladimir Putin के बाद अमेरिका व यूरोपीय देशों पर संभावित कूटनीतिक-भू-राजनीतिक असर…

रूस के राष्ट्रपति Vladimir Putin के भारत दौरे के दौरान Government of Russia और Government of India के बीच हुए अहम समझौतों, उनके बिंदुवार विवरण, और इन पहलुओं का अमेरिका व यूरोपीय देशों (पश्चिमी विश्व) पर संभावित कूटनीतिक-भू-राजनीतिक असर।


📰 इन बातों पर रहे चर्चा — पुटिन का भारत दौरा और समझौते

  • रूस के राष्ट्रपति पुतिन 4–5 दिसंबर 2025 को भारत आए — यह उनकी चार साल बाद भारत वापसी है।
  • दौरे का यह अवसर 23rd India–Russia Annual Summit (भारत–रूस 23वाँ वार्षिक शिखर सम्मेलन) था, जिसमें दोनों देशों की “स्पेशल और प्रिविलेज्ड स्ट्रैटेजिक साझेदारी” को और गहरा करने की योजना पर चर्चा हुई।
  • इस दौरे के दौरान रूस की ओर से पुछे गए मंत्रिमंडलीय — रक्षा, ऊर्जा, वित्त, तकनीक आदि विभागों के प्रतिनिधि भी आए थे।

✅ मुख्य समझौते / घोषणाएँ (मौजूदा समझौते)

नीचे वे प्रमुख समझौते व घोषणाएँ हैं जो इस दौरे/सम्मेलन में प्रकाशित या तय की गईं:

क्षेत्रसमझौता / घोषणा / प्रस्ताव
आर्थिक-व्यापारएक “2030 तक रणनीतिक आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (Strategic Economic Cooperation Roadmap)” पर सहमति; उद्देश्य है द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक US $ 100 बिलियन तक बढ़ाना।
व्यापार, ऊर्जा, कृषि, स्वास्थ्य, मीडिया, सांस्कृतिक आदान-प्रदान आदि क्षेत्रों में नए समझौते तय करने की रूपरेखा।
रक्षा और सुरक्षापहले से फरवरी 2025 में जुड़ा हुआ RELOS agreement (Reciprocal Exchange of Logistic Support) अब रूस की संसद (Duma) द्वारा औपचारिक रूप से स्पष्ट कर दिया गया — मतलब, भारत और रूस अब एक दूसरे के सैन्य अड्डों, पोर्ट, वायुक्षेत्र, लॉजिस्टिक सुविधाओं आदि का आपसी उपयोग कर सकेंगे।
रक्षा सहयोग का विस्तार — हथियार खरीदने की बजाय सह-निर्माण (co-production / co-development) पर जोर, यानी रूस केवल सप्लायर नहीं, बल्कि साझेदार बनेगा।
सम्भव है कि आधुनिक विमानों (जैसे Su-57 fighter jet) तथा एयर-डिफेंस सिस्टम (जैसे S-400 missile system) पर बातचीत हो।
ऊर्जा और आपूर्ति / कच्चा तेलरूस ने स्पष्ट किया कि वह भारत को “बिना रुकावट” (uninterrupted) तेल की सप्लाई देता रहेगा — जो कि पश्चिमी (विशेष रूप से अमेरिकी) दबाव व प्रतिबंधों के बीच एक स्पष्ट संदेश माना गया।
लेबर मोबिलिटी / रोज़गाररूस ने भारतियों को काम देने की पेशकश की है — रूस में भारतीयों के लिए रोज़गार के नए अवसर, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक व सामाजिक सम्बन्ध बढ़ेंगे।
वाणिज्यिक निवेश व FTAदोनों देशों ने यह भी तय किया है कि वे तेजी से Eurasian Economic Union (EAEU) के साथ FTA (मुक्त व्यापार समझौता) और एक द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty – BIT) पर बातचीत आगे बढ़ाएँगे।
ऐतिहासिक साझेदारी का पुनरावलोकनयह दौरा और समझौते दोनों देशों के बीच स्थापित 25-वर्ष पुराने रणनीतिक साझेदारी (since October 2000) को नए सिरे से मजबूत करने की कोशिश हैं।

कुल मिलाकर, इस दौरे व समझौतों का उद्देश्य भारत–रूस पारंपरिक दोस्ती को एक नया रूप देना — जहाँ सिर्फ खरीददार-विक्रेता (supplier-buyer) की बजाय साझेदार (partner) बनकर, बहु-विषयक (multi-dimensional) रणनीतिक गठजोड़ हो।


🌍 इस समझौते का अमेरिका व यूरोपीय देशों पर संभावित असर (कूटनीतिक व भू-राजनीतिक)

  • ऊर्जा व तेल पर निर्भरता — रूस का वादा कि वह भारत को तेल सप्लाई जारी रखेगा, पश्चिमी देशों (यूरोप व अमेरिका) के लिए एक संदेश है कि रूस और भारत पारंपरिक आर्थिक-रक्षा साझेदारी को कायम रख रहे हैं; इससे पश्चिमी प्रतिबंधों की effectiveness कम हो सकती है।
  • पश्चिमी दबाव की चुनौती — पश्चिमी देशों, विशेषतः अमेरिका द्वारा रूस-भारत संबंधों को लेकर पूर्व में जताए गए दबाव को यह दौरा और समझौता चुनौती दे रहा है। भारत अपनी स्वायत्त विदेश नीति (strategic autonomy) दिखा रहा है।
  • द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय रणनीति में बदलाव — भारत और रूस के बीच रक्षा, आर्थिक, तकनीकी, वैचारिक साझेदारी के विस्तार से, अमेरिका-यूरोप की रूस-विरोधी रणनीति पर असर पड़ सकता है; भारत पश्चिम के साथ अपने रिश्तों को बराबर चलाते हुए रूस के साथ भी मजबूती दिखा रहा है।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में परिवर्तन — जैसे रूस–भारत साझेदारी ऊर्जा, रक्षा, संसाधन (critical minerals, तकनीक) आदि में गहराई ले रही है, इससे यूरोप-केंद्रित सप्लाई चेन, व पश्चिमी देशों द्वारा बनाए गए आर्थिक ब्लॉकों की केंद्रीकृत स्थिति चुनौती में आ सकती है।
  • कूटनीतिक संतुलन (Strategic Balance) — यह दौरा और समझौते दिखाते हैं कि दुनिया अब एकध्रुवीय (single-power) नहीं, बल्कि बहुध्रुवीय (multi-polar) मॉडल की ओर बढ़ रही है, जिसमें भारत-रूस जैसे साझेदार पश्चिमी दबाव के बावजूद अपनी भूमिका बनाए रखना चाहते हैं — यह अमेरिका और यूरोप के लिए नए जटिल कूटनीतिक समीकरण हैं।

🎯 इन समझौतों और घटनाओं का भारत के लिए लाभ

  • भारत–रूस साझेदारी में “निर्माण (Make in India)” और “को-डेवलपमेंट / को-प्रोडक्शन” पर जोर — जिससे हथियार, रक्षा उपकरण आदि भारत में बने होंगे; आत्मनिर्भरता (defence-self-reliance) को बल मिलेगा।
  • ऊर्जा एवं कच्चे तेल की सप्लाई में स्थिरता — जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी, और पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव सीमित होगा।
  • विदेशी निवेश, वाणिज्य, कार्यबल (लेबर) एवं तकनीकी साझेदारी के अवसर — भारत के लिए रोजगार, निवेश व तकनीकी विकास के नए रास्ते खुलेंगे।
  • वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन में भारत की स्थिति — भारत अपनी विदेश नीति में सामरिक स्वतंत्रता बनाए रखेगा; किसी एक ध्रुव पर पूरी तरह निर्भर नहीं होगा।

⚠️ चुनौतियाँ व पश्चिमी प्रतिक्रियाएँ

  • पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका, पहले ही रूस–भारत तेल व रक्षा संबंधों पर चिंता जता चुके हैं; ऐसे में भारत–रूस के बीच इस क़िस्म का सहयोग पश्चिम के साथ भारत के बढ़ते व्यापार व सुरक्षा रिश्तों को जटिल बना सकता है।
  • यदि भारत रूस से अत्याधुनिक हथियार या रक्षा-सामग्री खरीदता/निर्माण करता है, तो इससे क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण — जैसे पड़ोसी देशों, चीन–पाकिस्तान — पर भी असर होगा; यूरोपीय देश भी इस बढ़ती शक्ति-साझेदारी पर सतर्क होंगे।
  • ऊर्जा व हथियार कमोडिटीज़ में बढ़ी साझेदारी के कारण, अमेरिका व यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की सफलता सीमित हो सकती है; इससे पश्चिमी आर्थिक-सैन्य रणनीतियों को पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

🔗 प्रमुख स्रोत (कॉपी व उद्धरण के लिए उपयोगी)

  • Russia–India 2030 आर्थिक रोडमैप व समझौते:
  • RELOS रक्षा-लॉजिस्टिक समझौता व संसद द्वारा पुष्टि:
  • रक्षा-सहयोग, को-प्रोडक्शन रूपरेखा, हथियार व S-400 आदि पर चर्चा:
  • ऊर्जा व तेल सप्लाई, वाणिज्यिक व निवेश समझौते:
  • कूटनीतिक और भू-राजनीतिक विश्लेषण:

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