गांव-गांव तक ‘स्वराज्य’ का महामंत्र देने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आखिरी सांस तक संघर्ष करते रहे अंग्रेजों के खिलाफ
‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के उद्घोषक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का भारत राष्ट्र के निर्माताओं में अपना एक विशिष्ट स्थान है। स्वतंत्रता अभियान को गांव-गांव तक पहुंचाकर ‘स्वराज्य’ का महामंत्र देने वाले तिलक ने ‘केसरी’ के माध्यम से स्वतंत्रता हेतु जनजागरण किया । कारावास भोगते समय ’गीतारहस्य’ लिखकर लोगों को धर्म का मार्ग दिखाया।
स्वतंत्रतावीर सावरकर कहते, ’हम क्रांतिकारी तलवार थे, तो तिलक उस की मुठिया थे !’ बाल गंगाधर तिलक वो व्यक्ति थे जिसने देश की गुलामी को बहुत विस्तृत रुप से देखा था। इनके जन्म के एक बर्ष बाद ही अंग्रेजों के खिलाफ भारत को आजाद कराने के लिये 1857 की पहली क्रान्ति हुई थी। गंगाधर तिलक एक समस्या के अनेक पहलुओं पर विचार करते और फिर उस समस्या से निकलने का उपाय खाजते थे। बाल गंगाधर ने भारत की गुलामी पर सभी आयामों से सोचा, इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाकर उन्हीं की भाषा में करारा जबाव दिया। बाल गंगाधर तिलक महान देशभक्त, कांग्रेस की उग्र विचारधारा के प्रवर्तक, महान लेखक, चिन्तक, विचारक, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे।
भारतीयों की दशा में सुधार करने और लोगों को जागरुक करने के लिये इन्होंने एक ओर तो पत्रिकाओं का प्रकाशन किया वहीं दूसरी ओर देशवासियों को शिक्षित करने के लिये स्वंय से शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की साथ ही देशवासियों को एकता के सूत्र में बाँधने के लिये ‘गणेशोत्सव’ और ‘शिवाजी’ समारोह जैसे सामाजिक कार्यक्रमों को शुरु किया। गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों पर तीनों ओर से मोर्चा लगा कर अंग्रेजों की नाक में दम करके रख दिया। अपने जीवन की आखिरी सांस तक ये अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे।