विपक्ष को 2004 के यूपीए वाली सोनिया की तलाश

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वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी से विपक्षी दलों के नेताओं को काफी उम्मीद थी। उन्हें लगता था कि 2004 की तरह वे विपक्षी दलों को एकजुट करने में कामयाब हो जाएंगी। विपक्षी गठबंधन की बैठकों के दौरान सब ठीक दिखाई दिया, मगर जैसे ही सीट शेयरिंग का सवाल आया तो गठबंधन दरकने लगा…इंडिया गठबंधन को लेकर बुधवार को दो बड़े घटनाक्रम हुए हैं।

एक, ममता बनर्जी ने कहा, हम पश्चिम बंगाल में अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। दूसरा, पंजाब में आप के सीएम भगवंत मान ने कह दिया, हम सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे। यह बयान, विपक्षी एकता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस घटनाक्रम को सहजता से लिया है। पार्टी नेता जयराम रमेश ने उक्त घटनाक्रम को स्पीड ब्रेकर, रेड लाइट और ग्रीन लाइट का उदाहरण देकर समझाने का प्रयास किया है।

उन्होंने कहा, बातचीत जारी रहेगी। मामले सुलझा लिए जाएंगे। कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने भी ऐसी ही बात कही है। जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विपक्षी दलों को एक राजनीतिक मंत्र दिया था कि 2024 में उन्हें एक सीट, एक उम्मीदवार के फॉर्मूले पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए। अगर यह नहीं होता है तो भाजपा को हराना मुश्किल होगा।

अब विपक्षी दलों का गठबंधन, सत्यपाल मलिक के सुझाव के विपरीत जाता हुआ दिखाई पड़ रहा है। इंडिया गठबंधन को अब 2004 के यूपीए गठबंधन वाली सोनिया गांधी की तलाश है। उस वक्त सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी और यूपीए ने केंद्र में सत्ता हासिल की थी।

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