राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं, और जो होता है, वह दिखता नहीं…

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महाराष्ट्र में रविवार दोपहर 2 बजे वह हो गया, जो एक बजे तक दिख नहीं रहा था, लेकिन पर्दे के पीछे बहुत कुछ चल रहा था।अजीत पवार एनसीपी के 29 विधायकों को अपने साथ लेकर राजभवन पहुंचे और फिर उप मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ एनसीपी के आठ विधायक भी मंत्री बन गए। अभी चार दिन पहले देवेन्द्र फडणवीस ने एक इंटरव्यू में कहा था कि 2019 में अजीत पवार ने शरद पवार की सहमति से ही उनके साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, और भाजपा की शरद पवार के साथ कई दौर की बातचीत हुई थी। शरद पवार ने उनके इस खुलासे की खुद पुष्टि करते हुए कहा था, हां मेरी बातचीत हुई थी लेकिन मैंने फडणवीस को गुगली मार दी थी।

क्या देवेन्द्र फडणवीस का वह इंटरव्यू योजनाबद्ध ढंग से हुआ था, वरना शरद पवार मुकर भी सकते थे कि उन्होंने तो भाजपा के साथ कोई बात नहीं की थी? क्या देवेन्द्र फडणवीस का इंटरव्यू और उस पर शरद पवार की प्रतिक्रिया अजीत पवार की स्थिति साफ़ करने के लिए हुआ था? क्या उस इंटरव्यू के माध्यम से एनसीपी के सरकार में शामिल होने की पटकथा लिखी जा रही थी।

एनसीपी के नौ विधायकों के मंत्री बन जाने के बाद जब शरद पवार से पूछा गया क्या यह भी गुगली है, तो उन्होंने कहा कि यह गुगली नहीं रॉबरी है, यानि लूट है। लेकिन शरद पवार ने पूरी तरह हथियार डाल दिए हैं, न तो वह सरकार में शामिल होने वाले विधायकों के खिलाफ स्पीकर को लिखेंगे, न ही अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। अब इसका मतलब क्या है?

मतलब यह है कि पिक्चर अभी बाकी है। नरेंद्र मोदी जल्द ही केन्द्रीय मंत्रीमंडल में फेरबदल करेंगे, जिसमें सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल दोनों ही मंत्री बनाए जाएंगे। अजीत पवार ने शपथ ग्रहण से पहले अपने सरकारी आवास देवगिरी में जो मीटिंग बुलाई थी, उसमें एनसीपी के दोनों कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल शामिल थे। इसका स्पष्ट अर्थ है कि यह कोई रॉबरी नहीं है, अजीत पवार ने इस बार कुछ भी पीठ पीछे नहीं किया।

खुला खेल किया, सबको बता कर किया। अजीत पवार ने जब अप्रेल में भाजपा से बात शुरू की थी, तब उन्होंने शरद के पीठ पीछे बात शुरू की थी। उस समय भी एनसीपी के 40 से ज्यादा विधायक अजीत पवार के साथ थे, और वे भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल होना चाहते थे। अजीत पवार की योजना को विफल करने के लिए ही शरद पवार ने 2 मई को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। जबकि अजीत पवार को उन्होंने यह कहा था कि मैं पार्टी से अलग हो जाता हूं, फिर तुम जो चाहे करो। शरद पवार के इस्तीफे के बाद अजीत पवार यह समझ रहे थे कि शरद पवार ने जो कहा है, उसी के अनुसार उन्होंने इस्तीफा दिया है।

इसीलिए जब पार्टी के नेता शरद पवार से इस्तीफा वापस दिलाने का दबाव बनाने के लिए धरना दे कर बैठ गए थे, तब अजीत पवार ने कहा था कि इस विरोध से कुछ नहीं होगा, वह इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। जबकि शरद पवार डबल गेम कर रहे थे, उन्होंने इस्तीफा दिया ही इसलिए था, क्योंकि पार्टी में कोई उनकी सुन नहीं रहा था, ज्यादातर विधायक अजीत पवार के साथ हो गए थे।शरद पवार ने इस्तीफे का नाटक करके अपने पक्ष में वातावरण बनाया ताकि भावना में बह कर सारे विधायक उनके पीछे खड़े हों। जबकि अजीत पवार यह समझ रहे थे कि शरद पवार उन्हें पार्टी की कमान सौंप कर अलग हो जाएंगे और वह एनसीपी को एनडीए में शामिल करवा लेंगे। लेकिन शरद पवार ने भारी ड्रामे के बाद इस्तीफा वापस ले लिया और अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। जब शरद पवार इस्तीफा वापस लेने का एलान करने कार्यकर्ताओं के बीच आए थे, तो अजीत पवार उनके साथ मौजूद नहीं थे।

अजीत उनके इस्तीफा वापस लेने के फैसले से खफा थे, क्योंकि शरद पवार ने सारा खेल ही बदल दिया था।शरद पवार ने अजीत पवार के साथ जैसा डबल गेम 2019 में किया था, वैसा ही गेम फिर 2023 में भी कर दिया। अजीत पवार को चार साल में यह दूसरा झटका था। विधायकों को अपने साथ लाने के लिए उन्हें फिर से मेहनत करनी पड़ी। इस दौरान वह दो तीन बार दिल्ली आकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी मिले थे। उनकी एक मुलाक़ात अमित शाह से भी हुई। इसी बीच पिछले दो महीनों में देवेन्द्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे भी कई बार दिल्ली आए थे। इस बार अजीत पवार ने विधायकों का समर्थन हासिल कर लेने के बाद शरद पवार को भी मनाने की कोशिश की थी, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल को शरद पवार से बात करने के लिए भेजा था।

ये दोनों ही शरद पवार के पुराने वफादार रहे हैं, दोनों 1998 में पार्टी बनने के बाद से शरद पवार के साथ थे।क्या इस बार शरद पवार ने अपनी सहमति दे दी थी, लेकिन खुद इस राजनीतिक उलटफेर में शामिल नहीं होना चाहते थे? क्या इस बार वह कांग्रेस के साथ डबल गेम खेल रहे हैं? याद करिए अभी हाल ही में कुछ दिन पहले शरद पवार ने कहा था कि 2024 में भी जीतेंगे मोदी ही। आखिर क्या कारण हो सकता है कि जब वह खुद विपक्षी एकता की मीटिंगों में हिस्सा ले रहे हैं, भाजपा के सामने देश भर में एक उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिशों में खुद शामिल हैं, तो फिर उन्होंने यह बयान क्यों दिया कि जीतेगा तो मोदी ही।

अजीत पवार के शपथ ग्रहण के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार के दोनों वफादार प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल उनके अगल बगल बैठे थे। अजीत पवार ने इन दोनों के माध्यम से ही शरद पवार को संदेश दिया गया था कि वह 23 जून की विपक्ष की पटना बैठक में न जाएं। लेकिन शरद पवार 23 जून की विपक्षी बैठक में गए और अभी उन्होंने बेंगलूरु बैठक में भी जाने का एलान किया था।आज अजीत पवार के उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शरद पवार ने पौन घंटा तक प्रेस कांफ्रेंस की, जिसमें उन्होंने पत्रकारों के हर सवाल का जवाब दिया। इतने बड़े घटनाक्रम से वह जरा भी विचलित नहीं लगे।

उन्होंने कहा कि राजनीति में यह होता रहता है। इतना ही नहीं, जब शरद पवार को पता था कि एनसीपी के 30 विधायक राजभवन में मौजूद थे, फिर भी उन्होंने स्पीकर को अजीत पवार की जगह जितेन्द्र आह्वाद को विपक्ष का नेता बनाने की चिठ्ठी लिख दी। जबकि अगर 53 में से 30 विधायक चले गए हैं, तो एनसीपी के पास विपक्ष के नेता का दर्जा बचता ही नहीं। कांग्रेस के 44 विधायक हैं और कांग्रेस ने विपक्ष का नेता तय करने के लिए मंगलवार को मीटिंग भी बुला ली है।

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