हिन्दी साहित्य के भारतेंदु युग में उल्लेखनीय योगदान रहा है बलदेव प्रसाद मिश्र का
लव इंडिया, मुरादाबाद। प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष बलदेव प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया । साहित्यकारों ने कहा कि हिन्दी साहित्य के भारतेंदु युग में मुरादाबाद के हिन्दी, संस्कृत, फारसी, बंगला, मराठी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता, उपन्यासकार, नाटककार, इतिहासकार, टीकाकार, कवि एवं सम्पादक पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बीसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद नगर में पौष शुक्ल 11 संवत् 1926 (सन् 1869 ई०) में जन्में बलदेव प्रसाद मिश्र ने मात्र 36 वर्ष के जीवन काल में पचास से भी अधिक कृतियाँ हिन्दी साहित्य को दी तथा अनेक समाचार पत्रों का सफलतापूर्वक सम्पादन किया । उनकी मौलिक कृतियों में मीराबाई, प्रभास मिलन, नन्द विदा, लल्ला बाबू , पानीपत, पृथ्वीराज चौहान,तांतिया भील, संसार वा महास्वप्न, मयंकमाला, जागती कला, मृतक मिलाप,महाविद्या’ उल्लेखनीय हैं। उन्होंने बंगला भाषा के भी कई उपन्यासों का अनुवाद किया है।भाषा टीकादि ग्रन्थों में पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र के पुरूषसूक्त, लघु भागवतामृत, कल्कि पुराण, आध्यात्म रामायण, बाराही संहिता, सूर्य सिद्धान्त, आयुर्वेद चिन्तामणि, चिकित्साजन, रखेन्द्र चिन्तामणि, आश्चर्य योगमाला तंत्र, गायत्री तंत्र, मंत्र चिन्तामणि, नित्य तंत्र तथा मेघदूत प्रमुख है । ऐतिहासिक पुस्तकों में आपके द्वारा ‘टाड राजस्थान’ का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त ‘नेपाल का इतिहास भी आपने रचा। आपका निधन श्रावण शुक्ल सप्तमी, संवत् 1962 तदनुसार 6 अगस्त 1905 ई० को हुआ था ।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने वर्ष 1900 में प्रकाशित पुस्तक लल्लाबाबू-प्रहसन की चर्चा करते हुए कहा इस कृति में मनोरंजन के साथ साथ जहां स्वतंत्रता की भावना तथा अंग्रेजी-राज के विरुद्ध विद्रोह के स्वर मुखरित हुए हैं वहीं यह संदेश भी दिया गया है कि घर और परिवार में अनुशासन तथा शिष्टाचार की कितनी ज्यादा आवश्यकता होती है तथा जब यह सद्गुण घर-परिवार से विदा हो जाते हैं, तब समूचा परिदृश्य ही कुरूपता का शिकार हो जाता है ।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने इस कृति के संदर्भ में कहा कि यह कृति समाज में व्याप्त वर्ग-संघर्ष एवं पारिवारिक उलझनों को सुंदरता से समेटते हुए पाठकों के सम्मुख साकार करती है।
आयोजन में प्रशांत मिश्र, श्वेता पूठिया, मुजाहिद चौधरी, धनसिंह धनेंद्र, आलोक रस्तोगी ने भी विचार व्यक्त किए।