स्वतंत्रता से जुड़े कुछ तथ्य जिन्हें बहुत ही कम भारतीय जानते हैं…
स्वतन्त्रता की गाथा:-स्वतन्त्रता से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिन्हें बहुत ही कम भारतवासी जानते होंगे आईये उनपर दृष्टि डालते हैं:-
1. प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के समय भारत के पास सुनहरा अवसर आया कि वे अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति पा सकें। परन्तु उस समय के कांग्रेस नेताओं ने ये सोचा कि यदि वे युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ देंगे तो संभवतः अंग्रेज़ प्रसन्न उन्हें भारत सौंप देंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ। जिस युद्ध के समय भारतीय लड़कर स्वतन्त्र हो सकते थे उस समय कांग्रेस द्वारा अंग्रेज़ों के प्रति स्वामिभक्ति दिखाने के बाद भी अंग्रेज़ों ने भारत को मुक्त नहीं किया।
2. स्वतन्त्र होने का दूसरा अवसर 1920 में आया जब अंग्रेज़ों से विश्वासघात खाने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में पूरे देश के विद्यार्थियों, सरकारी कर्मचारियों और आम जनों ने पूर्ण सहयोग दिया। परन्तु जब आन्दोलन अपने पूर्ण चरमोत्कर्ष पर था उस समय चौरा-चौरी की एक सामान्य घटना के कारण गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया और पूरे भारत के समग्र प्रयास पर पानी फेर दिया। इससे तत्कालीन कांग्रेस के कई नेता कांग्रेस से खिन्न होकर पृथक हो गए।
3. तीसरा सुनहरा अवसर भारत को प्राप्त हुआ द्वितीय विश्व युद्ध (1939) के समय। परन्तु उस समय फिर से कांग्रेस ने अंग्रेज़ों के प्रति अपनी स्वामिभक्ति दिखाई और लाखों भारतीय सैनिकों को युद्ध में लड़ने के लिए भेज दिया। ये दोनों अवसर ऐसे थे कि जिसमें भारत यदि अंग्रेजी शासन का साथ न देता तो भारत बहुत पहले ही स्वतन्त्र हो गया होता। 1942 से भारतीय सेना के मुख्य सेनानायक फिल्ड मार्शल सर क्लाउड आचिनलेक (Claude Auchinleck) ने कहा था कि यदि भारतीय सेना नहीं होती तो अंग्रेज दोनों युद्धों (प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध) नहीं जीत पाते।
4. द्वितीय विश्व युद्ध के समय ही भारत के महान स्वतन्त्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस ने मोहन सिंह एवं रास बिहारी बोस द्वारा निर्मित आज़ाद हिंद फौज (जो द्वितीय विश्व युद्ध के युद्धबंदियों को जापान से छुड़ाकर बनाई गई थी) का नेतृत्व किया। उन्होंने आजै हिन्द सरकार की स्थापना की जिस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। आज़ाद हिन्द फौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च सन 1944 ई. को कोहिमा और इम्फ़ाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुँच गई और ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से जमकर मोर्चा लिया।
सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेज़ों की ओर से लड़ रही भारतीय सेना को आज़ाद हिंद फौज के साथ लड़ने का आह्वान किया परन्तु कुटिल कांग्रेस ने पुनः अंग्रेज़ों से स्वामिभक्ति दिखाते हुए सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज को देशद्रोही घोषित कर दिया और भारतीयों को अंग्रेज़ों की ओर से लड़ने के लिए ही प्रेरित किया। दुर्दैव था भारत का कि ऐसे लोग भारत के भाग्य विधाता बने हुए थे जिन्होंने भारत के स्वतन्त्रता सेनानियों को ही देश द्रोही ठहरा दिया। दुर्भाग्य से जर्मनी और जापान द्वितीय विश्व युद्ध हार गए और आज़ाद हिंद फौज का विजय अभियान रुक गया।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इंग्लैण्ड बुरी तरह से टूट चुका था।
भारत का सारा धन और सम्पदा वो पहले ही निचोड़ चुका था। उसके बाद उसे आज़ाद हिंद फौज की लोकप्रियता के कारण भारत की सेना का विरोध भी सहन करना पड़ रहा था। वे एक और सशत्र विद्रोह सहन नहीं कर सकते थे। इस कारण उन्होंने भारत को छोड़ने का निर्णय किया। तब अंग्रेज़ 1947 में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट लेकर आये जिसमें अंग्रेज़ी शासन के अधीन भारत और पाकिस्तान दो राज्य बनाये गए जो अपने लोगों द्वारा शासन कर सकते थे।
26 जनवरी 1950 को भारत ने गणतंत्र बना जिसमें अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध भारतीय संविधान अपनाया गया। परन्तु दुर्भाग्य ही था कि भारतीय गणराज्य बनने के पश्चात भी भारत में अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए विधि-नियम ही लागू रहे जो आज तक चालू हैं।स्वतन्त्र का अर्थ होता है – स्व (अपना) + तन्त्र (System)।