मैंने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है: पढ़िए तीन मांओं की लाजवाब कहानियां

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चलती फिरती हुई आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है। वैसे तो मां शब्द को शब्दों में बांध पाना असंभव है। लेकिन मुनव्वर राना का यह शेर मां की अपार शक्ति और ममता को दर्शाता है। बच्चे के लिए मां हर मुश्किल से लड़ सकती है, हर दर्द सह सकती है। रविवार को मदर्स डे है, इसी क्रम में हम आपको कुछ ऐसी मां की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को मुकाम तक पहुंचाने के लिए संघर्षों का पहाड़ लांघा है।
अनंत जब पैदा हुआ, तो उसके हाथ और पैर मुड़े हुए थे, ज्यादा रो भी नहीं रहा था। उसके हाथ पैर को सीधा करने के चक्कर में एक पांव टूट गया और कुछ घंटे के बच्चे को प्लास्टर चढ़ गया। डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि बच्चा कभी चल नहीं पाएगा। उसको ऑर्थोपेडिक मल्टीप्लेक्स बीमारी थी। दो बेटियों के बाद बेटे का जन्म और इस अवस्था में, आंसू रुक नहीं रहे थे। जैसे ही उसे गोद में लिया तो ठान लिया कि कैसे भी हो, बच्चे को अच्छे मुकाम तक पहुंचाऊंगी।
यह कहना है एआईटीएच के छात्र अनंत वैश्य की मां ज्योति का। 24 वर्षीय अनंत दिव्यांग हैं, नाक से मोबाइल और बाएं हाथ की अंगुलियों से लैपटॉप चलाते हैं। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और उनको हाल ही में पीडब्लूसी कंपनी में आठ लाख का पैकेज मिला है। ज्योति कहती हैं कि अनंत के जन्म के बाद चौथी संतान को लेकर काफी दबाव था, लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। अनंत की बुद्धि बचपन से तेज थी, वह कंप्यूटर का शौकीन था।
वह हमेशा कहता था कि मां सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनूंगा। स्कूल-कॉलेज भेजने के लिए कम से कम दो घंटे उसको तैयार करने में लगते थे। वह मुझ पर निर्भर था, मैं उसे छोड़कर कभी कहीं न गई। अब पोस्टिंग जहां भी मिलेगी, वहां उसके साथ जाऊंगी। लंबे समय से ताने सुनते-सुनते थक गई थी पर अब सबको जवाब मिल गया है।
बेटियों की पढ़ाई में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए मां मीना पाल शिक्षक बनीं। खेती-किसानी भी की। बेटियों की पढ़ाई में कमी न रह जाए तो खुद नर्सिंग का कोर्स किया और निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी भी की। चौबेपुर ब्लॉक के बजराहापुरवा की रहने वाली मीना बताती हैं कि 20 साल पहले पति शैलेश कुमार प्राइवेट स्कूल में एक हजार रुपये में पढ़ाते थे। बचे समय में खेती-किसानी भी करते थे पर परिवार का खर्च नहीं संभल रहे थे।
दो बेटियां (हर्षिता और रुचिता) होने के बाद समस्याएं बढ़ने लगीं। इसके बाद मीना ने निजी स्कूल में दो हजार रुपये में पढ़ाना शुरू कर दिया। दिन भर पढ़ाने के बाद खेती में भी हाथ बंटाती थीं। समय के साथ बेटियों की पढ़ाई के खर्चे बढ़े तो उन्होंने नर्स बनने का मन बनाया। मायके वालों के सहयोग से 2016 में नर्सिंग का कोर्स पूरा किया। इसके बाद निजी अस्पताल में तीन हजार रुपये में नर्स की नौकरी शुरुआत की। बड़ी बेटी हर्षिता इस समय बीसीए और छोटी बेटी रुचिता इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही है। हर्षिता कहती हैं कि मां कड़ी मेहनत कर मुझे पढ़ा रही हैं। मैं इंजीनियर बनकर दिखाऊंगी।
इंद्रानगर में रहने वाली अनीता दीक्षित डॉक्टर बनना चाहती थीं। पिता रामनंदन त्रिपाठी एयरफोर्स से सेवानिवृत्त हुए, तो बेटी की 18 साल की उम्र में ही शादी कर दी, तब अनीता ने इंटर पास किया था। डॉक्टर बनने की इच्छा उनके दिल में दबी रही। जब बेटी श्रुति बड़ी हुई, तो उन्होंने बेटी से पूछा कि क्या बनना चाहती हो? इस पर बेटी ने डॉक्टर बनने की इच्छा जताई। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह उन्होंने बेटी को डॉक्टर बनाया। सरस्वती डेंटल कॉलेज से श्रुति ने बीडीएस कर लिया है।
अनीता मूल रूप से औरैया की रहने वाली हैं। उनकी मां का मायका गुमटी में था। पति कृष्ण कुमार दीक्षित तिलक डिग्री कॉलेज औरैया में कार्यरत हैं। वह गुप्ता सोसाइटी इंद्रानगर में रहती हैं। उन्होंने बताया कि बेटा शशांक दीक्षित भी इंजीनियर बन गया है। अब वह गरीब बेटियों को अपने पैर पर खड़ा करने लगी हैं। कढ़ाई, सिलाई सिखाने के लिए सेंटर खोल लिया है। सेंटर में अभी तक दो हजार से ज्यादा लड़कियां प्रशिक्षण पा चुकी हैं। वह बताती हैं कि बेटी इस वक्त बेंगलुरु से एमडीएस कर रही
सब कह रहे हैं आज मां का दिन है, कोई यह बताए वह कौन सा दिन जो मां के बिन है। शनिवार को फजलगंज स्थित अपराजिता सेंटर में मदर्स डे पर आयोजित कार्यक्रम में जब ये लाइनें पढ़ी गईं, तो वहां मौजूद हर शख्स भावुक हो गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ गणेश वंदना से हुआ। सेंटर की छात्राओं ने मां मेरी मां प्यारी मां… गाना सुनाकर सभी को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। गानों, कहानियों और एक्ट के माध्यम से मां की ममता को दिखाया गया। अंगुली पकड़ के तूने चलना सिखाया था ना गाना सुनकर सभी की आंखें भर आईं। मुझे माफ करना ओम सांई राम, तुझसे पहले लूंगा मम्मी डैडी का नाम गाने को सुनाकर छात्राओं ने मां के महत्व को बताया। एक्ट के माध्यम से दिखाया गया कि कैसे मां अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करती है।
कार्यक्रम में छात्राओं की माताएं भी आईं और अनुभव साझा किए। मंजू यादव ने कहा कि मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं थीं, लेकिन आज मैं जो भी हूं, उनकी ही बदौलत हूं। सरिता दीक्षित ने मां पर कविता प्रस्तुत की। छात्राओं ने मां को समर्पित पोस्टर बनाए। मालाबार गोल्ड की ओर से लाया गया केक काटा गया। पार्श्वनाथ चैरिटेबल ट्रस्ट ने लंच की व्यवस्था की। अपराजिता सेंटर में छात्राओं को निशुल्क कोरियाग्राफी सिखाने वाले उमेश चौहान को सम्मानित किया गया। इस मौके पर संदीप सिंह, राजेंद्र पाल सिंह, राजेश श्रीवास्तव, रिचा, विनय खन्ना आदि मौजूद रहे

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