नोएडा में सुपरटेक के ट्विन टावर्स 12 सेंकेंड में हुए धराशाई, इलाके में धूल ही धूल का गुबार

India International Uttar Pradesh अपराध-अपराधी

भारत में ऐसा पहली बार हुआ जब नोएडा में सुपरटेक के 30 और 32 मंजिला ये गगनचुंबी इमारतें पलक झपकते ही मिट्टी में मिल गईं. बटन दबाते ही 9-12 सेकंड के अंदर सुप्रीम कोर्ट के आदेश क्रियान्वयन हो गया लेकिन भले ही यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ हो लेकिन भ्रष्टाचार के यह दलदल रूपी दोनों टावर मोदी है तो मुमकिन है और बाबा बुलडोजर वाले की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही हो पाया है क्योंकि जनाब यह बदलता हुआ भारत है…

नोएडा में सुपरटेक के दो ट्विन टावर जमींदोज कर दिए गए हैं. 30 और 32 मंजिला ये गगनचुंबी इमारतें पलक झपकते ही मिट्टी में मिल गईं. बटन दबाते ही 9-12 सेकंड के अंदर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फाइनल तामील हो गई.पलक झपकते ही मिट्टी में मिल गया ट्विन टावरनोएडा के सेक्टर 93A में स्थित सुपरटेक ट्विन टावर जमींदोज कर दिया गया है. 3700 किलोग्राम विस्फोटक के जरिए इमारत को ढहाया गया. थोड़ी देर पहले तक कुतुब मीनार से ऊंचा ट्विन टावर दिखाई दे रहा था, जो कि अब मलबे में तब्दील हो चुका है. ट्विन टावर के धराशायी होने बाद धूल का जबरदस्त गुबार उठा।

बताया जा रहा है कि करीब दो घंटे तक धूल का गुबार हवा में रहेगा. वहीं आसपास के लोगों को हटाया गया है. हेल्थ इमरजेंसी के मद्देनजर तीन अस्पताल भी अलर्ट पर रखे गए हैं. पलक झपकते ही 3700 किलोग्राम बारूद ने इन इमारतों को ध्वस्त कर दिया. सुपरटेक ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 17.55 करोड रुपये का खर्च (Supertech Twin Towers Demolition Cost) आने का अनुमान है. टावर्स को गिराने का यह खर्च भी बिल्डर कंपनी सुपरटेक ही वहन करेगी. इन दोनों टावरों में अभी कुल 950 फ्लैट्स बने हैं और इन्हें बनाने में सुपरटेक ने 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च किया था।

आज दोपहर नोएडा के सेक्टर 93-A स्थित ट्विन टावर को ध्वस्त (Twin Towers Demolition) कर दिया जाएगा. देश में पहली बार इतनी ऊंची बिल्डिंग को जमींदोज किया जाएगा. नियमों को ताक पर रखकर इस गगनचुंबी इमारत का निर्माण किया गया था. इस बिल्डिंग को बनाने वाले सुपरटेक बिल्डर (Supertech) के खिलाफ एमराल्ड कोर्ट के बायर्स ने अपने खर्च पर एक लंबी लड़ाई लड़ी. इसके बाद कोर्ट ने ट्विन टावर को गिराने का फैसला सुनाया था।

ट्विन टावर में सैकड़ों लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे. इनमें से अभी भी कुछ लोगों को रिफंड नहीं मिला है. गिराने की प्रक्रिया के दौरान घरों को होने वाले संभावित नुकसान से लेकर विस्फोट से उड़ने वाली धूल तक, हर कदम यहां के निवासियों के लिए खौफ के साए में रहने के समान है. भ्रष्टाचार की गगनचुंबी इमारत की शुरुआतभ्रष्टाचार की इस गगनचुंबी इमारत के बनने की कहानी की शुरुआत करीब डेढ़ दशक पहले हुई थी. नोएडा के सेक्टर 93-A में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए जमीन आवंटन 23 नवंबर 2004 को हुआ था।

इस प्रोजेक्ट के लिए नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की थी. 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई लेकिन उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी.

क्या था प्रोजेक्ट का प्लान

सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के मामले में भी प्लॉट नंबर 4 पर आवंटित जमीन के पास ही 6.556.61 वर्गमीटर जमीन का टुकड़ा निकल आया, जिसकी अतिरिक्त लीज डीड 21 जून 2006 को बिल्डर के नाम कर दी गई. लेकिन ये दो प्लॉट्स 2006 में नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बन गया. इस प्लॉट पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया. इस प्रोजक्ट में ग्राउंड फ्लोर के अलावा 22 मंजिल के 16 टावर्स को बनाने का प्लान था।

यहां से हुई विवाद की शुरुआत

यहां तक तो सबकुछ ठीक था, लेकिन बात बिगड़नी शुरू तब हुई जब 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया. इसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया. एफएआर बढ़ने से अब उसी जमीन पर बिल्डर ज्यादा फ्लैट्स बना सकते थे. इससे सुपरटेक बिल्डर को बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई. यहां तक भी एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने किसी तरह का विरोध नहीं किया, लेकिन बात तब बिगड़ी, जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिली. इसके बाद एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने विरोध करना शुरू कर दिया. क्योंकि नक्शे के हिसाब से आज जहां पर 32 मंजिला एपेक्स और सियाने खड़े हैं, वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था. इसके साथ ही यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रावधान किया गया था।

अथॉरिटी ने नहीं की मददRWA ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की. लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. तब RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शे की मांग की, लेकिन उन्हें यहां से भी मदद नहीं मिली. एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के निवासी यू बी एस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ट्विन टावर्स को बनाने की मंजूरी दी थी. जब खरीदारों को कहीं से भी मदद नहीं मिली, तो उन्होंने साल 2012 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया।

कोर्ट ने पुलिस को जांच के आदेश दिए गए, जांच में पुलिस ने बायर्स के आरोप को सही पाया.दबा दी गई जांच रिपोर्टतेवतिया का कहना है कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया. इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला. 2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 प्लोर का निर्माण पूरा कर दिया।

हाईकोर्ट ने दिया ट्विन टावर्स को गिराने का आदेश

दूसरी तरफ कोर्ट में मामला चलता रहा और 2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें गिराने का आदेश दिया तब जाकर 32 मंजिल पर ही काम रुका. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुपरटेक सुप्रीम पहुंच गया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से भी उसे राहत नहीं मिली और सर्वोच्च न्यायालय ने 31 अगस्त 2021 को आदेश जारी कर इसे तीन महीने के भीतर गिराने को कहा. इसके बाद इसकी तरीख को आगे बढ़ाकर 28 अगस्त 2022 कर दिया गया।

कितने लोगों ने खरीदे थे फैल्ट्स?

इस ट्विन टावर्स के गिरने के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि जिन लोगों ने इसमें फ्लैट खरीदे थे, उनका क्या होगा? ट्विन टावर्स में 711 ग्राहकों ने फ्लैट बुक कराए थे. इनमें से सुपरटेक ने 652 ग्राहकों का सेटलमेंट कर दिया है. बुकिंग अमाउंट और ब्याज मिलाकर रिफंड का विकल्प आजमाया गया है। मार्केट या बुकिंग वैल्यू+इंटरेस्ट की कीमत के बराबर प्रॉपर्टी दी गई है। बिल्डर ने प्रॉपर्टी की कीमत कम या ज्यादा होने पर पैसा रिफंड किया या अतिरिक्त रकम ली. जिन लोगों को बदले में सस्ती प्रॉपर्टी दी गई उनमें सभी को अभी तक बाकी रकम नहीं मिली है।

ट्विन टावर्स के 59 ग्राहकों को अभी तक नहीं मिला रिफंड नहीं मिला है। रिफंड की आखिरी तारीख 31 मार्च 2022 थी. कुल 950 फ्लैट्स के इन 2 टावर्स को बनाने में ही सुपरटेक ने 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च किए थे। गिराने का आदेश जारी होने से पहले इन फ्लैट्स की मार्केट वैल्यू बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी।

किसपर क्या कार्रवाई हुई?

नोएडा विकास प्राधिकरण और बिल्डर की मिलीभगत से नियमों को ताक पर रखकर इस बिल्डिंग का निर्माण हुआ था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डेढ़ दशक इस पुराने इस मामले की जांच कराई। इसके लिए अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त के नेतृत्व में 4 सदस्यों की समिति बनाई गई। जांच की रिपोर्ट के आधार पर अवैध तरीके से बिल्डिंग के निर्माण के मिलीभगत में शामिल 26 अधिकारियों और कर्मचारियों, सुपरटैक लिमिटेड के निदेशक और उनके आर्किटेक्ट के खिलाफ कार्रवाई की गई। इस मामले में संलिप्त ऐसे 4 अधिकारी, जो अलग-अलग अथॉरिटी में अपनी सेवाएं दे रहे थे। उन्हें निलंबित कर उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई भी शुरू की गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *