जन्म-दिवस: दुबले शरीर और दृढ़ संकल्प वाले धर्मवीर सिंह

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक धर्मवीर सिंह का जन्म 24 जुलाई, 1947 को उ.प्र. के बिजनौर जिले में स्थित गांव अस्करीपुर में हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ सिंह तथा माता श्रीमती मूंगिया देवी थीं। घर में खेती का काम था। जब धर्मवीरजी केवल एक वर्ष के ही थे, तो उनकी माताजी का निधन हो गया। अतः वे मां के प्यार से वंचित ही रहे। उनके दादा श्री शिवनाथ सिंह स्वाधीनता सेनानी थे; पर उन्होंने इससे कोई सुविधा नहीं ली तथा अपने किसी परिजन को भी इसका लाभ नहीं लेने दिया।

दादाजी आर्य समाज के प्रचार के लिए काफी समय घर से बाहर रहते थे; पर धर्मवीरजी की मां के निधन के बाद फिर वे कहीं नहीं गये। इस प्रकार उनका पालन दादाजी ने ही किया। धर्मवीरजी शुरू से ही बहुत दुबले-पतले थे। शायद मां का दूध कम मिलने से ऐसा हुआ। कक्षा पांच तक की शिक्षा गांव में पूरी कर उन्होंने 1964 में गोहावर (बिजनौर) से कक्षा 11 की परीक्षा उत्तीर्ण की; पर स्वास्थ्य बिगड़ने से वे कक्षा 12 की परीक्षा नहीं दे सके। इस कमी को उन्होंने 1984 में आगरा से व्यक्तिगत परीक्षा देकर पूरा किया।

1966 में वे पढ़ाई के लिए अपने मामाजी के गांव बसेड़ा कुंवर गये हुए थे। वहां संघ की शाखा लगती थी। अपने ममेरे भाई ओमप्रकाश सिंह के साथ वे भी वहां जाने लगे; पर कुछ समय बाद वह शाखा बंद हो गयी। इस पर वहां के मंडल कार्यवाह महेन्द्रजी ने उन्हें ही शाखा लगाने की विधि सिखा दी। इससे धर्मवीरजी ने मुख्य शिक्षक बनकर वह शाखा फिर शुरू कर दी।

1967 से 71 तक उन्होंने रामगंगा बांध परियोजना के कालागढ़ स्थित प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र की फार्मेसी में काम किया। 1968, 69 तथा 1971 में उन्होंने क्रमशः तीनों संघ शिक्षा वर्ग पूरे किये। अब उन्होंने नौकरी छोड़ दी और संघ के प्रचारक बन गये। चमोली, जोशीमठ, कर्णप्रयाग के बाद उन्हें 1975 में चमोली जिला प्रचारक बनाया गया; पर तभी देश में आपातकाल और फिर संघ पर प्रतिबंध भी लग गया। इससे वे कभी पहाड़ तो कभी बिजनौर जिले में जन जागरण करते रहे। एक बार पुलिस वालों ने उनके गांव आकर उनके घर की कुर्की भी की; पर धर्मवीरजी और उनके परिवार वाले डरे नहीं।

धर्मवीरजी को पैदल चलने का बहुत अभ्यास रहा। आपातकाल में कई बार सड़क पर पुलिस दिख जाती थी। अतः वे पैदल मार्गों से, एक से दूसरी पहाड़ी पर होकर निकल जाते थे। इस प्रकार उन्होंने पूरे गढ़वाल में संपर्क बनाये रखा। एक बार वे साहसपूर्वक बिजनौर जेल में जाकर वहां बंदी कार्यकर्ता विद्यादत्त तिवारी से खुद को उनका बड़ा भाई बताकर मिल भी आये। बाद में जब जेल अधिकारियों को असली बात पता लगी, तो बड़ा हड़कम्प मचा।

प्रतिबंध हटने पर उन्हें फिर चमोली जिले का काम दिया गया; पर आपातकाल के अस्त-व्यस्त जीवन से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। अतः वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नकुड़, हरदोई, पीलीभीत, रामपुर, चांदपुर, नौएडा, दादरी आदि में नगर तथा तहसील प्रचारक रहे। कई वर्ष वे प्रांत कार्यालय (आगरा) की व्यवस्था में भी सहयोगी रहे। उत्तरांचल और मेरठ प्रांत में सेवा प्रमुख, उत्तरांचल प्रांत कार्यालय प्रमुख (देहरादून), केशव धाम (वृंदावन), अल्मोड़ा और मुरादाबाद में भी वे रहे। बीच-बीच में आने वाले अल्पकालीन कामों में भी उनको लगा दिया जाता है। वे पूर्ण शक्ति से उस काम में लग जाते हैं।

धर्मवीरजी को संघ कार्य में मा. रज्जू भैया, ओमप्रकाशजी, कौशलजी, ज्योतिजी, सूर्यकृष्णजी, गजेन्द्र दत्त नैथानी, अशोक सिंहल, भाउराव देवरस, माधवराव देवड़े आदि वरिष्ठ प्रचारकों का भरपूर सान्निध्य और स्नेह मिला है। कमजोर शरीर के बावजूद वे दृढ़ संकल्प के धनी हैं। इन दिनों वे मेरठ के प्रांतीय कार्यालय प्रमुख के नाते वहां की देखभाल कर रहे हैं।(13.12.2018 को प्राप्त लिखित जानकारी)

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