नेशनल हेराल्ड का भूत उड़ाए हुए है सोनिया एवं राहुल गांधी की नींद…

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निर्भय सक्सेना, बरेली। देश भर में चर्चित हो चुके ऐसोसियट जनरल लिमिटेड (ए.जी.एल.) के ‘नेशनल हैराल्ड’ समाचार पत्र प्रकरण की ई डी की आंच में आजकल कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी व सांसद राहुल गांधी प्रभावित हो रहे हों दोनों को नोटिस भी जारी हुए। श्रीमती सोनिया गांधी ने तो कोविड से पीड़ित होने की बात कहकर आगे की तारीख मांगी है। राहुल गांधी को 13 जून को ई डी ने बुलाया है। जैसी चर्चा है कि ई डी को जांच में इस हेराल्ड प्रकरण में काफी आर्थिक हेरफेर करने होने की आशंका है। जो उक्त दोनो के ब्यान होने के बाद ही सामने आएगा की ऊंट किस करवट बैठेगा।

आजकल नेशनल हेराल्ड का भूत श्रीमती सोनिया गांधी एवम राहुल गांधी जैसे दोनो नेताओं की नींद उड़ाए हुए है। आज भी ‘नेशनल हैराल्ड’ लखनऊ के दर्जनों कर्मचारियों के वेतन संबंधी प्रकरण लखनऊ के श्रम न्यायालय व अन्य अदालतों में फाइलों के ढेर में दबे हैं जिसमें सर्वश्री स्वर्गीय एस. पी. निगम व स्वर्गीय आर. के. अवस्थी के नाम प्रमुख हैं। जिन्होंने नैशनल हैराल्ड के कर्मचारियों के वेतन की अपने जीते जी लंबी लड़ाई लड़ी। इस पुनीत कार्य में यू. पी. जर्नलिस्ट एसोशियशन (उपजा) ने भी उसका भरपूर साथ दिया था।

पत्रकार साथी भले ही मजाक में कहते हों पर यह सही है कि ‘नेशनल हैराल्ड’ के स्वर्गीय पत्रकारों का भूत आज भी कांग्रेस को घेरे खड़ा है और ई डी को काफी सुराग भी मिले है । एक समय तो ‘नेशनल हैराल्ड’ की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकारों ने सहकारिता के आधार पर लखनऊ से दैनिक ‘वर्कर्स हेैराल्ड’ नामक समाचार पत्र भी निकालकर अपना संघर्ष जारी रखा था। सहकारिता के आधार पर इस ‘वर्कर्स हैराल्ड’ समाचार पत्र में मुझ जैसे कई उपजा से जुड़े पत्रकारों ने इसके शेयर खरीदकर अपना आर्थिक योगदान किया था।

‘नेशनल हैराल्ड’ कर्मियों का संघर्ष वर्ष 1970 के दशक से ही चलता रहा। जिस समय ‘नेशनल हैराल्ड’, ‘नवजीवन’, ‘कौमी आवाज’ समाचार पत्रों का लखनऊ में सत्तारूढ़ होने का दबदवा था उस दौर में भी ‘नेशनल हैराल्ड’, ‘नवजीवन’ के पत्रकार साथी हमेशा वेतन के लिए संघर्ष करते रहे। नेशनल हैराल्ड के संपादकीय विभाग के एस. पी. निगम, सरदार अवतार सिंह कल्सी, एस. के. राव, श्रीमान टंडन हो या नवजीवन के आर.के.अवस्थी या अन्य पत्रकार साथी रहे हो हमेशा पत्रकारों के कल्याण की लड़ाई लड़ते रहे जो अब जीवित भी नहीं हैं।

स्वर्गीय एस.पी.निगम के बारे में लखनऊ के पत्रकार साथी बताते हैं निगम साहब विधान सभा में जाएं या न जायें पर उनकी नेशनल हेराल्ड की रिपोर्टिंग अन्य समाचार पत्रों पर हमेशा भारी पड़ती थी। यही हाल आर. के. अवस्थी का था। हिन्दी नवजीवन में रहते हुए भी वह चलती फिरती अंग्रेजी डिक्शनरी व खेलकूद के समाचार पत्रों को पैनापन देने में माहिर थे।

लखनऊ के केसरबाग एवम् नई दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित नेशनल हैराल्ड हाउस के कार्यालय में मुझे जाने का कई बार अवसर मिला। बरेली से कुछ दिनो नवजीवन को समाचार भी भेजें पर मुझे वहां मुझे आत्मसंतुष्टि नहीं मिली क्योंकि अंतिम दौर में नवजीवन बदहाली के दौर से गुजर रहा था। ‘नेशनल हैराल्ड’ व ‘नवजीवन’ के बरेली संवाददाता रहे स्वर्गीय मुंशी प्रेम नारायण सक्सेना वर्षों इस समाचार पत्र से जुड़े रहे। बाद में उनके सहयोगी रहे भैरव दत्त भट्ट ने बरेली में दैनिक ‘नवजीवन’ का कार्य संभाला।

नगर विकास मंत्री राम सिंह खन्ना के कार्यालय में सहायक बनने के बाद भैरव दत्त भट्ट ने नवजीवन का कार्य छोड़ दिया था। उसके बाद ही मुंशी प्रेम नारायण ने मुझे ‘नवजीवन’ समाचार पत्र में एवं कौसर शम्सी को दैनिक ‘कौमी आवाज’ में बरेली के समाचार भेजने को कहा था। मुझे याद है लखनऊ में जब आर. के. अवस्थी से कार्यालय में मिला उन्होंने मुझे युवा होने के नाते सलाह दी की समाचार पत्र से पार्ट टाइम जुड़ो और अपना कोई और कार्य देखों क्योंकि हैराल्ड ग्रुप में पत्रकारों का भविष्य ठीक नहीं है। हम लोग खुद वेतन के लिए संघर्ष करते रहते हैं।

बाद में उपजा के कई कार्यक्रमों में एस. पी. निगम व आर.के. अवस्थी के साथ देश भर में घूमने का अवसर भी मिला। उन्होंने पत्रकारिता संबंधी कई टिप दिये व हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहने पर जोर दिया। आज भले ही वह नहीं है पर उनकी बात आज भी धरातल पर खरी उतरती है। श्री अवस्थी व एस.पीे.निगम कहते थे कि नेशनल हैराल्ड के निकालने वाले ए. जे. एल. ग्रुप ने 1977 में अखबार बंद कर दिये जिसके बाद श्रम विभाग व श्रम अदालतें के चक्कर में उन्होंने अपने कई वर्ष खराब किये पर नतीजा नहीं निकाला। आज भी अखबार कर्मियों की नेशनल हैराल्ड पर वेतन संबंधी देनदारी का काफी बकाया पड़ा है।

बाद में एक बार पुनः प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में कानपुर के श्रमिक नेता विमल मेहरोत्रा आदि के कहने पर अखबार ने पुनः रेगना प्रारंभ किया पर वह दौर भी इस अखबार को आर्थिक संकट से नहीं उबार सका और वर्ष 2008 में यह समाचार पत्र पूरी तरह बंद हो गया। हिंद मजदूर सभा से जुड़े कानपुर के कांग्रेसी नेता विमल मेहरोत्रा मेरे पिता श्री सुरेश चंद सक्सेना के मित्र होने के नाते कई बार मेरे निवास पर भी रुके थे।

श्री एस. पी. निगम व अवस्थी बताते थे कि एक दौर ऐसा भी था कि नेशनल हैराल्ड के संपादक चेलापति राव के कमरे में जाने से पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री व नेशनल हैराल्ड समूह के मालिक जवाहर लाल नेहरू भी चपरासी के माध्यम से श्री चेलापति राव से पुछवाते थे कि क्या मैं उनसे मिल सकता हूं। उसके बाद ही श्री नेहरू उनसे मिलने जाते थे। यह था नेशनल हैराल्ड के संपादक चेलापति राव का रूतवा। पर आज के दौर में दैनिक समाचार पत्रों में संपादक जैसा पद ही गौण हो गया है।

जहां तक यू. पी. जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) की बात है उसने हमेशा ऐसोसियट जनरल लिमिटेड (ए.जी.एल.) ‘नेशनल हैराल्ड’ के संघर्ष में भाग लिया। इसके बाद नेशनल हैराल्ड के कर्मचारियों ने लखनऊ से सहकारिता के आधार पर ‘वर्कर्स हैराल्ड’ समाचार पत्र अमीनाबाद लखनऊ से प्रकाशित किया। जिसमें कई उपजा से जुड़े पत्रकारों ने आर्थिक सहयोग दिया। आज भले ही एस. पी. निगम व आर. के. अवस्थी जीवित न हों पर उनके द्वारा निकाला गया दैनिक अखबार ‘वर्कर्स हैराल्ड’ को लखनऊ से एस. के. सिंह आदि लोग निकलते रहे। फिर वह बंद हो गया। बरेली में पहले इसके प्रतिनिधि शंकर दास थे ।

नोटः कलम बरेली की से साभार

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