तपस्वी और प्रचारक मधुसूदन देव को जानिए जन्म-दिवस पर

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महावीर सिघंल । यों तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परम्परा में पले-बढ़े सभी प्रचारक परिश्रम, सादगी, प्रेमभाव और सरलता की प्रतिमूर्ति होते हैं; पर उनमें से कुछ के तपस्वी जीवन की छाप सामान्य कार्यकर्त्ता के मन-मस्तिष्क पर बहुत गहराई से अंकित हो जाती है। श्री मधुसूदन गोपाल देव जी ऐसे ही एक प्रचारक थे। कार्यकर्ताओं में वे ‘देव जी’ के नाम से लोकप्रिय थे।

देव जी का जन्म आठ जून, 1918 को धन्तोली, नागपुर में श्री गोपाल देव एवं श्रीमती उमाबाई के घर में हुआ था। श्री गोपाल देव जी की डा. हेडगेवार से घनिष्ठ मित्रता थी। अतः वे उनके घर में प्रायः आते रहते थे। इस कारण देव जी को संघ के विचार और कार्यप्रणाली घुट्टी में ही प्राप्त हुए। जब वे धन्तोली सायं शाखा के मुख्य शिक्षक बने, तो वह नागपुर में एक आदर्श शाखा मानी जाती थी।

100 बाल और 200 तरुण स्वयंसेवक प्रतिदिन वहाँ आते थे। वे मुख्यतः बाल विभाग का काम देखते थे। 1937 में मैट्रिक और 1940 में बी.एस-सी. करने के बाद वे नागपुर के एक विद्यालय में विज्ञान के अध्यापक हो गये। 1940 में डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने युवा स्वयंसेवकों को आह्नान किया कि वे प्रचारक बनें और पूरा जीवन देश-धर्म की सेवा में लगायें।

देव जी के मन को भी इस आह्वान ने छू लिया और वे 1942 में अच्छे वेतन वाली पक्की नौकरी छोड़कर प्रचारक बन गये। श्री गुरुजी ने उन्हें बिहार भेजा। इसके बाद तो वे यहीं के होकर रह गये। 1948 के प्रतिबन्ध के समय प्रचारकों को अनुमति दी गयी थी कि यदि वे चाहें, तो घर वापस जा सकते हैं; पर देव जी ने बिहार नहीं छोड़ा। अपनी अन्तिम साँस भी उन्होंने बिहार में ही ली। मधु जी की रुचि शारीरिक कार्यक्रमों में बहुत थी। उनका शरीर भी अत्यन्त सुगठित था।

संघ के घोष और सामान्य संगीत से भी उन्हें बहुत प्रेम था। इसलिए वे जहाँ भी रहे, वहाँ अच्छा घोष पथक निर्माण किया। पटना में गीत-संगीत के कार्यक्रम होते रहते थे। ऐसे में वे सड़क पर ही खड़े होकर संगीत का आनन्द लिया करते थे। मुंगेर, दरभंगा, पटना आदि स्थानों पर उन्होंने संघ कार्य को गति दी। 1957 में वे बिहार के प्रान्त प्रचारक तथा आपातकाल के बाद 1977 में उत्तर प्रदेश और बिहार के सहक्षेत्र प्रचारक बने। 1980 में बिहार को अलग क्षेत्र तथा उन्हें क्षेत्र प्रचारक बनाया गया।

पटना केन्द्र होने के कारण बिहार के प्रमुख लोगों से देव जी का सम्पर्क रहता था। जयप्रकाश नारायण उनमें से एक थे। यद्यपि वे संघ के प्रबल विरोधी थे; पर लगातार सम्पर्क से उन्हें संघ कार्य समझ में आया। 1975में जब इन्दिरा गान्धी ने देश में आपातकाल थोपा, तो उसके विरुद्ध हुए आन्दोलन में संघ के योगदान को देखकर जयप्रकाश जी चकित रह गये। अब वे संघ के प्रशंसक बन गये।

इतना ही नहीं, वे पटना में ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के समापन में सात अक्तूबर, 1977 को मुख्य अतिथि बनकर आये। आगे चलकर देव जी को बिहार, बंगाल और उड़ीसा का काम सौंपा गया। बढ़ती आयु के कारण जब प्रवास कठिन होने लगा, तो 1995 में उन्हें बिहार में ‘विद्या भारती’ का संरक्षक बनाया गया। 12 दिसम्बर 2006 को पटना में ही उनका देहान्त हुआ। उनके निधन से डा. हेडगेवार के समय में निर्माण हुए कार्यकर्त्ताओं की शृंखला का एक सुवर्ण मोती और टूट गया।

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