दलबदल विरोधी कानून: उप राष्ट्रपति नायडू ने खामियों पर जताई चिंता

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New Delhi उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को दलबदल विरोधी कानून में विसंगतियों को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि इस अधिनियम को प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन किया जाना चाहिए। नायडू बेंगलुरु के प्रेस क्लब में ‘नए भारत में मीडिया की भूमिका’ विषय पर लेक्चर दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि दलबदल विरोधी कानून में कई कमियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है ताकि विधायकों-सांसदों को अपने निजी हित साधने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से रोका जा सके। चयनित प्रतिनिधियों को पहले इस्तीफा देना चाहिए और फिर दूसरी पार्टी में शामिल होना चाहिए।
नायडू ने कहा, ‘अगर कोई चयनित प्रतिनिधि पार्टी छोड़ना चाहता है तो पहले उसे अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए और फिर से चनयित होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अब वह समय आ गया है जब हमें सच में इस कानून में संशोधन करने चाहिए क्योंकि इसमें कई कमियां हैं।
मामलों में कई वर्षों की देरी होने पर जताई नाराजगी
इसके साथ ही उन्होंने वक्ताओं, अध्यक्षों और अदालतों की ओर से दलबदल विरोधी मामलों को वर्षों तक घसीटे जाने पर भी नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि चेयरमैन और स्पीकर को दलबदल पर फैसला लेने की शक्ति दी गई है, लेकिन अधिकांश मामलों में इनका प्रभावी उपयोग नहीं होता।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि कानून में स्पष्टता होनी चाहिए और पीठासीन अधिकारी या स्पीकर समेत अदालतों के लिए एक समयसीमा तय होनी चाहिए कि दलबदल के मामले में अधिकतम छह महीने में फैसला हो जाना चाहिए। मैं निजी तौर पर महसूस करता हूं कि यह काम तीन माह में हो सकता है।
स्थानीय निकायों को सशक्त करना बहुत आवश्यक’
आज पंचायत राज दिवस (24 अप्रैल) भी है। इसे लेकर नायडू ने स्थानीय निकायों को सशक्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ये भारतीय लोकतंत्र के त्रिस्तरीय प्रशासन का हिस्सा हैं। इन निकायों के लिए राशि, कार्य और कार्य करने वाले लोग व संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

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