मनरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

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रायपुर :  मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) हितग्राही के तौर पर निजी भूमि में निर्मित कुएं ने परिवार के हालात बदल दिए हैं। पहले केवल चार एकड़ कृषि भूमि के भरोसे जीवन-यापन करने वाला परिवार कुएं की खुदाई के बाद अब धान की ज्यादा पैदावार ले रहा है। पानी की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए परिवार ने ईंट निर्माण के व्यवसाय में हाथ आजमाया। इस काम में परिवार को अच्छी सफलता मिल रही है। ईंटों की बिक्री से पिछले तीन वर्षों में परिवार को साढ़े तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। इससे वे ट्रैक्टर खरीदने के लिए बैंक से लिए कर्ज की किस्त नियमित रूप से चुका रहे हैं।

मनरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

मनरेगा से निर्मित कुएं ने बीजापुर जिले के धनोरा गांव की महिमा कुड़ियम और उसके परिवार की जिंदगी बदल दी है। इस कुएं की बदौलत अब उसका परिवार तेजी से कर्जमुक्त होने की राह पर है। पहले  महिमा कुड़ियम और उसके पति  जेम्स कुड़ियम खरीफ मौसम में अपने चार एकड़ खेत में धान उगाकर बमुश्किल गुजर-बसर कर पाते थे। जेम्स कुड़ियम बताते है कि सिंचाई का साधन नहीं होने से केवल बारिश के भरोसे सालाना 15-20 क्विंटल धान की पैदावार होती थी। वर्ष 2017 में उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर ट्रैक्टर खरीदा था, जिसका हर छह महीने में 73 हजार रूपए का किस्त अदा करना पड़ता था। आय के सीमित साधनों और ट्रैक्टर से भी आसपास लगातार काम नहीं मिलने से वे इसका किस्त समय पर भर नहीं पा रहे थे, जिससे ब्याज बढ़ता जा रहा था। इसने पूरे परिवार को मुश्किल में डाल दिया था।

मनरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राहइन्ही परेशानियों के बीच एक दिन  महिमा कुड़ियम को धान की सूखती फसल को देखकर ग्राम रोजगार सहायक ने मनरेगा से खेत में कुआं निर्माण का सुझाव दिया। ग्राम रोजगार सहायक की सलाह पर उसने अपनी निजी भूमि में कुआं खुदाई के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया। पंचायत की पहल पर मनरेगा के अंतर्गत उसके खेत में कुआं निर्माण का काम स्वीकृत हो गया और 11 फरवरी 2019 को इसकी खुदाई भी शुरू हो गई। सात फीट की गहराई में ही गीली मिट्टी में पानी नजर आने लगा। चार महीनों के काम के बाद 11 जून 2019 को कुआं बनकर तैयार हो गया। कुएं में लबालब पानी आ गया।मनरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

 महिमा कुड़ियम बताती है कि उसके कुएं में पर्याप्त पानी है। कुएं के पानी का उपयोग वे अपने चार एकड़ खेत में लगे धान की सिंचाई के लिए करते है। इससे धान की पैदावार अब बढ़कर लगभग 50 क्विंटल हो गई है। इसमें से वे कुछ को स्वयं के उपभोग के लिए रखकर शेष पैदावार को बेच देते हैं। धान की उपज बढ़ने के बाद भी ट्रैक्टर का किस्त पटाने की समस्या बरकरार थी। ऐसे में उन्होंने कुएं से लगी अपनी एक एकड़ खाली जमीन पर ईट बनाने का काम शुरू किया। पिछले तीन सालों से वे लाल ईट का कारोबार कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उसके परिवार के द्वारा बनाए गए ईटों की काफी मांग है। ईट की बिक्री से उन्हें वर्ष 2019 में 50 हजार रूपए, 2020 में एक लाख रूपए और 2021 में डेढ़ लाख रूपए की कमाई हुई है।

खेत में कुआं निर्माण के बाद बदले हालातों के बारे में  कुड़ियम बताती है कि फसल का उत्पादन बढ़ने और ईट के कारोबार से परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। उसका परिवार अब चिंतामुक्त होकर सुखी और समृद्ध जीवन की ओर बढ़ रहा है। ट्रैक्टर के ऋण की अदायगी भी अब वे नियमित रूप से कर रहे हैं। अपने तीनों बच्चों जॉन, रोशनी और अभिलव को अच्छे स्कूल में पढ़ाने का उनका सपना भी अब पूरा हो गया है। वह कहती है – “कभी-कभी मन में यह विचार आता है कि यदि सही समय में उन्हें मनरेगा से जल संसाधन के रूप में कुआं नहीं मिला होता, तो वे कर्ज में डूब गए होते। मनरेगा सच में हम जैसे गरीब परिवारों के लिए वरदान है।“

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