शिक्षाविद, दार्शनिक, विज्ञानी और हिन्दू विचारक भी थे डॉ. राधाकृष्णन

India Uttar Pradesh Uttarakhand खाना-खजाना खेल-खिलाड़ी टेक-नेट तीज-त्यौहार तेरी-मेरी कहानी नारी सशक्तिकरण बॉलीवुड युवा-राजनीति लाइफस्टाइल शिक्षा-जॉब

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी,एक महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता होने के साथ ही विज्ञानी हिन्दू विचारक भी थे। राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में बिताए।

डॉ राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे (1962- 1967) राष्ट्रपति थे। मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अध्यापन का कार्य शुरू करने वाले राधाकृष्णन आगे चलकर मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हुए और फिर देश के कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य किया। 1939 से लेकर 1948 तक वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी. एच. यू.) के कुलपति भी रहे। वे एक दर्शनशास्त्री, भारतीय संस्कृति के संवाहक और आस्थावान हिंदू विचारक थे। इस प्रसिद्ध शिक्षक के सम्मान में उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

5 सितंबर 1888 को चेन्नई से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित एक छोटे से कस्बे तिरुताणी में डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वी. रामास्वामी और माता का नाम श्रीमती सीता झा था। रामास्वामी एक गरीब ब्राह्मण थे और तिरुताणी कस्बे के जमींदार के यहां एक साधारण कर्मचारी के समान कार्य करते थे।

डॉक्टर राधाकृष्णन अपने पिता की दूसरी संतान थे। उनके चार भाई और एक छोटी बहन थी छः बहन-भाईयों और दो माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यों के इस परिवार की आय अत्यंत सीमित थी। इस सीमित आय में भी डॉक्टर राधाकृष्णन ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा कभी कृपण नहीं होती। उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की, बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया।

स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का आरम्भिक जीवन तिरुतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही बीता। सन 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई।

कला संकाय में स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया और जल्द ही मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डॉ.राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया।

डा. राधाकृष्णन ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और भारतीय दर्शन से विश्व को परिचित कराया वे सावरकर और विवेकानन्द के आदर्शो से प्रभावित थे। बहुआयामी प्रतिभा के धनी डा. राधाकृष्णन को देश की संस्कृति से प्यार था शिक्षक के रूप में उनकी प्रतिभा,योग्यता और विद्यता से प्रेरित होकर ही उन्हें सविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया वे प्रसिद्ध विश्वविधालयो के उपकुलपति भी रहे।

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ.राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” प्रदान किया।

राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया,जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है।

भारत की स्वतन्त्रता के बाद डॉ. राधाकृष्णन सोवियत संघ में राजदूत बने 1952 तक वे रूस में राजनयिक रहे। उसके बाद उनको भारत के उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया, 1962 में डा. राजेन्द्र प्रसाद के बाद वे भारत के दुसरे राष्ट्रपति बने इनका कार्यकाल चुनौतियों भरा रहा। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध तथा दो प्रधानमंत्रियो का निधन इनके इनके कार्यकाल में ही हुए। डा. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल नेताओ के आग्रह के बाद भी अस्वीकार कर दिया।

काशी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लेने से गवर्नर ने इसे अस्पताल बना देने की धमकी दी थी. राधाकृष्णन ने दिल्ली जाकर वायसराय को प्रभावित कर समस्या हल की. गवर्नर द्वारा आर्थिक सहायता रोकने पर उन्होंने धन जुटाकर विश्वविद्यालय चलाया। शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सन 1954 में इन्हें ”भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पटुवक्ता थे. इनके व्याख्यानों से पूरी दुनिया के लोग प्रभावित थे. ये राष्ट्रपति पद से मुक्त होकर मई सन 1967 में चेन्नई (मद्रास) स्थित घर के माहौल में चले गये और अंतिम 8 वर्ष अच्छी तरह व्यतीत किये. उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्षो शिक्षक के रूप में व्यतीत किया उन्हें आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता हैं उनका जन्मदिन 5 सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता हैं। 17 अप्रैल 1975 को लम्बी बीमारी के बाद इस महापुरुष का निधन हो गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *