प्रेम और मानवीयता के कवि थे रामलाल अनजाना

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लव इंडिया, मुरादाबाद। प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष रामलाल अनजाना के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया ।( Three-day online discussion on the personality and work of eminent litterateur Smritis Ramlal Anjana on behalf of Literary Moradabad) । साहित्यकारों ने कहा कि रामलाल अनजाना प्रेम और मानवीयता के कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय सरोकारों को उजागर किया।

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की इक्कीसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 20 जून 1939 को जन्में राम लाल अनजाना का प्रथम काव्य संग्रह “चकाचौंध” वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात वर्ष 2000 में उनके दो काव्य संग्रह “गगन ना देगा साथ” और “सारे चेहरे मेरे” का प्रकाशन हुआ । वर्ष 2003 में उनका दोहा संग्रह “दिल के रहो समीप” प्रकाशित हुआ। वर्ष 2009 में उनकी काव्य कृति “वक्त ना रिश्तेदार किसी का” प्रकाशित हुई। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर मोहन राम मोहन की कृति ” मानव मूल्य और रामलाल अनजाना” का प्रकाशन वर्ष 2006 में हुआ। उनका निधन 27 जनवरी 2017 को हुआ ।

यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि रामलाल ‘अनजाना’ का जैसा व्यक्तित्व था उनकी काव्य भाषा में भी वैसी ही सहजता और तरल प्रवाह है जो उनकी रचनाओं को सहज, संप्रेष्य और उद्धरणीय बनाता है। वे सजावट के नहीं, बुनावट के कवि थे। उनकी रचनाएं समकालीन यथार्थ का दस्तावेज़ हैं।

प्रख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा कि रामलाल अनजाना की कृति ‘सारे चेहरे मेरे’ की रचनाएं न केवल सारगर्भित और प्रासंगिक है बल्कि वे युगीन दुर्व्यवस्थाओं से जन्मी कुरूपताओं पर करारा प्रहार भी करती हैं। प्रहार भी ऐसा अचूक है जिसकी संप्रेक्षण शक्ति पाठक और श्रोताओं के अंदर तक धंसती चली जाती है और उन्हें सोचने तथा कुछ करने के लिए बाध्य करती हैं।

सेवानिवृत्त उपनिदेशक आयकर मोहन राम मोहन ने कहा कि वे सारे वादों से दूर, विकार रहित कवि थे। कहीं कोई भी अहम् की लकीर उनके ललाट में नहीं थी। कृत्रिमता अथवा किसी भी प्रकार का कोई बड़बोलापन उनके आचरण में नहीं था। अत्यंत संवेदनशील अभिव्यक्ति रहती थी उनके मौन में। पूर्णरूपेण मानव मूल्यों की स्थापना हेतु समर्पित थे अनजाना जी।

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा उनकी रचनाओं में जनमन बसा हुआ था। उनके भीतर कविता का राग वैराग्य ओढ़कर बैठा हुआ था। रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि रामलाल अनजाना ने अपनी रचनाओं के माध्यम से संसार और जीवन की नश्वरता को अभिव्यक्त किया।

ओंकार सिंह ओंकार ने कहा कि उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से मानवतावाद का संदेश दिया। वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, अशोक विश्नोई, राजीव प्रखर, डॉ कृष्ण कुमार नाज, डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने उनसे संबंधित संस्मरण प्रस्तुत किए।

चंदक (बिजनौर) के साहित्यकार डॉ योगेंद्र प्रसाद ने कहा उनके दोहों में जन सामान्य की पीड़ा झलकती है। बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा उनका काव्य सृजन लगातार छीजती मानवीयता और मूल्य हीनता पर एक सटीक सार्थक टिप्पणी है। रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा उनकी रचनाएं जनसंवेदना को झकझोरती हैं।

संभल के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि उनकी रचनाएं मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हैं। श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि उन्होंने जीवन की विषमताओं और सामाजिक विसंगतियों पर अपनी कलम चलाई ।योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि उन्होंने जो जिया वही लिखा। उनकी रचनाओं में जीवन की कड़वी सच्चाइयां मिलती हैं।

डॉ अशोक रस्तोगी (बिजनौर), डॉ अजय अनुपम,शिव कुमार चंदन (रामपुर), मंगलेश लता यादव(अलीगढ़), अनवर कैफी, प्रदीप गुप्ता(मुंबई) नकुल त्यागी, धन सिंह धनेंद्र, विपनेश गुप्ता, डॉ श्वेता पूठिया, गजाला रहमान (मुंबई) आदि ने भी विचार व्यक्त किए।

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