कायस्थ 24 घंटे के लिए नहीं करते कलम का उपयोग…?

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ब्राह्मण समाज के लिए कायस्थ ही पूज्यकार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान राम के राजतिलक समारोह में गुरु वशिष्ठ की भूल से निमंत्रण पत्र नही भेजने से नाराज होकर भगवान् चित्रगुप्त ने अपनी कलम रख दी थी । उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था। परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं। यानी किसी भी तरह का का हिसाब – किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यों है ? इसलिए ही दान लेने वाले ब्राह्मणों के लिए केवल कायस्थ ही उनके लिए पूज्य है और अपने पूज्य कायस्थ को ब्राह्मण समाज सिर्फ कायस्थों को ही दक्षिणा देता है I

दुनियाभर में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद अपनी कलम रख देते है और फिर यम द्वितीय के दिन कलम- दवात को पूजन के बाद ही उसे उठाते है I इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है।ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला ।कहते है जब भगवान राम दशानन रावण का वध कर अयोध्या लौट रहे थे। तब उनके खडाऊं को राज सिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा।

गुरु वशिष्ठ ने यह काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं Iऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी देवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त जी नहीं दिखाई दे रहे हैं। इस पर जब खोजबीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था। इसी के चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I

सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे। प्राणियों का लेखा जोखा नहीं लिखे जाने के चलते यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर ( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है। धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग 4 पहर (24 घंटे बाद ) पुन: कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I

कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और यम द्वितिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है। कहते है तभी से ब्राह्मणों के लिए भी कायस्थ पूजनीय हुए। इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों के लिए केवल कायस्थ ही उनके लिए पूज्य है और अपने पूज्य कायस्थ को ब्राह्मण समाज सिर्फ कायस्थों को ही दक्षिणा देता है I

कलम बरेली की” से साभार… प्रस्तुति। निर्भय सक्सेना

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