शारदीय नवरात्रि: घटस्थापना अभिजित मुहूर्त अभी दोपहर 12:06 बजे से 12:54 बजे तक भी है…

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इस साल शारदीय नवरात्रि का त्योहार आज यानी 26 सितंबर 2022 से शुरू हो रहा है और इसका समापन 5 अक्टूबर 2022 को होगा. साल में कुल चार बार नवरात्रि का त्योहार आता है लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि को काफी खास माना जाता है. नवरात्रि का त्योहार संपूर्ण भारत में काफी धूमधाम से मनाया जाता है. तो आइए जानते हैं इस नवरात्रि के दौरान घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और मां दुर्गा की आरती.
शारदीय नवरात्रि का त्योहार इस साल 26 सिंतबर 2022 यानी आज से शुरू हो रहा है और 5 अक्टूबर को इसका समापन होगा. नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि का त्योहार घटस्थापना से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन किया जाता है. माना जाता है कि नवरात्रि में खास पूजा-अर्चना करने से मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. तो आइए जानते हैं नवरात्रि में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री और विधि के बारे में सभी जरूरी बातें.

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त

आश्विन नवरात्रि सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 01 मिनट तक
अवधि – 01 घण्टा 33 मिनट
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक
अवधि – 00 घण्टे 48 मिनट

शारदीय नवरात्रि घटस्थापना की पूजन सामग्री

एक बड़ा मिट्टी का बर्तन, अनाज बोने के लिए साफ मिट्टी, 7 अलग-अग तरह के अनाज, छोटा मिट्टी या पीतल का घड़ा, कलश को भरने के लिए गंगा जल, कलावा, इत्र, सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्का, आम या अशोक के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए एक ढक्कन, अक्षत, बिना छिला हुआ नारियल, नारियल बांधने के लिए लाल कपड़ा और दूब घास, फूल.

शारदीय नवरात्रि घटस्थापना पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है. घटस्थापना के लिए सबसे पहले मिट्टी का एक चौड़ा बर्तन लें. इसमें मिट्टी डालें और इसके बाद इसमें 7 तरह का अनाज डालें. इसके बाद इसके ऊपर फिर से मिट्टी डालें. मिट्टी को बर्तन में अच्छी तरह से फैला दें. इसमें आप थोड़ा सा पानी भी डाल सकते हैं. इसके बाद मिट्टी का या किसी भी धातु का कलश लें और इसमें कलावा बांधें. अब इस कलश के ऊपर तक गंगाजल भरें. इस कलश में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्के डालें. कलश को ढकने से पहले अशोक के 5 पत्तों या आम के पत्तों को कलश में रख दें.
अब एक जटा वाला नारियल लें. इसपर लाल कपड़ा लपेटें और फिर कलावा लपेटें. नारियल को कलश के ऊपर रखें. इसके बाद मां दुर्गा से प्रार्थना करें और इस कलश को नौ दिनों तक मां दुर्गा के आगे रख दें. फिर मंदिर में दीपक जलाएं. माता के आगे फल रखें और उन्हें फूलों की माला चढ़ाएं. फिर अंत में मां दुर्गा की आरती करें. इस दौरान आप चाहे तो अखंड ज्योति भी जला सकते हैं. लेकिन ध्यान रहें कि यह अखंड ज्योति 9 दिनों तक बुझनी नहीं चाहिए.

शारदीय नवरात्रि के मंत्र

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता: ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा आरती

मां दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दो नैना चन्द्रवदन नीको।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,कण्ठन पर साजै।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

केहरि वाहन राजत,खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

शुंभ निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

ब्रम्हाणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शव पटरानी।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
ॐ जय अम्बे गौरी।।

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