पितरों की मुक्ति के साथ ही उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किए जाते हैं श्राद्ध

India International Uttar Pradesh Uttarakhand खाना-खजाना तीज-त्यौहार तेरी-मेरी कहानी लाइफस्टाइल शिक्षा-जॉब

लव इंडिया, मुरादाबाद। पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक यादकर श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है, जिस तिथि को पितर परलोक गए थे। श्राद्ध न केवल पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पितृपक्ष का प्रारंभ शनिवार के दिन पूर्णिमा तिथि 10 सितंबर से होगा और अमावस्या तिथि पर 25 सितंबर को समापन होगा।

ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार पितृपक्ष 15 दिनों के बजाय इस बार 16 दिन का रहेगा। अष्टमी तिथि 17 सितंबर की बजाय 18 सितंबर को मनाई जाएगी। पितृपक्ष में पितरों का पूजन करने से हमें उनकी कृपा प्राप्त होती है एवं हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है। प्रात:काल जल में थोड़ा सा काली तिल, मोटक कुशा के साथ पितृ तीर्थ से जल अर्पित करने का विधान है। साथ ही, श्राद्ध पक्ष में अपनाए जाने वाले इन सभी मुख्य नियमों का पालन करें:-

1) श्राद्ध के दिन भगवद्गीता के सातवें अध्याय का महात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए ।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें । मंत्र ध्यान से पढ़ें :देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ll (समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं । ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं ।)

3) श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल-खानदान को आशीर्वाद देते हैं । मंत्र ध्यान से पढ़ें :ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा ।

4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं । कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है ।

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुँआ भी न करें ।

6) अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :”हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का पुत्र, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें ।

7) श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश अक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” की जप करनी चाहिए और उस जप का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए

8) विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दें । परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए ।

9) भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ‘हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें । श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है । (विष्णु पुराणः 3.16,16)

10) श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण – ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए ।

11) श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिए : शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नहीं करना)।

12) श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है । श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है । मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *