कथा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा आनन्द स्वरूप मिश्रा का
लव इंडिया, मुरादाबाद। साहित्यकार स्मृतिशेष आनन्द स्वरूप मिश्रा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया । साहित्यकारों ने कहा कि मुरादाबाद के कथा साहित्य में आनन्द स्वरूप मिश्रा का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की चौबीसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 14 अगस्त 1943 को मुरादाबाद के लाईनपार क्षेत्र में जन्में आनन्द स्वरूप मिश्रा की शताधिक कहानियां प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। स्वतंत्र रूप से उनके छह उपन्यास अलग अलग राहें (1962) , प्रीत की रीत (1969), अंधेरे उजाले, कर्मयोगिनी (1992), चिरंजीव (1994) रजनी (2002), तीन कहानी संग्रह टूटती कड़ियाँ (1993), झरोखा (1996) इंतजार (2003) तथा एक कविता संग्रह विस्मृतियांं (1997) प्रकाशित हो चुके हैं। आपका निधन तीन अप्रैल 2005 को हुआ ।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा उनकी कहानियां जहां संबंधों की नीरसता को उजागर करती हैं वहीं मन के झंझावातों को चक्रवाती बनती वेदना को भी अभिव्यक्त करती हैं। दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि वर्ष 1955 में उनकी कहानी मुरझाए फूल मेरे पिता दयानंद गुप्ता द्वारा संपादित साप्ताहिक पत्र अभ्युदय में प्रकाशित हुई थी। रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि उनकी कविताएं प्रेम की निराकार आभा से दीप्त और मनोभावों की सुकोमल अभिव्यक्ति हैं।
अशोक विश्नोई ने कहा उनकी कहानियां पाठकों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। राजीव सक्सेना ने कहा उनकी कहानियों में मुंशी प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के भी दर्शन होते हैं । राजीव ढल ने कहा महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज में शिक्षक रहे आनंद स्वरूप मिश्रा का विद्यार्थियों के साथ भी विशेष लगाव था।डॉ अशोक रस्तोगी ने कहा उनकी अनेक कहानियां यथार्थवाद का कठोर धरातल को स्पर्श करती है।
मीनाक्षी ठाकुर का कहना था समाज के यथार्थवादी चित्रण के साथ-साथ प्रेम का विकृत रूप और आत्मा का श्रृंगार करता पवित्र प्रेम भी उनके कथा साहित्य में मिलता है। श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा अधिकांश कहानियों में प्रेम त्रिकोण की परिस्थितियों को मूर्त रूप दिया गया है। डॉ अनिल शर्मा अनिल ने कहा कि मिश्रा जी ने अपने जीवन की विभिन्न घटनाओं और अनुभवों को अपनी कहानियों व उपन्यासों में संजोया है। हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि उनकी कहानी यथार्थ के सूत्र लेकर बुनी गई है तो उनमें कल्पना के कुछ अलग रंग भी देखने को मिलते हैं।
धन सिंह धनेंद्र ने कहा उनकी कहानियों का यदि नाट्य रूपांतरण किया जाए तो वह रंगमंच की दृष्टि से भी बेहद सफल सिद्ध होंगी।
राजीव प्रखर ने कहा कि उनकी कहानियां आम जीवन से जुड़ी हुई है। फरहत अली खान ने कहा कि उनकी कहानियों के किरदार आपसी रिश्तों की डोरियों से बंधे हैं तो कहीं यह उलझते से नजर आते हैं। दुष्यंत बाबा ने कहा कि उनकी कहानियां यथार्थवाद से आदर्शवाद का परिचय कराती हैं। राशिद हुसैन ने कहा मिश्रा ने अपनी कहानियों में सभी पात्रों का बखूबी मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
परिचर्चा में प्रदीप गुप्ता, अतुल कुमार शर्मा, मनोरमा शर्मा, नकुल त्यागी, शिव कुमार चंदन,सरोज मिश्रा, पल्लवी मिश्रा, प्रयास मिश्रा ने भी विचार व्यक्त किए। आभार उनके सुपुत्रों बिपिन मिश्रा और डॉ अजय मिश्रा ने व्यक्त किया।