भानुप्रताप शुक्ल ने अंतिम सांस तक राष्ट्र-धर्म निभाया

India Uttar Pradesh Uttarakhand तेरी-मेरी कहानी शिक्षा-जॉब

महावीर सिघंल, लव इंडिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और वरिष्ठ पत्रकार श्री भानुप्रताप शुक्ल का जन्म सात अगस्त, 1935 को ग्राम राजपुर बैरिहवाँ, जिला बस्ती( उ.प्र.) में हुआ था। वे अपने पिता पण्डित अभयनारायण शुक्ल की एकमात्र सन्तान थे। उनके जन्म के 12 दिन बाद ही उनकी जन्मदात्री माँ का देहान्त हो गया। इस कारण उनका लालन-पालन अपने नाना पण्डित जगदम्बा प्रसाद तिवारी के घर सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ।भानु जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में पण्डित राम अभिलाष मिश्र के कठोर अनुशासन में पूरी हुई।

1951 में वे संघ के सम्पर्क में आये और 1955 में वे प्रचारक बन गये। भानु जी मेधावी छात्र थे। साहित्य के बीज उनके मन में सुप्तावस्था में पड़े थे। अतः उन्होंने छुटपुट कहानियाँ, लेख आदि लिखने प्रारम्भ कर दिये। यत्र-तत्र उनके प्रकाशन से उनका उत्साह बढ़ने लगा।प्रचारक जीवन में वे कम ही स्थानों पर रहे। उन दिनों संघ की ओर से अनेक हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा था। इनका केन्द्र लखनऊ था।

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रान्त प्रचारक भाऊराव देवरस और सहप्रान्त प्रचारक दीनदयाल उपाध्याय इनकी देखरेख करते थे। इन दोनों ने भानु जी की लेखन प्रतिभा को पहचाना और उन्हें लखनऊ बुला लिया। यहाँ उनका सम्पर्क सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, अमृतलाल नागर एवं श्रीनारायण चतुर्वेदी जैसे साहित्यकारों से हुआ।

लखनऊ आकर भानु जी ने पण्डित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी के सान्निध्य में पत्रकारिता के सूत्र सीखे। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और वे राष्ट्रधर्म (मासिक) और फिर तरुण भारत (दैनिक) के सम्पादक बनाये गये। 1975 में आपातकाल लगने पर पांचजन्य (साप्ताहिक) को लखनऊ से दिल्ली ले जाया गया। इसके साथ भानु जी भी दिल्ली आ गये और फिर अन्त तक दिल्ली ही उनकी गतिविधियों का केन्द्र रहा।

आपातकाल में भूमिगत रहकर उन्होंने इन्दिरा गान्धी की तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष किया। आगे चलकर वे पांचजन्य के सम्पादक बने। इस नाते उनका परिचय देश-विदेश के पत्रकारों से हुआ। उन्होंने भारत से बाहर अनेक देशों की यात्राएँ भी कीं। 1990 के श्रीराम मन्दिर आन्दोलन में वे पूरी तरह सक्रिय रहे। 31 अक्तूबर और दो नवम्बर, 1990 को हुए हत्याकाण्ड के वे प्रत्यक्षदर्शी थे और इसकी जानकारी पांचजन्य के माध्यम से उन्होंने पूरे देश को दी।

1994 में पांचजन्य से अलग होकर वे स्वतन्त्र रूप से देश के अनेक पत्रों में लिखने लगे। ‘राष्ट्रचिन्तन’ नामक उनका साप्ताहिक स्तम्भ बहुत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं तथा अनेकों का सम्पादन किया। इनमें राष्ट्र जीवन की दिशा, सावरकर विचार दर्शन, अड़तीस कहानियाँ, आँखिन देखी कानन सुनी..आदि प्रमुख हैं।

उन्होंने राष्ट्र, ईमानवाले जैसी अनेक वैचारिक पुस्तकों की लम्बी भूमिकाएँ भी लिखीं।कलम के सिपाही भानु जी ने अपने शरीर की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। कैंसर जैसे गम्भीर रोग से पीड़ित होने पर भी उन्होंने लेखन का क्रम नहीं तोड़ा। 17 अगस्त, 2006 को दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अन्तिम साँस ली। उनके देहान्त से तीन दिन पहले तक उनका साप्ताहिक स्तम्भ ‘राष्ट्रचिन्तन’ देश के अनेक पत्रों में विधिवत प्रकाशित हुआ था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *