अयोध्या में जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी तो रावण के गांव का बच्चा-बच्चा बोलेगा जय श्रीराम

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नोएडा : अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। आने वाली 22 जनवरी की तारीख इतिहास में दर्ज हो जाएगी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में भव्य कार्यक्रम होगा। इस अवसर पर देशभर से लाखों की संख्या में रामभक्त अयोध्या पहुंचना शुरू हो गए हैं। इसको भव्य बनाने के लिए देश के तमाम मंदिरों में खास पूजा पाठ के इंतजाम होंगे।

ऐसे ही गौतमबुद्ध नगर में स्थित रावण के गांव बिसरख में भी बड़ी घटना देखने को मिलेगी। लंकापति रावण बिसरख गांव में शिव की पूजा किया करते थे। वहीं, गांव के निवासी अयोध्या में राम मंदिर बनने की खुशी में 15 जनवरी से धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू करेंगे। लंकापति रावण के मंदिर में अखंड रामायण से लेकर सुंदरकांड और अन्य अनुष्ठान किए जाएंगे। इसके बाद भंडारे का आयोजन किया जाएगा।

अखंड रामायण का पाठ कराया जाएगा

रावण मंदिर के महंत रामदास ने बताया कि गौतमबुद्ध नगर में स्थित बिसरख गांव में हजारों सालों से रावण की पूजा की जाती है। यह देश का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा की जाती है। गांव में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग है। जिसकी स्थापना रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य मुनि ने की थी। पुलस्त मुनि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन बिसरख मंदिर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसके लिए तैयारी जोरों पर हैं। ग्राम वासियों के सहयोग से रावण के मंदिर में अखंड रामायण का पाठ कराया जाएगा। 22 जनवरी को मंदिर में राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर पूजा की जाएगी। इसके बाद रावण के मंदिर में लंकापति और भगवान राम की पूजा एक साथ की जाएगी।

अपनी मां कैकसी के साथ की थी पूजा

महंत रामदास ने आगे बताया कि रावण के अलावा विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण, खर, सूर्पनखा और कुम्भिनी के अलावा लंका से आए रावण के सौतेले भाई कुबेर ने भी इस मंदिर में पूजा की थी। रावण के पिता विश्रवा थे। वह उच्चकोटि के ऋषि थे। रावण की माता कैकसी थी, जो राक्षस कुल की थीं। रावण ने अपनी माता कैकसी के साथ बिसरख के इस मंदिर में पूजा की थी।

नहीं होता रामलीला का मंचन

बिसरख गांव के ग्रामीणों ने बताया कि गांव में कई दशक पहले जब लोगों ने रावण के पुतले को जलाया था तो यहां कई लोगों की मौत हो गई थी। जिसके बाद गांव के लोगों ने मंत्रोच्चारण के साथ रावण की पूजा की। तब जाकर यहां शांति हुई थी। गांव में दशहरे के दिन हर घर में सुबह-शाम पकवान बनता है, लेकिन ना तो गांव में रामलीला होती है और ना ही रावण का पुतला फूंका जाता है।इस गांव का प्रत्येक निवासी रावण का संबोधन बाबा के रूप में करता है।

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