दिल जब कही न लगे तो टीएमयू आना शांति प्रभु के चरणों में रम जाना…से भक्ति में सरोबार हुए श्रद्धालु
लव इंडिया, मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान में श्रद्धालुओं ने विधि-विधान से 32 अर्घ्य समर्पित किए। सम्मेद शिखर से आए विधानाचर्य ऋषभ शास्त्री के सानिध्य में विभिन्न सूबों-यूपी के अलावा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम आदि से आए श्रावक-श्राविकाएं, छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने भगवान के अभिषेक प्रक्षालन उपरांत सौधर्म इंद्र और यज्ञनायक के साथ मिलकर नियमबद्ध तरीके से 32 अर्घ्यों सिद्धचक्र महामंडल विधान की पूजा में अर्पित किए। इसी दौरान विधानाचर्य ने कायोत्सर्ग की उचित विधि और पूजा का महात्म्य पर प्रकाश डाला।
विधान के पश्चात तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति सुरेश जैन और उनके परिजनों ने गणिनीप्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी के मुरादाबाद आगमन हेतु श्रावक-श्राविकाओं के साथ मिलकर उनके चरणों में श्रीफल अर्पित करने के लिए प्रस्थान किया। उल्लेखनीय है कि गणिनीप्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी आजकल विहार पर हैं। श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान में कुलाधिपति सुरेश जैन के संग-संग फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, ग्रुप वाइस चेयरमैन मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
भोपाल से आई संजय एंड पार्टी ने उत्कृष्ट संगीत और भक्ति गीतों के रस में डुबोकर श्रद्धालुओं को पूजा के पद्यों से आध्यात्मिक उन्नयन कराया। विभिन्न सुमधुर और कर्ण प्रिय भजनों – शरण जो आते हैं, वो भव तर जाते हंै, जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाएगी, बाबा के चरणों में भक्तों के फेरे, तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा, वीर महावीर बोलो, जिनके प्रभु की गाथा गाए चाँद तारे, दिल जब कही न लगे तो टीएमयू आना शांति प्रभु के चरणों में रम जाना… ने श्रद्धालुओं को भक्ति में सरोबार कर दिया।
मुरादाबाद जैन समाज के गणमान्य नागरिकों ने भी रिद्धि- सिद्धि भवन पहुंचकर धर्म लाभ लिया। विधान में शामिल श्रावक-श्राविकाओं ने नियमबद्ध होकर जाप पूर्ण किए और पुण्य लाभ प्राप्त किया। सांध्यकालीन प्रवचन में प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री ने अष्टद्रव्यों की पूजा में भूमिका और सिद्धचक्र महामंडल विधान के 32 अर्घ्यों की महत्ता को समझाया। इसके बाद पंच परमेष्ठी, मूल नायक, भगवान महावीर और भगवान शांतिनाथ की आरती हुई।
शिखरजी से आए पंडित श्री ऋषभ शास्त्री ने कहा कि यदि आप मंत्र और तंत्र को समझ गए तो संसार की कोई समस्या, समस्या जैसी नहीं लगेगी। जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। सब कुछ पाने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ता है। उन्होंने इस संदर्भ में एक वाक्या भी सा़झा किया। इस किस्से के जरिए प्रतिष्ठाचार्य का अभिप्रायः यह था, नाथ के आगे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होती है। सच यह है, हमें जितना चाहिए, नाथ से उससे भी बहुत अधिक की प्राप्ति होती है।