अहोई अष्टमी व्रत कथा से संतान सुख के साथ ही मिलता है अहिंसा और पर्यावरण का संदेश
लव इंडिया, मुरादाबाद। धर्म ग्रंथों के अनुसार सभी मासों में श्रेष्ठ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी कहा जाता है. जो इस बार 17 अक्टूबर सोमवार को मनाई जाएगी. मानव कल्याण मिशन के संस्थापक स्वामी अनिल भंवर ने बताया कि अहोई का अर्थ है अनहोनी को होनी में बदलने या दुर्भाग्य को टालने वाली माता. संपूर्ण सृष्टि में अनहोनी या दुर्भाग्य को टालने वाली आदिशक्ति देवी पार्वती हैं. इसलिए इसदिन माता पार्वती की पूजा अहोई माता के रूप में की जाती है.
“अहोई व्रत का महत्व “
यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु, प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए रखती हैं और अहोई माता से उनके खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन विधि-विधान से किये गए व्रत के प्रभाव से माता और संतान दोनों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है एवं उनकी कुंडली में नौ ग्रह भी अनुकूल हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन स्त्रियों की संतान को शारीरिक कष्ट हो,स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार-बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता-पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो,तो माता द्वारा कल्याणकारी अहोई की पूजा-अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ मिलता है,बच्चे कभी कष्ट में नहीं पड़ते।
प्रदोष बेला में करें पूजा
अहोई अष्टमी की पूजा का विधान सांयकाल प्रदोष वेला में करना श्रेष्ठ रहता है। दिनभर उपवास रखने के बाद संध्याकाल में सूर्यास्त होने के उपरांत जब आसमान में तारों का उदय हो जाए तभी पूजा करें.
अहोई अष्टमी तिथि कब से कब तक
हिंदू पंचांग के अनुसार, 17 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 29 मिनट से कार्तिक कृष्ण अष्टमी का आरंभ हो रहा है। अष्टमी तिथि का समापन 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर होगा।
अहोई व्रत कथा से मिलता है अहिंसा का संदेश
कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे थे। दीपावली से पूर्व साहूकार की पत्नी घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लेने खेत में गई ओर कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। मिट्टी खोदते समय उसकी कुदाल से अनजाने में एक पशु शावक (स्याहू के बच्चे) की मौत हो गई। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की माता ने उस स्त्री को श्राप दे दिया। कुछ ही दिनों के पश्चात वर्ष भर में उसके सातों बेटे एक के बाद एक करके मर गए।महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने गांव में आए सिद्ध महात्मा को विलाप करते हुए पूरी घटना बताई। महात्मा ने कहा कि तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर स्याहू ओर उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो।देवी माँ की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने साधु की बात मानकर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी दिन व्रत और पूजा की। व्रत के प्रभाव से उसके सातों पुत्र जीवित हो गए। तभी से महिलाएं संतान के सुख की कामना के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं। इस कथा के माध्यम से अहिंसा और पर्यावरण की रक्षा का संदेश भी मिलता है।