National Bamboo Mission Scheme से करें उत्पादन कृषक 



लव इंडिया, बरेली । जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार के मुख्य आतिथ्य व प्रभागीय वनाधिकारी दीक्षा भण्डारी की उपस्थिति में राष्ट्रीय बॉंस मिशन योजना के अंतर्गत जिला स्तरीय कार्यशाला में बताया गया कि भारत बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। साथ ही बांस को अधिक से अधिक प्रमोट करने पर जोर दिया गया। जनपद में संचालित विभिन्न योजनाओं जैसे ओ. डी. ओ. पी. मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना, पी.एम. विश्वकर्मा योजना तथा नेशनल बैम्बू मिशन आदि योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। विकास भवन सभागार में हुए कार्यक्रम में स्वागत उद्बबोधन प्रभागीय वनाधिकारी बरेली दीक्षा भण्डारी द्वारा दिया गया। कार्यशाला का प्रारम्भ करते हुये प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा बांस की उपयोगिता के विषय में विस्तृत रूप अवगत कराया तथा बताया कि बांस का उत्पादन कर हम किस प्रकार से अन्य वृक्षों की लकड़ियों से भार को कम कर सकते हैं। बताया गया कि उक्त योजनाओं का लाभ लेते हुये स्वयं सहायता समूहों एवं एफपीओ के माध्यम से कृषक अपनी अजीविका उपार्जन में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं।


जिला उद्यान अधिकारी बरेली को बांस की पौध की उपलब्ध की जानकारी उपायुक्त एन आर एल एम एवं उप कृषि निदेशक बरेली को उपलब्ध कराने के निर्देश दिये गये। साथ ही उपायुक्त उद्योग को निर्देश दिये गये कि वे उक्त योजनाओं के बारे में एक समाचार बनाकर प्रेस में देगें तथा उप कृषि निदेशक एफपीओ ग्रुप में प्रेषित करेगें।
मंच का संचालन उप प्रभागीय वनाधिकारी डा अपूर्वा पाण्डेय ने किया। स्वागत उद्बबोधन प्रभागीय वनाधिकारी बरेली दीक्षा भण्डारी द्वारा दिया गया। प्रभागीय वनाधिकारी पीलीभीत सामाजिक वानिकी भारत कुमार डी. के. द्वारा बताया कि भारत बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है किन्तु यह अपना ज्यादातर बांस दूसरे देशों को निर्यात कर देता है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में बांस का रकबा काफी कम है जो कि लगभग 1832 वर्ग किमी है। यह एक पर्यावरणीय पौधा है और इसमें गर्मी को अधिक अवशोषण की क्षमता होती है। बांस से कई प्रकार की उत्पाद और दवाईयां भी बनती है। यदि भारत में टैक्टाइल, फर्नीचर, मेडिसिन आदि उद्योगों में बांस को बढ़ावा दिया जाये तो इससे बहुत अधिक संख्या में रोजगार लोगों को दिया सकता है। उद्बोधन के अंत में बांस से बनी हुयी साड़ी, तौलिया, नेपकिन आदि को भी दिखाया गया। फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर फॉर रिहैबिलिटेशन प्रयागराज दर्षिता रावत द्वारा बांस को एक ‘‘हरा सोना‘‘ बताया गया।

उन्होंने बताया कि बांस की लगभग 136 प्रजातियां है। भारत में पायी जाने वाली विभिन्न प्रजातियों के बांस को दूसरे देशों को निर्यात कर दिया जाता है। यह अन्य वृक्षों की तुलना में 35 प्रतिशत ऑक्सीजन पर्यावरण में देता है तथा बांस के उत्पादक देशों के बारे में बताया गया। 18 सितम्बर को विश्व बैम्बू दिवस मनाया जाता है। रावत द्वारा बांस की विभिन्न प्रजातियों को तैयार करने एवं उनके उत्पादन के विषय में तकनीकी जानकारी उपलब्ध करायी गयी।
प्रोफेसर रुहेलखंड यूनिवर्सिटी बरेली डॉ ललित कुमार पाण्डेय द्वारा बताया गया कि बांस एक सबसे अधिक तेजी से वृद्धि करने वाली प्रजाति है। यह एक दिन में 89 सेमी0 से 100 सेमी तक बढ़ जाता है। उनके द्वारा बताया गया कि विश्व में अधिकांश देशों द्वारा बांस के उत्पादन पर पॉलिसी तैयार कर ली गयी है किन्तु भारत में इस प्रकार की कोई पॉलिसी नहीं है, जिस कारण भारत का अधिकांश बांस दूसरे देशों को बांस निर्यात कर दिया जाता है। उनके द्वारा बताया गया कि रूहेलखण्ड यूनिवर्सिटी में बांस के पौधों को लगाया गया है, जिससे वहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स अन्य स्थानों से काफी अच्छा है। अंत में उनके द्वारा बांस के उत्पादन विषयक में विस्तृत रूप से तकनीकी जानकारी दी गयी।


उन्नतशील कृषक डा अनिल कुमार साहनी द्वारा अपने उद्बबोधन के माध्यम से बताया कि बांस को जैविक खेती के माध्यम से तैयार किया जाये तो यह बहुत उपयोगी है। किसान भाई अपने खेतो के किनारे-किनारे बाढ़ के रूप में लगा सकता है, जिससे कि आंधी व तेज हवा के दबाव को कम करेंगा। इसकी खेती से आस-पास के क्षेत्र का वॉटर लेवल बहुत तेजी से बढता है। बांस से कॉर्बन क्रेडिट के माध्यम से भी लाभ लिया जा सकता है। काले बांस का उपयोग फर्नीचर, अगरबत्ती आदि में विशेष रूप से किया जाता है। जनपद में प्रस्तावित टेक्सटाइल पार्क में बांस के उत्पादन को बढ़ावा दिया सकता है। कार्यक्रम में प्रभागीय वनाधिकारी दीक्षा भण्डारी द्वारा मुख्य आतिथ्य एवं वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट किये गए ।

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