चरणसिंह की पुण्यतिथि पर सामाजिक न्याय सम्मेलन में जमकर गरजे दिग्गज नेता
दिल्ली के विज्ञान भवन में 29 मई, रविवार को श्रद्धेय चौधरी चरण सिंह जी की 35वीं पुण्यतिथि पर सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में दो बिंदुओं पर चर्चा हुई, जिसमें जातिगत जनगणना की मांग तथा देश में संवैधानिक सामाजिक न्याय आयोग का गठन कर आर्थिक सामाजिक गैरबराबरी को दूर किया जाए। सभी नेताओं ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के योगदान तथा सामाजिक-आर्थिक गैरबराबरी के ख़िलाफ़ उनके प्रयास लोगों के बीच रखें।
राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयन्त सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जातिगत जनगणना जब तक नहीं होगी तब तक देश में बराबरी नहीं आएगी। उन्होंने आगे कहा, “2019 तक 3 सबसे बड़े चेंबर में 17 हजार 788 कंपनियों में सिर्फ 19 प्रतिशत कारोबारी ऐसे थे। जो कहते थे कि हाँ, हम चाहते हैं कि एससी/एसटी को हमारी कंपनियों में ज्यादा नौकरियां मिलनी चाहिए। कई अध्ययन हैं, जो बता रहे हैं कि गांव- देहात के और पिछड़े वर्ग के, वंचित समाज के लोग, प्राइवेट सेक्टर में उनकी गिनती नहीं है।
“सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार ऑंखड़ों के अभाव में पिछड़ों के आरक्षण को 50% पर रोक देने वाले विषय पर जयंत ने कहा कि अगर आंकड़ों की समस्या है तो सरकार क्यों नहीं गिनती करवा लेती और बता दे कि कौन कितना है और किसके पास क्या है? विपक्षी एकजुटता के बीच उन्होंने स्पष्ट कहा कि, “सामाजिक न्याय मेरी विरासत है और आज जातिगत जनगणना कर आर्थिक सामाजिक विषमता को खत्म करना यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है और मैं पीछे नहीं हटूंगा।ऐसे दौर में जब यूक्रेन संकट के चलते दुनिया खाद्यान्न की कमी के संकट से जूझ रही है, आज चौधरी चरण सिंह जी के भूमि-सुधार कार्यक्रम एवं हरित क्रांति – जिससे खाद्यान्न के मामले में हमारा देश आत्मनिर्भर हुआ और हमारे किसानों तथा आजादी के बाद समूची ग्रामीण अर्थव्यवस्था का उत्थान हुआ – की दिशा में ली गई पहलकदमी की सराहना करने का इससे बेहतर अवसर नहीं हो सकता।
पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना द्वारा पेश हुए प्रस्ताव को सभी दलों से मौजूद लोगों ने समर्थन दिया है और इसको लेकर सड़क से संसद तक लड़ने को तैयार हैं।
एक नई आर्थिक नीति लागू करना, जो पूँजी-निर्माण की जगह रोजगार-सृजन केन्द्रित हो और जो हमारे कृषि क्षेत्र तथा लघु एवं मध्यम व्यवसायों (उद्योगों) को प्रोत्साहित करे, जिनकी नोटबंदी और कोविड-19 की महामारी के बाद बहुत क्षति हुई है। इसमें एम0एस0पी0 पर स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के साथ ही सरकारी निविदाओं, नीलामियों और ठेकों में लघु एवं मध्यम व्यवसायियों – जिन्हें आज मुट्ठीभर मित्रवत कारपेरेट्स (बड़े घरानों) के चलते बाहर कर दिया गया है – की भागीदारी सुनिश्चित करना भी शामिल है।
उन समुदायों के लिए लक्षित सकारात्मक कार्यवाही को सक्षम बनाने हेतु जाति-आधारित जनगणना का तत्काल कार्यान्वयन, जो विकास की दौड़ में पीछे छूट गये हैं। भारत में पिछली जाति-आधारित जनगणना 1931 में की गई थी और सभी सरकारी नीतियां उस समय गणना की गई संख्याओं के अनुसार बनाई गयीं। अतः हमारे लिए आज यह अत्यावश्यक है कि हम डाटा-आधारित निर्णय लेने की सूचना देने के लिए तुरन्त जाति-आधारित जनगणना शुरू करें, जैसा कि हमारे जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में है- चाहे वह औषधि हो, विज्ञान हो या व्यवसाय; यह सार्वजनिक नीति क्यों न हो।
भारत का निर्माण सम्यक विकास मॉडल सुनिश्चित करने की दृष्टि से संस्थागत क्षमता के आधार पर होना चाहिए। हम जाति-आधारित जनगणना तथा दूसरे सार्वजनिक एवं निजी स्त्रोतों के विश्लेषण हेतु सामाजिक न्याय आयोग अथवा समान अवसर आयोग की स्थापना और सक्षम कार्यवाही तथा नीतियों की मांग करते हैं, ताकि महिलाओं, एस.सी., एस.टी., पिछड़े, अल्पसंख्यक या ग्राम-आधारित कमजोर वर्गों के लिए निजी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व अपवाद नहीं अपितु नियम होना चाहिए।
जाति-आधारित जनगणना के निष्कर्षों का हमें नई रोजगार नीति के निर्माण में उपयोग करना चाहिए, जो सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में अवसरों का समान रूप से वितरण सुनिश्चित करे। इसका मतलब नौकरियों की आनुपातिक संख्या का प्रावधान मात्र नहीं है, बल्कि जाति-आधारित जनगणना के अन्तर्गत उन समुदायों के उद्यमियों को वित्त उपलब्ध कराना है, जो व्यापार शुरू करना या बढ़ाना चाहते हैं। आधुनिक भारतीय समाज लैंगिक असंतुलन या जातिगत भेदभाव का बोझ अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकता।अन्ततः एक क्षेत्रीय संतुलन आयोग यह सुनिश्चित किये जाने हेतु स्थापित किया जाना चाहिए कि हमारे आर्थिक विकास के फल भारत के सभी क्षेत्रों में न्यायसंगत रूप से पुष्पित-पल्लवित हों।
यह आयोग विभिन्न राज्यों की विशेष श्रेणी की स्थिति की मांगों को पूरा करेगा, जो ऐतिहासिक रूप से अनदेखे कर दिये गये हैं अथवा पीछे छूट गये हैं तथा संसाधनों एवं वित्तीय आवंटन के द्वारा उन क्षेत्रों के समकक्ष लाने में सहायक होगा, जो अधिक प्रगति कर गये हैं।
सम्मेलन में विषय के विभिन्न पक्षों पर श्री शरद यादव – पूर्व केन्द्रीय मंत्री, चौधरी जयन्त सिंह – अध्यक्ष राष्ट्रीय लोकदल, श्री के सी त्यागी- पूर्व सांसद एवं महासचिव जनता दल (यू), श्री श्रीकांत जेना- पूर्व केन्द्रीय मंत्री, श्री सोमपाल शास्त्री -पूर्व केंद्रीय मंत्री,श्री संजय सिंह – सांसद एवं महासचिव, आम आदमी पार्टी, श्रीमती सुभाषिनी अली – पूर्व सांसद एवं सीपीआई(एम) की पोलित ब्यूरो की सदस्य, डा योगानन्द शास्त्री – पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिल्ली सरकार, श्री मुखेन्दु शेखर रॉय- सांसद टी.एम.सी., श्री मनोज झा- सांसद आरजेडी, श्री प्रद्योत विक्रम माणिक्य देवब्रमा – अध्यक्ष टआईपी आर, त्रिपुरा, श्रीमती कृष्ण पटेल – अध्यक्ष अपना दल (के), श्री त्रिलोक त्यागी – महासचिव राष्ट्रीय लोकदल एवं डा यशवीर सिंह – महासचिव राष्ट्रीय लोकदल और श्री प्रशांत कनौजिया -राष्ट्रीय अध्यक्ष एससीएसटी सेल राष्ट्रीय लोकदल नेे अपने विचार व्यक्त किये।