पुरुषार्थ ही होता है मनुष्य का भाग्यविधाता : अर्द्धमौनी

Uttar Pradesh तीज-त्यौहार

लव इंडिया, मुरादाबाद। रामगंगा विहार में आयोजित श्रीगीता भागवत सत्संग में कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि कोई भी मनुष्य अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वह भाग्यवान होता है। अतः सौभाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म करते रहना आवश्यक है। निषिद्ध भोग की आसक्ति खराब स्वभाव के कारण होती है। स्वभाव सुधरता है-सत्संग, सद्विचार, सच्छास्त्र के द्वारा विवेक जाग्रत होने पर अथवा भगवान् के शरणागत होने पर।

याद करने से पुराना भोग नया होता रहता है। याद करने से नया भोग भोगने की तरह ही अनर्थ होता है। कोई भोग भोगे साठ वर्ष हो गये, पर आज उसको याद किया तो आज नया भोग हो गया। इसीलिये उसकी आसक्ति मिटती नहीं। इसलिये अगर पुराना भोग याद आ जाय तो उसमें सुख न ले। रस लेने से वह नया हो जाता है, उसको सत्ता मिल जाती है।

जिसके राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था, उस इंग्लैंड के राजा एडवर्ड अष्टम ने एक तलाकशुदा स्त्री को पाने के लिए राज्य का त्याग कर दिया, तो क्या आप भगवान के लिए त्याग नहीं कर सकते? क्या भगवान की एक स्त्री जितनी भी इज्जत नहीं है? परंतु संसार बातों से नहीं छूटता। अगर लगन लग जाए तो छूट जाएगा। खुद की लगन लग जाए तो सब काम ठीक हो जाता है। इसलिए आप भीतर की लगन बढ़ाओ। इसके लिए हरि भजन करना अच्छा है। निष्काम प्रार्थना करो तो बहुत बढ़िया है, नहीं तो सकाम प्रार्थना भी करते-करते निष्काम हो जाएगी, भगवान की कृपा से अपने मन में जैसा भाव हो, वैसे पुकारो। पुकारते-पुकारते भगवत्कृपा से भाव बदल जाएगा। इसके सिवाय दूसरा उपाय नहीं है।

सत्संग में निरंजन प्रकाश भटनागर, प्रदीप भटनागर, साधना भटनागर, श्रीमती पूजा, श्रीमती आरती, अजय गुप्ता, प्रभात गोयल,एडवोकेट, अनुज गुप्ता, एडवोकेट, गोकुल दास, वैष्णव प्रिय दास, सुरेश अग्रवाल, दोषान्त वर्मा, सुभाष गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

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