जोश पर आयी मोहब्बत सर कटाने के लिए…

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बीती शाम नौजवान शायर आदिल राही के दौलतक़दे पर बज़्मे अदब साज़ के ज़ेरे एहतेमाम उर्दू नशिस्त का आयोजन किया गया जिसमे शायरों ने अपने कलाम पेश कर खूब वाह वाही लूटी…..

बज़्मे अदब साज़ मीरा रोड मुंबई के ज़ेरे एहतेमाम एक उर्दू महफ़िल का आयोजन किया गया जिसका आग़ाज़ अली फ़ाज़िल साहब ने क़ुरआन की तिलावत से किया उसके बाद निज़ाम नौशाही साहब ने बारगाहे रसूल अकरम में नज़राना ए नात पेश किया..
महफ़िल में तशरीफ़ लाये शायरों के कुछ पसंदीदा शेर आपकी खिदमत में….
मायूस लौटते हैं मेरे हौसले सभी…
कश्ती को मेरी फिर कोई तूफान चाहिए…
अहफाज़ रावेरी
तू मेरे देखने को नज़र की हवस मत समझ..
ये तेरी सोच ही बरहना है तो मैं क्या करूँ..
अली फ़ाज़िल

तुम मिरा नाम-ओ-नसब पूछ रहे हो सब से..
इश्क़ हो जाए तो शजरा नहीं देखा जाता..
आदिल राही
मैं उस की हर एक बात को सर आंखों पे रखूं
उस शख्स के ना चीज़ पे एहसान बहोत हैं
सिद्दीक़ उमर
कोई मर के भी तुझ को पा न सका
कोई जीते जी तुझ को जा मिला
राजन रामपुरी
जब उठी शमशीरे ज़ालिम ज़ुल्म ढाने के लिए..
जोश पर आई मोहब्बत सर कटाने के लिए..
निज़ाम नौशाही सम्भली
मज़ाहिया शायर महशर फ़ैज़ाबादी ने कहा
मेरे पिट जाने के उस दिन यही इमकान रहते हैं..
तेरे पहरे पे जिस दिन तेरे अब्बा जान रहते हैं..
महशर फ़ैज़ाबादी
महफ़िल की सदारत मोहतरम महशर फैज़ाबादी ने की जबकि निज़ामत को नौजवान शायर निज़ाम नौशाही सम्भली ने अंजाम दिया इस मौके पर एडवोकेट शाह आलम मास्टर मोहम्मद आसिफ मोहम्मद आक़िब वग़ैरा शामिल रहे आखिर में आदिल राही साहब ने सामाईन का शुक्रिया अदा किया

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