राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की तरह शाकाहारी बनें: गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती

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उमेश लव, मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में पुष्प वर्षा के बीच गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का ससंघ भव्य मंगल प्रवेश हुआ। माता जी के आगमन से पूरा परिसर खिल उठा। माता जी के स्वागत में श्रावक-श्राविकाओं ने रंग – बिरंगे परिधान में गाजे बाजे की मधुर धुनों पर भक्ति नृत्य प्रस्तुत किए। माताजी ने ससंघ यूनिवर्सिटी जिनालय में भगवान के दर्शन करने के उपरांत रिद्धि – सिद्धि भवन में चल रहे विधान में विराजमान श्री शांतिनाथ भगवान के दर्शन किए।

मंगल प्रवेश के इस अवसर पर रिद्धि – सिद्धि भवन में भक्ति रस में डूबे कुलाधिपति सुरेश जैन और परिवार के साथ सम्पूर्ण जिनालय परिवार के विधान समापन 9 नवंबर तक रुकने के आग्रह को स्वीकार कर कृतार्थ किया ताकि विधान को उनके अलौकिक सानिध्य में सम्पन्न किया जा सके। माताजी के पादप्रक्षालन कर यूनिवर्सिटी के जीवीसी मनीष जैन और श्रीमती ऋचा जैन ने आशीर्वाद प्राप्त किया। माता जी और उनके संघ के स्वागत को यूनिवर्सिटी परिवार की ओर से रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा, प्रो.एसके जैन, प्रो.एमपी सिंह, प्रो.आरके द्विवेदी, मनोज जैन, विपिन जैन, डॉ. अजय पंत,प्रो.नवनीत कुमार, प्रो.विपिन जैन आदि की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

कुलाधिपति ने 1,100 शिलाएं अयोध्या में तीर्थ निर्माण के लिए की समर्पित

पीठाधीश्वर स्वस्ति श्री रविंद्रकीर्ति जी महाराज ने अपने मुखारविंद और कुशल संचालन में माताजी के प्रति भक्ति भाव प्रस्तुत किए। विधान के महत्वपूर्ण पात्र और माताजी के अनन्य भक्त मनीष जैन और श्रीमती ऋचा जैन ने शास्त्र भेंट कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। विश्वविद्यालय की छात्रा ने मंगलाचरण में मनमोहक भक्ति नृत्य प्रस्तुतकर सबको आंनदित कर दिया। माताजी अयोध्या में तीर्थ निर्माण के महती उद्देश्य से प्रेरित होकर विहार कर रही हैं। उनके इस उद्देश्य में सम्पूर्ण जैन समाज संलग्न है। इस क्रम में 1100 शिलाएं सुरेश जैन, नीलू ने 400 शिलाएं, अनिल जैन, अध्यक्ष जैन समाज ने 500 शिलाएं अयोध्या में तीर्थ निर्माण हेतु समर्पित करने की घोषणा की। संघ की ही आर्यिका चंदनामती माताजी ने “ये सूरज तो हम किरणें हैं, ये चाँद तो हम तारे हैं, ये ज्ञानमती माताजी जी ज्ञान की गंगा लायी है” गीत गाकर अपने भक्ति सुमन गणिनी प्रमुख श्री 105 ज्ञानमती माताजी के चरणों में अर्पित किए। उन्होंने विभिन्न स्थानों से आए श्रावक- श्राविकाओं के श्रद्धा भाव की प्रशंसा की,जो विहार में साथ चल रहे हैं। दिल्ली से आए भक्तों सुभाष जैन लखनऊ, सुगंध जैन श्रेय जैन, श्रीमती कुमुदिनीं जैन, प्राची जैन, विदेश, मोनू जैन टिकैतनगर, आशीष जैन, डॉ स्वाति जैन, दीपचंद जैन वाराणसी, रोशन भाई मुम्बई, जीवन प्रकाश, अतुल, विनोद, साथ ही कल्पना जैन और विश्वविद्यालय की छात्राओं को बहुत – बहुत मंगल आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि 2012 में सर्वप्रथम डी लिट् की उपाधि से माताजी को सम्मानित कर विश्वविद्यालय ने गौरवान्वित महसूस किया। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार बालक समुद्र के नाप को बताने में सक्षम नहीं होता, उसी तरह ज्ञानमती माताजी के गुणों का वर्णन करना जिह्वा की सीमा से ऊपर है।

विश्वास का नाम ही सम्यक दर्शन : गणिनी प्रमुख

गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि 105 पूज्य ज्ञानमती माताजी ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा, विश्वास का नाम ही सम्यक दर्शन है। प्रत्येक आत्मा के तीन भेद होते है। वर्धमान को नमन कर और जिन भगवान ज्ञानवाणी से अपनी बहिरात्मा से सिद्धात्मा की ओर यात्रा करें और सिद्धों की आराधना कर अपने आपको एक दिन सिद्ध बना लेंगे। पूरे विश्व में सिर्फ तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय ऐसा है, जो तीर्थंकर भगवान के नाम पर है। यह बड़े गौरव की बात है। सिद्ध पूजन हेतु इंद्र रात दिन अखंड आराधना करते है। यह विधान और आराधना सफल हो ऐसी मंगलकारी भावना भायी। उद्गार प्रकट करते हुए उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में मंगल प्रवेश के दौरान बालक और बालिकाओं के समूह को परिसर में देखकर मन पुलकित हो जाता है। उन्होंने राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देकर सभी से आह्वान किया कि-पूर्णतः शाकाहारी बनें। अच्छे नागरिक बने और अहिंसा परमोधर्म का पालन करें। विधान के महात्म्य में बताया कि विधान के इस पूजन उन पांच परमेष्ठियों के सौ – सौ गुण लेकर वर्णन किए गए हैं। सिद्ध चक्र महामंडल विधान के सातवें दिन 512 संख्या युक्त नामों का उच्चारण करते हुए पूजन करते हैं। इनमे अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठि की भक्ति की गई है। उनमें से सर्वप्रथम एक से लेकर एक सौ पद्य पर्यन्त;पद्यों द्वारा अरिहंत भगवान का यशोगान किया जा रहा है। सिद्धों के भी प्रकार है,कोई भी स्थान खाली नहीं है।

भक्ति साधनों की मोहताज नहीं होती : प्रतिष्ठाचार्य

विधानाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री ने बताया कि न तो केसर,न तो चंदन चढ़ा कर पर सिद्धत्व पा सकते हैं, सिद्धप्रभु केवल आपकी कृपादृष्टि से ही उसका भव पार हो जाएगा। आपके चरणों की वंदना करने से उसी तरह सारे दुख दूर हो जाते हैं, जैसे मोर को देखकर सर्प अपने बिल में गायब हो जाता है। भक्ति साधनों की मोहताज नहीं होती है। भोपाल से आये संजय एंड पार्टी के भक्ति गीतों- नगरी में बाहर है आज सोमवार है, मंदिर में पूजा होवै, हुआ है संतों का समागम यहाँ, जय जय बाबा बाबा की कहते जाओ,हवा पूर्व से आई सुनो बहनो और भाई, श्री आदिनाथ के चरण पखारे रे, पत्थर की प्रतिमा प्यारी, बेला आयी रे आई रे प्रभु भक्ति की, मेरी रसना पुकारे तेरा नाम रे, घड़ियां सुहानी आये रे, मुझे अपनी शरण में ले लेना, झूम गयी धरती झूम गया आसमान, लाज मेरी तो रखियो संभाल आदिनाथ, जरा पारस बाबा बोलो, पारस पारस पुकारो मधुबन में … ने सभी श्रद्धालुओं को भक्तिसागर में डुबो कर झूमने को मजबूर कर दिया।

सांध्यकालीन प्रवचन में आरती के पश्चात प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ शास्त्री ने सिद्धों के 512 सिद्ध नामों और गुणों की जीवन में भूमिका और सिद्धचक्र महामंडल विधान के इन अर्घो के महात्म्य को समझाया। विधान का सम्पूर्ण संचालन और व्यवस्थापन यूनिवर्सिटी ग्रुप वाइस चेयरमैन की अर्धांगिनी श्रीमती ऋचा जैन और टीम के निर्देशन में हो रहा है। विधान में मोक्ष प्राप्ति की कामना लिए श्रावक-श्राविकाओं के साथ छात्र – छात्राएं और शिक्षक भी उत्साहपूर्वक सहभागिता कर रहे हैं।

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