मानवीय संवेदनाओं और समष्टि की पीड़ा के गीतकार थे शचीन्द्र भटनागर

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लव इंडिया, मुरादाबाद । प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शचींद्र भटनागर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की ओर से तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि शचीन्द्र जी के रचना संसार में समष्टि की पीड़ा, युगबोध का चिंतन , अतीत की स्मृतियाँ, सांस्कृतिकबोध, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्राकृतिक विडम्बनाओं सहित हर्ष-विषाद के अनगिनत कोण उभरकर सामने आते हैं। वे मानवीय संवेदनाओं और विषमताओं को व्यक्त करने वाले कवि थे I
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ  की अठारहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 28 सितम्बर 1935 ई. को जन्में शचींद्र भटनागर का हिन्दी गीतिकाव्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है। उनकी प्रकाशित कृतियों में खंड-खंड चाँदनी, क्रान्ति के स्वर, करिष्ये वचनं तव, हिरना लौट चलें, तिराहे पर, ढाई आखर प्रेम के, अखण्डित अस्मिता, प्रज्ञावतार लीलामृत, कुछ भी सहज नहीं, त्रिवर्णी, युवाओं के गीत, इदं न मम उल्लेखनीय हैं।

उनके अनेकानेक गीतों का तमिल, तेलुगु, मलयालम, बांगला, गुजराती, मराठी, ओडिया, पंजाबी तथा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है। उनके कृतित्व पर शोधपरक ग्रंथ – भक्तिगीत परम्परा और शचीन्द्र भटनागर के भक्ति गीत ( संपादक डॉ. नंदकिशोर राय, लखनऊ), शचीन्द्र भटनागर:व्यक्तित्व एवं कृतित्व(डॉ. कंचनलता, बरेली), शचीन्द्र भटनागर के काव्य की अंतर्यात्रा- (डॉ. सुनीता सक्सेना, एटा) प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त उनके अमृत वर्ष पर प्रकाशित समीक्षात्मक ग्रंथ- उत्तरोत्तर (संपादक डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल, बिजनौर।)भी प्रकाशित हो चुका है। उनका निधन 1 फरवरी 2020 को हुआ।
डॉ अवनीश सिंह चौहान ( वृंदावन) ने कहा शचींद्र जी का गीत संग्रह- ‘ढाई आखर प्रेम के‘ जहाँ प्रेम की अनूठी खुशबू से परिचय कराता है, वहीं जीवन को सुवासित करने हेतु अनुपम संदेश भी देता है। वह अपने गीतों के माध्यम से संपूर्ण विश्‍व के मंगल की कामना भी करते हैं।


डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा – उन्होंने अपने नवगीतों मे देश की झोपड़ी से लेकर महल तक की सम्वेदनाओं को उकेरा है। प्रेम, गरीबी, पश्चिमीकरण ,भूमंडलीकरण के प्रश्नों को उठाया है । समिष्टि से व्यष्टि की चिंतन पर अनेकानेक परिस्थितयो का हर आयाम की पीड़ा पतन का,सँस्कृति की अवधारणा को बिम्बो के माध्यम से दर्शाया है।


डॉ स्वाति रस्तोगी ने कहा कि भारतवर्ष की सांस्कृतिक महानता, धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक औदार्य संत्रा और छटपटाहट, श्रृंगारिक अनुभूतियाँ, प्राकृतिक बिंद, व्यक्ति और समाज की दुर्बलता, व्याकुलता, विकृतियाँ, नारीसंवेदना, धर्म, भक्ति, सदगुरू, पुरुषार्थ, आत्मानुशासन, लोककल्याण, गाँवों-कस्बों, नगर- महानगरों के संस्कारों तथा सभ्यताओं की टकराहट, माटी की सोंधी गंध, प्रेम की बहुआयामी छवियाँ, समसामयिक विरूपता एवं विचलन आदि अनेकानेक भावों की अभिव्यक्तियां भटनागर जी की काव्य कृतियों में मिलती हैं।


डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ ने कहा कि उन्होंने अपने ग़ज़ल-संग्रह ‘तिराहे पर’ में ज़िंदगी को अपने ढंग से परिभाषित किया है। उनकी गजलों में सामाजिक चेतना के स्वरों के साथ साथ जीवन की यथार्थ और वास्तविक स्थिति का चित्रण भी मिलता है।
जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा उनके गीतों में,जीवन दर्शन और अध्यात्म की झलक देखने को मिलती है।


रवि प्रकाश (रामपुर) ने कहा कि शचींद्र भटनागर एक अध्यात्मवादी गीतकार थे।आपकी चेतना उस शाश्वत और सनातन की खोज के लिए प्रयत्नशील रही है, जो मनुष्य जीवन का सच्चा ध्येय है ।


डॉ अनिल शर्मा अनिल(धामपुर), राजीव प्रखर, त्यागी अशोक कृष्णम ( सम्भल), आदर्श भटनागर, डॉ इंदिरा रानी, दीपक गोस्वामी चिराग (बहजोई) और हेमा तिवारी भट्ट ने उनसे सम्बन्धित संस्मरण प्रस्तुत किये ।


श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि शचीन्द्र जी मानवीय संवेदनाओं और विषमताओं को व्यक्त करने वाले कवि थे I सामाजिक आर्थिक असमानता, जीवन की दुरूह और विषम परिस्थितियों, राजनेताओं और संपन्न वर्ग की कुटिल शोषण करने वाली नीयत पर उनकी कलम खूब चली हैI


ओंकार सिंह ओंकार ने कहा वे ईश्वर में दृढ़ आस्था रखने वाले पूरी तरह आध्यात्मिक और समाज के प्रति चिंतनशील कवि थे। उन्होंने विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर और उनके निदान पर शेर कहे हैं। इसके अलावा शृंगाररस में भी उन्होंने बेजोड़ शेर कहे हैं, जिनमें हर पंक्ति से सौंदर्यबोध होता है, जो प्यार की खुशबू भरी मिठास पाठक के तक पहुँचाता है।


अशोक विद्रोही ने कहा उनके नवगीतों में अंतर्मन की जीवन अनुभूतियों का बहुत ही सुंदर चित्रण है रचनाएं छंद वद्ध है काव्य सौंदर्य की अनुभूति प्रत्येक गीत से फूटती प्रतीत होती है कविता में जीवन संघर्ष एवं जिजीविषा के आत्मसात प्रतिबिंब ,मिथक, संकेत स्पष्ट होते हैं ।


कार्यक्रम में सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई), विशाखा तिवारी, अनूप सोनसी, मनोज जैन (भोपाल), नकुल त्यागी, उमाकांत गुप्ता, विवेक आहूजा, मनोरमा शर्मा (अमरोहा), धन सिंह धनेंद्र, प्रदीप गुप्ता, वन्दना श्रीवास्तव (आगरा), मोनिका शर्मा मासूम ने भी विचार व्यक्त किये।

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