होली पर रामलीला कहां होती है… जानिए वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना की इस रिपोर्ट में

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निर्भय सक्सेना, बरेली। लखनऊ दिल्ली के बीचों बीच बसे शहर बरेली को जहां ‘झुमके व नाथ नगरी’ के नाम से जाना जाता है। इसी शहर बरेली में होली के अवसर भी ‘रामलीला’ का मंचन होता है व ऐतिहासिक ‘रंगबारात’ का निकलना भी एक अनूठी मिसाल है जिसमें अब अपने 162 वर्ष भी पूरे कर लिए हैं उत्तर प्रदेश में पुन मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार आने से हुरियारे काफी उत्साहित हैं जिसका इस बार की रंगयात्रा में असर भी दिखा।

कार्यवाहक संचालन किशोर कटरू अध्यक्ष सर्वेश रस्तोगी, महामंत्री अंशु सक्सेना, दिनेश, विशाल मेहरोत्रा ने बताया इस बार भी 12 मार्च 2022 को झंडी यात्रा से राम लीला की शुरुआत हुई। स्मरण रहे चैत्र कृष्ण एकादशी पर रामलीला का एक पखवाड़े का मंचन सिर्फ बरेली उत्तर प्रदेश में ही होता है।

होली की पूर्णिमा को बरेली से निकलने वाली भगवान राम की बारात, जिसे हुरियारों की ‘रंगयात्रा’ भी कहते है, के बारे में बताया जाता है कि यह वर्ष 1861 से निरन्तर श्री रामलीला सभा रजिस्टर्ड बमनपुरी बरेली से निरंतर आज तक निकाली जाती रही है। यह ‘रंगबारात’ बमनपुरी में पूर्णिमा के दिन मध्यांह लगभग 12 बजे प्रारंभ होकर बिहारीपुर ढाल, घंटाघर, अस्पताल रोड, कोतवाली, बरेली कालेज रोड, मठ की चोकी, आलमगिरी गंज, बड़ा बाजार होकर पुनः अपने गंतव्य पर पहुंचकर सायं काल को समाप्त होती है।

इस रंगबारात का जगह जगह सभी धर्मों के लोग स्वागत कर पुष्पवर्षा करते हैं और बारात के आगे चल रहे टैक्ट्रर ट्राली, बड़े ठेले पर होली के हुरियारे जगह-जगह रंग मोर्चा खेलते चलते हैं। इसी रंग बारात में चाहबाई से पंडित स्वर्गीय राम गोपाल शर्मा एवं स्वर्गीय अशोक शर्मा के परिवार द्वारा निकाली जाने वाली ‘रंग बारात’ भी कुतुबखाना पर आकर इसी मुख्य बारात में मिलती है और इसी के साथ पूरे शहर का भ्रमण करती है।

चाहबाई की रंग बारात को पंडित स्वर्गीय रामेश्वर दयाल मिश्रा, अवध मिश्रा, स्वर्गीय शांति महाराज, लल्लू महाराज, स्वर्गीय रामगोपाल शर्मा, निर्भय सक्सेना आदि ने योगदान देकर शुरू कराया था। इसको अब उनके परिवार के लोग निकालते हैं। श्रीराम लीला सभा बमनपुरी में इस बार कार्य वाहक संचालन समिति बनी है। किशोर कटरू ने बताया कि रामलीला का मंचन होते हुए अब 162 वर्ष पूरे हो गये हैं।

मार्च 2022 में 162 वीं रामलीला का मंचन कोविड-19 नियमों का पालन कर 12 को झंडी पूजन के बाद झंडी मार्च शुरू हुआ। किशोर कटरू ने बताया कि राम लीला कमेटी बमन पुरी में दो मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जिसमें लगभग कार्य पूर्ण हो चुका है। इस रामलीला कमेटी को प्रदेश सरकार भी एक लाख रूपये की आर्थिक सहायता देती है जिस धनराशि को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जी से पुनः आग्रह किया जा रहा है। सदस्यता शुल्क एवं भवन किराया बढ़ा कर सभा की आय में वृद्धि की है।

रामलीला सभा में अपने पंजीकरण का नवीनीकरण वर्ष 2023 तक के लिए भी करा लिया है। रामलीला देखने आने वालों के लिए कुर्सी पर बैठने की व्यवस्था सीमित जगह में बनाई गई है। समिति ने पूर्व पदाधिकारियों एवं नगर के गणमान्य लोगों को शाल एवं अंगवस्त्र देकर सम्मान देने का प्रारंभ भी किया जिसमें अब तक 50 लोगों को सम्मानित किया जा चुका है।

इस कार्यक्रम को पूर्व में अध्यक्ष राधा कृष्ण प्रहलाद, मुनीश शर्मा पूर्व सभासद की देखरेख में होता था। महामंत्री जी बताते हैं कि श्री रामलीला मंचन का इतिहास सन् 1861 से देखने को मिलता है बुर्जुगों के कथनानुसार यह रामलीला इससे पूर्व भी खेली जा रही है। इस क्षेत्र में के बच्चे टीन गत्ते आदि के मुकुट एवं बालों की दाढ़ी-मूछ बनाकर पूर्व में रामलीला का मंचन करते थे। पात्रों का श्रृंगार राजश्री शैली में प्राकृतिक रंगों आदि से हुआ करता था।

फाल्गुन माह के शुरू होते ही शहर के बच्चों द्वारा रामलीला मंचन की तैयारी शुरू हो जाती थी। बमनपुरी (ब्रह्मपुरी) की गलियों एवं उसके आस-पास के स्थानों पर विभिन्न लीलायें विभिन्न स्थानों पर खेली जाती थी। उसी परम्परा को आज भी जैसे शवरी लीला चटोरी गली, श्री अगस्त मुनि की गली, अगस्त्य मुनि आश्रम, छोटी बमनपुरी, केवट संवाद, साहकारा, मेघनाथ यज्ञ बमनपुरी चोराहा तथा लंकादहन मलूकपुर चोराहा तथा अंगद रावण संवाद शाहजी की बगिया के सामने लीला का मंचन किया जाता है।

रामलीला का मुख्य श्रेत्र श्री नृसिंह मंदिर बमनपुरी है। सन् 1888 – 1989 में रामलीला सभा में हकीम कन्हैयालाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी पं. जंगबहादुर, बेनी माधव बिहारी लाल पं. राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा आदि गणमान्य लोगों ने इस रामलीला को नई दिशा दी। यह लोग रामलीला में विभिन्न पात्रों का रूप रखकर रामलीला का मंचन करते थे। उस समय रामलीला का मंचन पेटकी रोशनी में रामचरित मानस की चोपाईयों के माध्यम से मंचित किया जाता था।

दुल्हड़ी के दिन भगवान श्री नृसिंह भगवान की शोभायात्रा निकाली जाती थी। बताते है कि एक बार रामलीला बंद होने की स्थिति में आ गयी थी । तब बरेली के धर्म गुरू आला हजरत मुफ्ती-ए-आजम हिन्द ने रामलीला को शुरू कराने की अदालत से स्वीकृति दिलायी थी। होली पर रामलीला की परम्परा को बनाये रखने में क्षेत्र के मुस्लिमों द्वारा पूर्ण सहयोग रहताा है।

यहां तक कि ख्वाजा कुतुब गद्दी के धर्मगुरू बांके मियां व अजीज मियां जैसे लोगों ने इस रामलीला में सहयोग किया था। तत्कालीन नगर पालिकाध्यक्ष शाकिरदाद खां एवं रहीम दाद खां ने शासन एवं अपनी ओर से श्री रामलीला सभा को नगर पालिका की ओर से गैस की रोशनी का प्रबंध, सफाई, जलुसों के मार्गों की सड़कों की मरम्मत फायर ब्रिगेड द्वारा पानी का छिड़काव एवं रामबारात में रंगों के लिए ड्रमों में पानी की व्यवस्था के आदेश जारी किये थे और व्यवस्था कराई थी। तभी से जिलाधिकारी के आदेश पर रावण दहन (दशहरा) वाले दिन स्थानीय अवकाश भी होता रहा था।

सन् 1935-1938 के बीच जनता ने रामलीला के लिए खुले हाथ से दान देना शुरू किया सूर्य प्रकाश एडवोकेट की अध्यक्षता में फकीर चन्द्र रस्तोगी ने अपनी भूमि रामलीला सभा को दान कर दी। श्री अंबिका प्रसाद जी के नेतृत्व में रामलीला भवन का निर्माण हुआ। इसी क्रम में शहर के रामभक्तों ने रामलीला सभा को भगवान राम था रावण का आकर्षक रथ बनवाकर के वर्ष 1949 में साहूकारा के स्वर्गीय शिवचरन लाल ने भगवान राम केवट संवाद को मूल रूप देने के लिए लकड़ी की नाव बनवाकर रामलीला सभा को भेंट की। तब से भगवान राम केवट संवाद साहूकारा स्थित भैरों जी के मंदिर पर मंचित किया जाता है।

रामलीला के पात्र जो अभिनय करते थे वह विद्वानों द्वारा तुलसी रामायण की चैपाई की भावपूर्ण एवं रसमय व्याख्या पं. राधेश्याम कथावाचक किया करते थे। उसके उपरांत अपनी वाणी से पं. रघुवर दयाल, पंडित रज्जन गुरू करते थे। रामलीला सभा के राकेश शंखधार के अनुसार रामलीला चैत्रकृष्ण एकादशी में इसलिये यहां मनाई जाती है उनके अनुसार रामायण और पुराणों में रावणवध की तिथि का वर्णन चैत्रकृष्ण एकादशी दर्शाई गयी है।

इसी आधार पर क्षेत्र के पूर्वजों ने होली पर्व पर जो कि चैत्रकृष्ण एकादशी में पड़ता है पर श्री रामलीला का मंचन करना शुरू किया होगा। इंदर देव त्रिवेदी, पत्रकार जनार्दन आचार्य भी बताते है कि कभी पंडित श्रीराम के अनुसार भारत में रामचरित के मंचन रामलीला का आरंभ गोस्वामी तुलसीदास ने किया था। एक किवदन्ती के अनुसार हनुमान जी बाबा तुलसीदास जी को अलग अलग काल में रामलीला दिखाने की बात कही थी। वास्तव में राम का चरित्र हमारे राष्ट्र की आत्मा है।

ब्रह्मपुरी बरेली में होली के अवसर पर श्रीरामलीला के मेले के आयोजन को सुनकर लोग एकदम आश्चर्य में पड़ जाते हैं क्योंकि देश में रामलीला का मेला दीपावली से पूर्व क्वार के अर्थात अश्विनी मास में ही किये जाते हैं। भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश ही ऐसा है जहां हमारे आराध्यों के प्राकट्य हुये। जिला बरेली के बमनपुरी मौहल्ले की पहचान अब होली की रामलीला के कारण ही बन गई है। जहां से पहले रामलीला का मंचन होता है और बाद में रंगबारात निकाली जाती है। जिसमें भगवान राम की झांकी के अलावा 22 ठेलों पर हुर्रियारे आकर्षण का केन्द्र होते हैं जो लौट कर वापस बमनपुरी पर ही समाप्त होती है। ब्रह्मपुरी अपभ्रंश होकर बमनपुरी कहलाती है।

इंदर देव त्रिवेदी बताते हैं कि बरेली में चारों ओर भगवान शिव के मंदिर हैं। ब्रह्मपुरी में भी भगवान नृसिंह और शिवालय भी है। जहां पुराने लोग बताते हैं कि कभी लोगो को स्वप्न में आकाशवाणी हुई थी कि भगवान शिव की पूजा सभी करते हैं राम की कोई नहीं करता। इनका सभी को राम का गुणगान करना है जिसपर ब्रह्मपुरी (बमनपुरी) के विद्वानों, ब्राह्मण, कर्मकांडी वेदपाठी लोगों ने भगवान शिव की भक्ति में रहने वाले लोगों में कन्हैया टोला में स्थित श्री राममंदिर में भगवान श्रीराम के रूप में टोली बनाकर रामलीला का प्रारंभ करा दिया जो नृसिंह मंदिर तक चलता रहा।

रामलीला सभा के अभिलेखों के अनुसार एवम स्थानीय लोग बताते है कि 1861 में विधिवत् श्रीरामलीला महोत्सव को मोहल्ले के बच्चों को ही पात्र बनाकर प्रारंभ हुआ। जिसमें पूर्व में रामलीला सभा से जुड़े रहे पं. हूलचंद्र, प्यारेलाल, पं. बहादुर लाल, पंडित राधेश्याम भी आने लगे और पंडित राधेश्याम ने पंडित बहादुरलाल के यहां हारमोनियम बजाना भी सीख लिया।

स्मरण हो भगवान श्रीराम का प्राकट्य चैत्र शुदी शुक्ल पक्ष की नवमीं के दिन 12 बजे हुआ था इसी परंपरा पर रामलीला सभा की रामलीला का प्रारंभ होने पर दिन के 12 बजे ही रामलीला का ध्वजारोहण मनाया जाता है और होली पर तो रोचक बनाने हेतु फाल्गुन की नवमी से यह कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया जाता है ताकि होली दहन वाले दिन में भगवान राम की बारात निकाली जा सके। श्रीरामलीला के मंचन में कभी पं. रघुवर दयाल उर्फ रघुवर गुरू रामायण के मर्मज्ञ थे। वह जैसा संवाद होता था वैसे ही अभिनय करते हुए जनता को उसका अर्थ समझाते हुए आंसु भी बहाते थे।

बाद में स्वर्गीय राधेश्याम ने अपनी शैली में रामलीला का मंचन कराकर उसे नवीनता दी थी। रामबारात तथा अन्य जुलूस राजगद्दी जैसे विशेष सिहांसनों पर भगवान के स्वरूपों को बैठाकर लोग अपने कंधों पर शहर में घुमाया करते थे। पहले इसका रास्ता सिटी स्टेशन होकर अलखनाथ, गुलाबनगर, कोहाड़ापीर पर पहुंचता था।

कुछ लोग बताते हैं एक बार वर्ष 1945 में रास्ते कुछ विवाद हो गया जिस पर तत्कालीन जिलाधिकारी मि. वारेन और शहर कोतवाल हांडू ने पहुंचकर स्थिति को संभाला और कमेटी के लोगों से कहा सिंहासन को कोतवाली पर ले जाकर इसको वहीं समाप्त करा दें लेकिन उस समय तत्कालीन रामलीला सभा के ब्रह्मपुरी के पं. मुकुट बिहारी, पं. दीनानाथ मिश्र, पं. हफ्लू महाराज आदि ने कहा था कि हम अपनी हिफाजत स्वयं कर लेंगे क्योंकि भगवान राम हमारे साथ हैं। उसके बाद सिंहासन अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचा था।

बताया गया कि राम बारात में शहर में शहजहात के यहां से हौदा लगकर हाथी आता था। पंडित कन्हैया लाल बैद्य, बेनी माधव हेडमास्टर का घोड़ा सजकर चलता था। जब सिंहासन उठाने में परेशानी आने लगी तब 1950 में रामलीला सभा के तत्कालीन अध्यक्ष रहे सूर्य प्रकाश एडवोकेट ने बग्घी राजगद्दी निकालना प्रारंभ कराया। शिवचरन लाल ने सरयू पार करने के लिए सौदागरान मोहल्ले में लकड़ी की नाव बनबाई थी।

बैलों के सिंहासन पर पंडित लल्लू महाराज, पं. श्रीराम गैस वाले उनके बाद रथ हांकने का काम श्रीराम शंखधार का परिवार करता रहा। इनके बाद पं. राजेन्द्र एवं राकेश शंखधार ने रथ का संचालन किया। पूर्व में सभा मे रहे अंबिकाप्रसाद तिवारी अपने साथी सूर्य प्रकाश एडवोकेट तथा जुलूस इंचार्ज ला. रामलक्ष्मण, पं. कृष्ण मुरारी पाठक तथा पूरी रामलीला में नियंत्रण रखने वाले कृपाशंकर पांडेय का योगदान रहता था। उसी समय श्रीरामलीला कमेटी द्वारा ‘होली मिलन’ कार्यक्रम चोधरी तालाब पर शुरू हुआ। उसके बाद उसे गुलाबराय कालेज में शुरू करा दिया गया था।

अब रामलीला मंचन में अयोध्या की मंडली भी आती है और बमनपुरी में आर्कषक दुकानें भी लगती हैं। रामलीला सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष सर्वेश रस्तोगी गौरव सक्सेना बताते हैं कि बरसाने की होली जैसे मशहूर है वैसे ही बमनपुरी की होली की ‘रंगबारात’ भारत में अपनी पहचान बना चुकी है। श्री इन्द्रदेव त्रिवेदी ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार भी बमनपुरी की रामलीला कमेटी को आर्थिक मदद देती है जिसे बढ़बाने के लिए अब पुनः प्रयास किये जा रहे हैं। पत्रकार निर्भय सक्सेना वर्षों से रामलीला सभा कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं।

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