मीडिया ने अनदेखी की तो आलू से सोना बनाने वाले पार्टी के कर्मठ अध्यक्ष को गुस्सा तो आना लाजमी है
यह एक ऐसे नेता जी की कहानी है जो आलू से सोना बनाने वाले पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता हैं और जहां भी पार्टी की तरफ से या फिर अपने सेवा भाव की तरफ से सेवा में लग जाते हैं तो काम- धाम सब छोड़कर ‘सेवा ही सेवा’ इन नेताजी का मकसद हो जाता है। यह अलग बात है कि अभी इन नेताजी को पार्टी ने कोई ऊंचा औधा (पद) नहीं दिया है। ऐसे में नेताजी को पुलिस प्रशासन के अधिकारी तो तवज्जो देते ही नहीं बल्कि चौकी और थाने के खाकी वर्दीधारी भी अनदेखी कर देते हैं क्योंकि सरकार भी बुलडोजर बाबा की है।
यह ताजा मामला इन्हीं नेताजी का है जो ब्लॉक के मंडल अध्यक्ष हैं और अपने द्वारा खुद कराई गई छीछालेदर के कारण सोशल मीडिया पर इस कदर चर्चाओं में है कि लगातार आलोचनाओं की ऊंचाई छू रहे हैं मगर कहावत है ना बदनाम होंगे तो नाम होगा… को चरितार्थ करते हुए नेताजी अपने ही हाथ से अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।
कहावत है गंजे को नाखून नहीं दिए वरना खुजाते खुजाते मर जाता ऐसे ही बांके इस मेला फेरी में देखने को मिली जब एक मीडिया कर्मी ने मंदिर के महंत प्रिय भागवत से मिलने की इच्छा जाहिर की तो वहां बैठे गले में पंजे की पट्टिका डालें नेताजी पत्रकार का नाम सुनते ही आग बबूला हो गए और कहने लगे मैं ब्लॉक मंडल अध्यक्ष हूं। कोई दलाली नहीं करता हूं। मैं 2 दिन से लगातार मंदिर पर रहकर मेहनत कर रहा हूं। मेरा किसी भी अखबार वाले ने खबर में नाम तक नहीं डाला जो नेता पत्रकारों को दलाली करते हैं, उन्हीं के नाम वह डालते हैं। अगर ज्यादा मीडिया बाजी दिखाएं तो मैं अपनी कार्यकर्ताओं व साथियों की टीम को ले जाऊंगा फिर महंत जी भी देखते रह जाएंगे और मीडिया में ही खबर अपने चाहतों की लगवाते रहेंगे।
फिलहाल नेताजी की छीछालेदर ने ऐसे नेताओं की भी पोल खोल दी जो पत्रकारों की दलाली करते हैं लेकिन यह पत्रकार हैं कौन यह तो पंजे वाली पार्टी के यह नेताजी ही बता पाएंगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि करोड़ों लोगों की आस्था के स्थान पर निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले यह नेताजी नाम को लेकर इतना बवाल क्यों मचा रहे हैं और कलमकारों से भिड़ रहे हैं…?
मालूम हो कि संभल के वंश गोपाल तीर्थ धाम से 24 कोसी परिक्रमा का आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु परिक्रमा में भागीदारी कर रहे थे जिनका रास्ते में जगह-जगह स्वागत किया गया और खाने-पीने तथा सोने की व्यवस्था भी समिति की ओर से की गई। परिक्रमा वंश गोपाल तीर्थ धाम से होती हुई चंदेश्वर मंदिर हयातनगर दतावली होती हुई संभल मुरादाबाद रोड से क्षेमनाथ मंदिर पहुंची और वहां से अपने गंतव्य मंदिर वंश गोपाल तीर्थ मंदिर पर पहुंची जिसकी खबर सभी प्रिंट ब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित की लेकिन रविवार को वंश गोपाल तीर्थ मंदिर पर लगने वाले मेला फेरी पर हजारों की संख्या में लोगों ने कुंड में स्नान कर पूजा अर्चना कर मंदिर की परिक्रमा की और प्रसाद ग्रहण किया और बकौल नेताजी के यहीं पर उन्होंने सेवा की और मीडिया ने अनदेखी कर दी। ऐसे में गुस्सा तो आना लाजमी है।
…और इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि नेताजी को अपने शब्दों पर कोई अफसोस नहीं है बल्कि आस्था की सेवा को भी वोटों में तब्दील कराना चाहते हैं इसीलिए तो उन्होंने महंत जी तक को नहीं छोड़ा। और इस सब के पीछे सियासी गलियारों में चर्चा गया है कि आने वाला वक्त चुनावों का है और नेताजी खुद भी भगवा की तरह भक्त होना चाहते थे मगर मीडिया और मीडिया कर्मियों को नेताजी और उनकी सेवा नहीं दिखी…? इसलिए चाहे पार्टी की छीछालेदर हो या अपनी इन पंजे वाले मंडल अध्यक्ष जी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि बदनाम होंगे तो नाम तो होगा ही…