पहले Dr. Makhan Moradabadi smrti sammaan से संभल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् सम्मानित
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लव इंडिया, मुरादाबाद। प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मक्खन मुरादाबादी की जयंती पर मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद और राष्ट्रीय शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश की ओर से आयोजित समारोह में कुरकावली जनपद संभल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् को डॉ मक्खन मुरादाबादी स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मान पत्र, श्रीफल, अंग वस्त्र और सम्मान राशि प्रदान की गई। सिद्धार्थ त्यागी के संयोजन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता डॉ अजय अनुपम ने की तथा संचालन डॉ मनोज रस्तोगी ने किया।
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पं शंभू नाथ दुबे सरस्वती शिशु मंदिर सिविल लाइंस में वीरेंद्र सिंह बृजवासी द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ समारोह के प्रथम चरण में साहित्यकारों ने स्मृतिशेष डॉ मक्खन मुरादाबादी तथा सम्मानित साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।
साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा सम्भल के ग्राम ततारपुर रोड में 12 फरवरी 1951 को जन्में कारेन्द्र देव त्यागी डॉ मक्खन मुरादाबादी ने जहां देशभर में हास्य व्यंग्य कवि के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की वहीं उन्होंने हिन्दी काव्य साहित्य में एक नवीन विधा अभिनव गीत को भी जन्म दिया। उनकी दो काव्य कृतियां कड़वाहट मीठी सी और गीतों के भी घर होते हैं प्रकाशित हो चुकी हैं।
राजीव प्रखर ने कहा कि संभल के कुरकावली में 1 जनवरी 1962 को जन्में त्यागी अशोका कृष्णम् अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विषमताओं पर प्रहार तो करते ही है। साथ ही, समस्याओं के सकारात्मक हल की ओर बढ़ने को प्रेरित भी करते हैं। उनका दोहा संग्रह ‘चल मनवा उस पार’ प्रकाशित हो चुका है। सम्मान पत्र का वाचन मनोहर लाल शर्मा ने किया। सह संयोजक महेश चंद्र त्यागी ने मक्खन मुरादाबादी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दूसरे चरण में आयोजित काव्य गोष्ठी में अध्यक्ष डॉ अजय अनुपम ने कहा- संबंधों का अर्थ किसी को क्या समझाना। बिखरा-बिखरा है सामाजिक ताना-बाना ।
सम्मानित साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् का कहना था। बोल बड़े अनमोल हैं, सोच-समझ कर बोल। भटके तो कृष्णम् जहर, दें रिश्तों में घोल। हमने रिश्तों में कभी, किया नहीं व्यापार। रहे उसूलों पर अडिग, जीत मिली या हार। वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा …. सबके प्यारे थे मक्खन। राज दुलारे थे मक्खन जी। ओंकार सिंह ओंकार ने कहा अच्छे आचरण से, लोग कतराने लगे।जो भलाई कर रहा है, काँपता थर-थर मिला। अमरोहा की कवयित्री शशि त्यागी ने कहा अब कहीं खेल तमाशे नज़र नहीं आते, अब ज़मीं पर सितारे नज़र नहीं आते।
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा तकते जिसकी राह सब, मनुज-देव-गंधर्व। तन-मन पावन कर रहा, महाकुम्भ का पर्व। डॉ पूनम बंसल का गीत था- मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करें। दुख सुख जो भी मिलें राह में उनसे ही शृंगार करें। राजीव ‘प्रखर’ ने कहा मेरी मीठे बेर से, इतनी ही फरियाद। दे दे मुझको ढूंढ कर, शबरी-युग सा स्वाद। राहुल शर्मा ने कहा मियाँ सादाबयानी झूठ सी है दौरे-हाज़िर में।भले सच बोलिए लेकिन अदाकारी ज़रूरी है।
ज़िया ज़मीर ने कहा ये जो शिद्दत से गले मुझको लगाया हुआ है । उसने माहौल बिछड़ने का बनाया हुआ है। मयंक शर्मा ने कहा ..जन्म सार्थक हो धरा पर स्वप्न हर साकार हो, हम चलें कर्तव्य पथ पर और जय जयकार हो। दुष्यन्त बाबा ने कहा ..जो रटता है राम को, उसको रटते राम। मिलता सुख बैकुंठ का, घर में चारों धाम।। समीर तिवारी ने कहा ….चलते-चलते धूप में जलने लगते पाँव। मिलनी दुर्लभ हो गयी अब बरगद को छाँव ।।
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गोष्ठी में डॉ प्रेमवती उपाध्याय, प्रत्यक्ष देव त्यागी, पल्लवी शर्मा, अक्षिमा त्यागी, सत्येंद्र धारीवाल, उमाकांत गुप्ता, डॉ कृष्ण कुमार नाज, विवेक निर्मल, नकुल त्यागी,आकर्ष त्यागी ने भी रचना पाठ किया। इस अवसर पर जीसी जायसवाल, रामावतार त्यागी, राजीव त्यागी, प्रेम राज त्यागी, संजीव, अनुज, आशा, अंजना सिंह, अवनीश, संजीव यादव, अतीक अहमद आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे। आभार संयोजक सिद्धार्थ त्यागी ने व्यक्त किया ।